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पांच 'कदम' से सपनों का सफर पूरा करेंगी प्रियंका

पैदल चाल में ओलंपिक कोटा हासिल कर चुकीं मेरठ की अंतरराष्ट्रीय एथलीट प्रियंका गोस्वामी को घर आने का अवसर देने के बजाय एथलेटिक फेडरेशन आफ इंडिया (एएफआइ) ने लक्ष्य पर फोकस करने का टास्क दिया है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Feb 2021 08:55 AM (IST)Updated: Thu, 18 Feb 2021 08:55 AM (IST)
पांच 'कदम' से सपनों का सफर पूरा करेंगी प्रियंका
पांच 'कदम' से सपनों का सफर पूरा करेंगी प्रियंका

मेरठ, जेएनएन। पैदल चाल में ओलंपिक कोटा हासिल कर चुकीं मेरठ की अंतरराष्ट्रीय एथलीट प्रियंका गोस्वामी को घर आने का अवसर देने के बजाय एथलेटिक फेडरेशन आफ इंडिया (एएफआइ) ने लक्ष्य पर फोकस करने का टास्क दिया है। माता-पिता व परिवार वालों से मिलने की इच्छा मन में ही दबाए प्रियंका टोक्यो ओलंपिक से पहले अगले पांच महीने तक खुद को पांच तरह की तपस्या में ढालेंगी। इसमें पैदल चाल की रफ्तार बढ़ाना, डायट का विशेष ख्याल, सेहत दुरुस्त रखने, बिना फेल हुए एएफआइ के शेड्यूल का अनुसरण और अपने लड्डू गोपाल की साधना शामिल है।

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सुबह 4:30 बजे शुरू होती है दिनचर्या

प्रियंका की दिनचर्या सुबह 4.30 बजे उठने से शुरू होती है। 5:45 बजे ट्रेनिग शुरू होती है। शुरुआती ट्रेनिग के बाद लगातार सुबह नौ बजे तक पैदल चलती हैं। 10 बजे तक नाश्ता कर कमरे में वापस पहुंचती हैं। स्नान-ध्यान के बाद सुबह 11 से 12.30 बजे तक सोती हैं। इसके बाद लंच, कुछ मनोरंजन और फिर आराम। शाम को फिर चार से सात बजे तक ट्रेनिग चलती है। शाम को स्ट्रेंथ ट्रेनिग के बाद पैदल चलती हैं। रात 7.30 से आठ बजे तक डिनर और रात नौ बजे सो जाती हैं।

कठिन अनुशासन ही जीवन

बेंगलुरु में ट्रेनिंग ले रहीं प्रियंका कहती हैं, के अनुसार, ओलंपिक कोटा हासिल करने के बाद एक खिलाड़ी के तौर पर उनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। एएफआइ सुविधाएं दे रहा, प्रशिक्षण करा रहा है, निगरानी कर रहा है। जिससे हम देश के लिए पदक जीत सकें। इसके लिए कड़े नियमों का पालन और अनुशासन जरूरी है। इनमें प्रशिक्षण क्षेत्र से बाहर न जाने और छुट्टी न मांगना भी शामिल है।

लड्डू गोपाल हैं सबसे करीब

माता अनीता से मिली लड्डू गोपाल की सेवा भावना को प्रियंका ने जीवन का हिस्सा बना लिया है। वह लड्डू गोपाल को हमेशा साथ रखती हैं। उनके उठने, नहाने, खाने आदि का ख्याल रखती हैं। हवाई सफर में लड्डू गोपाल के लिए अलग सीट बुक कराती हैं और उनके बगल की सीट पर खुद बैठकर जाती हैं। देश के लिए ओलंपिक पदक जीतने के अलावा प्रियंका की एकमात्र ख्वाहिश पिता मदनपाल की रोडवेज में गई नौकरी को वापस मिलते देखना है।


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