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जनसंख्‍या नियोजन : स्वदेशी रक्षासूत्र से चीन को चपत लगाने की पूरी है तैयारी, इतने महीनों में तैयार किए 46 लाख राखियां

कोरोना और चीन से निबटने को देश ने स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के नारे को हर स्तर पर आत्मसात किया है। इस दौरान बागपत की दो आत्मनिर्भर महिलाओं ने 46 लाख राखियां तैयार कीं।

By Prem BhattEdited By: Published: Wed, 29 Jul 2020 04:16 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 08:09 PM (IST)
जनसंख्‍या नियोजन : स्वदेशी रक्षासूत्र से चीन को चपत लगाने की पूरी है तैयारी, इतने महीनों में तैयार किए 46 लाख राखियां
जनसंख्‍या नियोजन : स्वदेशी रक्षासूत्र से चीन को चपत लगाने की पूरी है तैयारी, इतने महीनों में तैयार किए 46 लाख राखियां

जहीर हसन, बागपत। कोरोना और चीन से निबटने को देश ने स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के नारे को हर स्तर पर आत्मसात किया। बागपत की दो आत्मनिर्भर महिलाओं महेंद्री और उमा ने अपने साथ 275 महिलाओं को जोड़ 46 लाख राखियां तैयार कर दिखाईं। बाजार में चीन निर्मित राखियों के विकल्‍प के रूप में इन महिलाओं का यह प्रयास लोगों द्वारा खूब सराहा भी जा रहा है।

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सिंघावली अहीर गांव निवासी कक्षा आठ पास पचास वर्षीय महेंद्री ने 2017 में राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत बाबा मोहनराम स्वयं सहायता समूह गठित किया, उस समय 20 रुपये प्रति सप्ताह बचत होती थी।

दिक्कतों के बीच वर्ष 2018 में समूह से 25 हजार रुपये उधार लेकर महेंद्री राखियां बनवाने लगीं। इसी क्रम में इसी गांव की बीए पास 28 वर्षीय उमा पांचाल ने भी 2018 में गणोश स्वयं सहायता समूह से 90 हजार रुपये कर्ज लेकर बागपत में प्रेरणा कैंटीन खोली, लेकिन 30 हजार रुपये का घाटा होने पर कैंटीन बंद कर दी। इसके बाद बाकी बचे 60 हजार रुपये से उन्होंने महिलाओं से राखी बनवाने का काम शुरू किया।

महेंद्री ने विभिन्न महिलाओं की मदद से सितंबर 2019 से अब तक 36 लाख, जबकि उमा ने सात माह में 10 लाख राखी तैयार कर बाजार में भेज दी हैं। रुद्राक्ष, गणोशजी, छोटा भीम, घड़ी सहित विभिन्न आकर्षक आकृतियों से सजीं इन राखियों की कीमत पांच से सौ रुपये तक है। कहती हैं, अब रक्षाबंधन पर लाखों कलाइयां इन्हीं स्वदेशी राखियों से सजेंगी। महेंद्री और उमा ने दैनिक जागरण से कहा कि चीन से तकरार के चलते स्वदेशी राखियों की बहुत मांग है, जिसे देखते हुए हमने अपना काम बढ़ा दिया था। ऑर्डर पूरा करना कठिन हो रहा है। हम सदर बाजार दिल्ली से कच्चा माल लाकर राखी तैयार कराती हैं। तैयार राखियों की अधिकांश सप्लाई भी दिल्ली में है। स्थानीय स्तर पर भी अच्छी मांग है।

वर्तमान में महेंद्री विभिन्न गांवों की 90 महिलाओं जबकि उमा 185 महिलाओं को रोजगार दे रही हैं। सभी राखी बना रहीं हैं। सिंघावली की पूजा, बरसिया की उर्मिला और बामनौली की मीना बताती हैं कि राखी बनाने से उन्हें ढाई से तीन हजार रुपये महीना कमाई होती है।

वहीं, बागपत व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष नंदलाल डोगरा ने कहा, चीन से तकरार के चलते इस बार बाजार में स्वदेशी राखियों की मांग है। व्यापारी भी स्वदेशी राखियां ही खरीदकर बेच रहे हैं।

आजीविका मिशन के उपायुक्त ब्रजभूषण सिंह महेंद्री और उमा के प्रयासों की सराहना करते हुए कहते हैं कि राखी के कारोबार से सैकड़ों महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा रहीं यह दोनों महिलाएं अन्य के लिए प्रेरणास्नोत हैं। 


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