जन की भाषा रही है प्राकृत, इसे भी पढ़ें
पुरानी हिंदी यानी प्राकृत भाषा केवल जैन धर्म की भाषा नहीं है।
मेरठ, जेएनएन। पुरानी हिंदी यानी प्राकृत भाषा केवल जैन धर्म की भाषा नहीं है। यह पूर्व में जन-जन की भाषा रही है। इसमें प्राकृतिक भाव है, जो किसी और भाषा में नहीं है। आज अंग्रेजी पढ़ने वाले बच्चों को इसे पढ़ना चाहिए, तभी पता चलेगा कि अंग्रेजी के बहुत सारे शब्द प्राकृत से लिए गए हैं। जिनका उच्चारण भी प्राकृत की तरह है। रविवार को प्राकृत भाषा को स्कूली शिक्षा में वैकल्पिक भाषा का स्थान दिलाने की कोशिश में जुटे जैन मुनि प्रणम्य सागर ने यह बात कही। वह रविवार को होटल डी- रोजेज में आयोजित प्राकृत भाषा के दूसरे दीक्षा समारोह को संबोधित कर रहे थे।
दीक्षा समारोह में प्रणम्य सागर महाराज ने प्राकृत को जन की भाषा बताते हुए कहा कि कालिदास के नाटकों में प्राकृत जीवित है। भाषा के हर्षचरित, कवि शूद्रक के मृच्छकटिकम में प्राकृत भाषा का प्रयोग है। चंद्रधर गुलेरी ने भी पुरानी हिदी यानी प्राकृत के शब्दों का इस्तेमाल किया। दिल्ली सरकार ने प्राकृत एकेडमी खोलने की घोषणा की है। रेवाड़ी के साथ देश के कोने - कोने में बच्चे प्राकृत सीख रहे हैं। वैकल्पिक विषय संस्कृत के साथ प्राकृत को भी जोड़ा जा सकता है। प्राचीन समय में प्राकृत को मध्य देश यानी आज के मथुरा के आसपास की भाषा बताया गया है। यानी उत्तर प्रदेश ही प्राकृत भाषा का जनक है। समारोह में व्यवसायिक शिक्षा और कौशल विकास राज्य मंत्री कपिलदेव अग्रवाल ने प्राकृत भाषा का प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षकों को सम्मानित किया। प्राकृत शिक्षा में पाइय सिक्खा पूरी करने वाले प्रतिभागियों को पदक और सर्टिफिकेट भी दिए गए। राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली से सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल रहे। कैंट विधायक सत्यप्रकाश अग्रवाल भी शरीक हुए। किशनगढ़ से आरके मार्बल, अशोक पाटनी, भाजपा के मीडिया प्रभारी आलोक सिसौदिया, सौरभ जैन, अंबिका अंबर, विनेश जैन, सुनील जैन, नेहा जैन, रंजीत जैन सहित काफी संख्या में जैन समाज के लोग उपस्थित रहे।
---
दीक्षा में मिले प्रमाणपत्र
प्राकृत शिक्षा के भाग एक और दो की पढ़ाई कर परीक्षा देने वाले करीब 200 प्रतिभागियों के रिजल्ट की घोषणा हुई। इसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के प्रतिभागी रहे। कुछ प्रतिभागियों को दीक्षा में सर्टिफिकेट और मेडल दिए गए। अन्य के सर्टिफिकेट रेवाड़ी में दिए जाएंगे। इस मौके पर सकल जैन समाज की ओर से राज्य मंत्री कपिलदेव अग्रवाल को पत्र भी सौंपा गया, जिसमें स्कूली शिक्षा में प्राकृत भाषा को वैकल्पिक भाषा के रूप में सम्मिलित कराने की मांग की गई। भाषा को नृत्य और गीत से जीवंत किया
समारोह में रेवाड़ी से आए छोटे- छोटे बच्चों ने प्राकृत भाषा को लेकर नृत्य, गीत, नाटक प्रस्तुत किया। अपनी प्रस्तुति से उन्होंने प्राकृत को जीवंत कर दिया। बच्चों में प्राकृत बोलने और अभिनय करने की ललक दिखी। मेरठ में भी प्राकृत की पढ़ाई
मेरठ में इस साल से ऋषभ एकेडमी ने कक्षा छह से अपने यहां प्राकृत शुरू किया है। छह सौ बच्चे इसकी शिक्षा ले रहे हैं। प्राकृत जैन विद्या पाठशाला समिति रेवाड़ी के अध्यक्ष डा. अजेश जैन ने बताया कि देश में 20 जगह प्राकृत पढ़ाई जा रही है। 10 जगह ऑनलाइन क्लास भी चल रही हैं। पत्रिका का विमोचन
समारोह में प्राकृत शिक्षा भाग- 3, पागद संदेश और दर्शन की अनुभूति पुस्तिका का विमोचन किया गया। भजन की एक डिवाइस भी लांच हुई।