पं. बिरजू महाराज : भारतीय कला के सूरज की तपिश रहेगी याद
जिनके रोम रोम में कथक रमा हो ऐसे भारतीय कला और संस्कृति के सूरज स्व. पंडित बिरजू महाराज ने पीढि़यों को अपनी ऊर्जा प्रदान की। उन्हें देख कथक सहित तमाम भारतीय सांस्कृतिक विधाओं से जुड़ने वाले कलाकारों के साथ ही उनसे मिलने वाले भी लाभान्वित हुए।
मेरठ, जेएनएन। जिनके रोम रोम में कथक रमा हो, ऐसे भारतीय कला और संस्कृति के सूरज स्व. पंडित बिरजू महाराज ने पीढि़यों को अपनी ऊर्जा प्रदान की। उन्हें देख कथक सहित तमाम भारतीय सांस्कृतिक विधाओं से जुड़ने वाले कलाकारों के साथ ही उनसे मिलने वाले भी लाभान्वित हुए। भारतीय कला के ऐसे सूरज के हाथों मेरठ की कला भी सम्मानित हो चुकी है। मेरठ ने भी ऐसे महान कलाकार का स्वागत, अभिनंदन और सम्मान 14 अप्रैल 2004 को किया था। गढ़ रोड पर राजा रानी मंडप में आयोजित कार्यक्रम में पंडित बिरजू महाराज का नागरिक अभिनंदन हुआ था। इस मौके पर उन्हें फिल्म मीडिया अवार्ड से भी नवाजा गया था। इसके बाद मेरठ के बाहर हुए कार्यक्रमों में भी मेरठ के कलाकार उनके साथ बिताए कुछ पल को जीवन भर की यादों की पूंजी मानते हैं।
फिल्म देवदास से जुड़ा रिश्ता कायम रहा
पंडित बिरजू महाराज से मेरी मुलाकात वर्ष 2003 में हुई थी। फिल्म देवदास में उन्होंने माधुरी दीक्षित को कोरियोग्राफ किया था। उस दौरान उनके साथ काफी समय बिताने का मौका मिला और हम पारिवारिक रिश्ते में जुड़ गए। वर्ष 2004 में फिल्म मीडिया अवार्ड समारोह में हमने उनका नागरिक सम्मान किया था। उसी मौके पर उनके हाथ से मेरठ की हस्तियों को भी सम्मानित कराया गया था। यह मेरा सौभाग्य था जो उनसे जुड़ने का मौका मिला। मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूं। करीब 20 दिन पहले भी उनके घर मिलने गया था, वह काफी बीमार चल रहे थे।
-ज्ञान दीक्षित, वरिष्ठ फोटोग्राफर
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हर साल बच्चों को भेजते थे उनसे सीखने
पंडित बिरजू महाराज से ही प्रभावित होकर हमने अपने यहां एक डांस हाल का नाम 'पंडित बिरजू महाराज डांस हाल' रखा था। हर साल पंडित जी कथक पर एक सप्ताह की कार्यशाला कराते थे, जिसमें हम बच्चों को परफार्मिग आर्ट की एचओडी डा. भावना ग्रोवर के साथ छात्र-छात्राओं को सीखने के लिए भेजते थे। मैंने जब उनका पोट्र्रेट बनाकर भेजा तो बहुत खुश हुए और बहुत आशीर्वाद दिया। बेहद सरल हृदय के व्यक्ति थे। गुरु पूर्णिमा पर उनके घर गया था। दो बार उनसे मिलने का मौका मिला। उनके जाने से कथक का एक इतिहास खत्म हो गया।
-पिंटू मिश्रा, प्रिंसिपल और डीन, फाइन आर्ट्स, एसवीएस विवि नृत्य रूपी सागर थे महाराज
वर्ष 1987-88 में मेरी पहली गुरु स्व. ललिता भाटिया थीं। एक रिहर्सल के दौरान मैडम मुझे साथ ले गई। मैं मैडम के विशेष विद्यार्थियों में से एक था इसलिए वह मेरा गाना महाराज जी को सुनाना चाहती थीं। मैंने उन्हें एक ठुमरी सुनाई, जिसे सुनकर वह खुश हुए और आशीर्वाद दिया। इसके बाद महाराज जी के कार्यक्रम देखने मैं अक्सर दिल्ली मंडी हाउस जाता। उनका चरण स्पर्श करते ही वह नाम लेकर पुकारा करते थे। वह नृत्य के सागर थे जिनसे कई छोटी-बड़ी नदियां निकली और सागरत्व को प्राप्त करने की चेष्टा में आज भी प्रयासरत हैं।
-मुकेश कुमार तिवारी, शास्त्रीय एवं भजन गायक
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बाल लीला में साक्षात कृष्ण का रूप लगते थे गुरु जी
वर्ष 2004 में गढ़ रोड स्थित राजा रानी मंडप में यूपी फिल्म फोटो जर्नलिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से टैलेंट अवार्ड कार्यक्रम में मुझे पंडित बिरजू महाराज के समक्ष कथक नृत्य प्रस्तुति का अवसर मिला। राग भैरवी माता काली की प्रस्तुति देख वह काफी प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा था कि मेरठ को एग्रीकल्चर के रूप में जाना जाता हैं। अब कल्चर के लिए भी जाना जाएगा। गुरु जी जब कान्हा की बाल लीला और माखन चोरी पर कथक नृत्य करते तो, उनमें भगवान कृष्ण के साक्षात दर्शन होते थे। उनका नायक और नायिका दोनों ही भाव पक्ष बहुत प्रबल था। जो अन्य किसी कलाकार में मिलना कठिन हैं।
-रुचि बलूनी, कथक गुरु, शिवांगी संगीत महाविद्यालय संगीत की तीनों विद्याओं में थे निपुण
आज छोटे बालक-बालिकाएं भी कथक नृत्य सीख रहे हैं। कथक नृत्य को प्रसिद्धि दिलाकर जनसाधारण तक और बालीवुड तक पहुंचाया। कई फिल्मी गीतों को कोरियाग्राफ किया और वह गीत अमर हो गए। इसमें पंडित बिरजू महाराज का विशेष योगदान है। वह संगीत की तीनों विद्याओं गायन, वादन और नृत्य में निपुण थे। पं. बिरजू महाराज से दिल्ली में दो बार मिलने का मौका मिला। वह कलाकार को बारीक से बारीक बातें भी बड़ी सरलता से बताते थे, कि एक भाव को बालिका, युवती और प्रौढ़ द्वारा कैसे अलग-अलग प्रस्तुत किया जाता है।
-नीता गुप्ता, क्षेत्रीय संयोजिका सांस्कृतिक प्रकोष्ठ
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कलाकारों ने श्रद्धांजलि
शिवांगी संगीत महाविद्यालय के बाल कलाकारों ने पंडित बिरजू महाराज को आफलाइन और आनलाइन श्रद्धांजलि दी। संस्थान की निदेशक ने उन्हें याद करते हुए कहा कि वह संगीत और ज्ञान का सागर थे। उनकी मोर की गत इतनी प्रचलित थी, कि दर्शक उन्हें बार-बार इसे दिखाने की मांग करते थे। पंडित बिरजू महाराज कई बार चरित्र में इतना खो जाया करते थे, कि वह स्वयं को भी भूल जाते थे। श्रद्धांजलि में प्रधानाचार्य राजा बलूनी, अध्यक्ष राजेश शर्मा, सप्तक शर्मा और बाल कलाकार उपस्थित रहे। संगीत को मिली नई पहचान
थापर नगर में कलाकारों ने पंडित बिरजू महाराज को श्रद्धासुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के जिला संयोजक सुमनेश सुमन ने कहा कि बिरजू महाराज को उनके गायन और नृत्य के लिए सदियों तक याद रखा जाएगा। उन्होंने कथक नृत्य को एक नई पहचान दी और बाल कलाकारों को इससे जोड़ा। आज हर माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे कथक नृत्य और शास्त्रीय संगीत में रुचि लें। श्रद्धांजलि सभा में मनमोहन भल्ला, सुमित चौहान, आचार्य वरुण प्रमोद और प्रवीण गुप्ता भी उपस्थित रहे।