Jeetegabharat: दुबई में जरूरतमंद हमवतनों की मदद कर रही हैं मेरठ की कुसुम, अबतक 1000 से ज्यादा की मदद
कम्यूनिटी एंड सोशल वर्क के बैनर तले कोरोना काल में समूह खाना-पानी मुहैया करा रहा है। अब तक 1000 से ज्यादा लोगों की मदद कर चुकी हैं। साथ ही वतन वापसी के लिए भी प्रयास कर रहीं है।
मेरठ, जेएनएन। कोरोना जैसी विपदा और गैर-मुल्क में फंसे अभावग्रस्त लोग। ऐसे में अगर कोई दो वक्त की रोटी मुहैया करा दे तो इससे बड़ी राहत की कोई बात नहीं। दुबई में कोरोना के बाद तमाम फैक्टियां बंद हुईं तो वहां काम करने वाले भारतीय मजदूरों के लिए जीवन-यापन मुश्किल हो गया। वेतन अभी मिल नहीं रहा और बचत कुछ है नहीं। ऐसे जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए वहां की महिलाओं का एक संगठन सामने आया है।
कम्यूनिटी एंड सोशल वर्क (सीएएस) के बैनर तले मेरठ की मूल निवासी कुसुम दत्ता की अगुवाई में जरूरतमंद भारतीयों को खाना, कपड़े, साबुन, साफ-सफाई के सामान, महिलाओं के इस्तेमाल की आवश्यक वस्तुएं रोजाना बांटी जा रही हैं। कुसुम कहती हैं कि अब तक लगभग एक हजार लोगों तक मदद मुहैया कराई जा चुकी है। आने वाले दिनों में इन कामगारों को स्वदेश जाने की खातिर टिकट के पैसे भी चाहिए, उनका संगठन उसकी व्यवस्था में भी जुटा है।
कामगारों का मददगार है सीएएस
कोरोना की वजह से महिलाओं के इस संगठन ‘कैस’ का फोकस जरूरत के सामान मुहैया कराने का है। लेकिन, साल 2008 से यह संगठन भारतीय कामगारों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने, उनकी ट्यूशन फीस अदा करने, किताब-पोशाक उपलब्ध कराने, मजदूरों के कैंप में जाकर उन्हें स्वास्थ्य और हाइजीन के बारे में जागरूक करने के साथ ही गृहस्थी की खटपट दूर करने के लिए काउंसिलिंग कर रहा है। संगठन में वीणा कोचर, स्मिता खन्ना, ज्योति कपूर, स्मिता हाटी, मनु मेहता, स्मिता मेहरिश भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। यह संगठन दुबई में भारतीय दूतावास के भारतीय प्रवासी सहायता केंद्र से भी जुड़ा हुआ है।
45 साल पहले दुबई गईं थीं कुसुम
कुसुम बताती हैं दुबई शिफ्ट हुए लगभग 45 वर्ष बीत गए। वह मेरठ के गंगानगर की रहने वाली हैं। डिफेंस कॉलोनी से उनका आज भी नाता है। केंद्रीय विद्यालय सिख लाइंस से प्राइमरी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद कुसुम ने आरजी ये यूजी और मेरठ कॉलेज से पीजी की डिग्री ली। उनकी शादी ओमप्रकाश दत्ता से हुई और वे दुबई शिफ्ट हो गए। दुबई में उनका वॉल्वो और मर्सिडीज के इंजन पार्ट्स का कारोबार था। कुसुम बताती हैं कि ढाई वर्ष पहले ही पति की मृत्यु के बाद कामकाज भी संभालना पड़ा।