हवा क्या रुकी, प्रदूषण ने दिखाईं आंखें और अस्पतालों में बढ़ने लगे मरीज Meerut News
मेरठ में प्रदूषण का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। 24 घंटे तक पीएम2.5 का स्तर ज्यादा रहा। रात नौ बजे करीब 400 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के आसपास पहुंच गया।
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। प्रदूषण के बिगड़ते तेवर ने पर्यावरण विज्ञानियों फिर डरा दिया है। लगातार दूसरे दिन गुरुवार को भी प्रदूषण का सूचकांक खतरे के निशान से ऊपर मिला। 24 घंटे तक पीएम2.5 का स्तर ज्यादा रहा। रात नौ बजे करीब 400 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के आसपास पहुंच गया। मौसम विज्ञानियों ने माना है कि प्रदूषण की चादर में ढंका एनसीआर फरवरी के अंत तक खुली हवा में सांस ले सकेगा। उधर, मेडिकल कालेज, जिला अस्पताल एवं निजी अस्पतालों में बड़ी संख्या में सांस के मरीज पहुंच रहे हैं।
जानिए कहां क्या रहा हाल
मेरठ के तीन एयर क्वालिटी मानीटरिंग स्टेशनों की रिपोर्ट बताती है कि हवा में बड़ी मात्रा में गैस एवं विषाक्त कण पहुंच गए हैं। पारा गिरने के साथ ही वायुदाब बढ़ने से भविष्य में हवा का स्तर और खराब होगा। पल्लवपुरम में एक्यूआइ 360, गंगानगर में 335 और जयभीमनगर में 375 तक पहुंचा। जबकि पीएम2.5 की मात्रा मानक 60 के सापेक्ष छह गुना बढ़ गई। पिछले 20 दिनों के दौरान पीएम2.5 का औसत 240 के आसपास मिला है। गुरुवार को धूप निकलने के बावजूद हवा की गति धीमी रहने की वजह से एयर लाक से प्रदूषण बढ़ गया। पल्लवपुरम में कार्बन मोनोआक्साइड की मात्रा 120, गंगानगर में 110 और जयभीमनगर में 1126 तक पहुंच गया। इन सभी स्टेशनों पर पीएम10 की मात्रा बढ़ी हुई मिली।
इन कारणों से बढ़ रहा प्रदूषण
- एनजीटी व कोर्ट के रोक के बावजूद मेरठ में कचरा जलाने व बेलगाम औद्योगिक चिमनियों से बड़ी मात्र में धुआं हवा में पहुंचा।
- सड़कों की धूल, निर्माण इकाइयों की धूल और गांव में जलाए जाने वाले ईंधन से प्रदूषण फैल रहा।
- हवा में एकत्रित कार्बन डाई आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड एवं नाइट्रोजन हवा की निचली परत में पहुंच जाते हैं।
- फर्नेस कारोबार एवं गैस कटिंग में पीएम1 की मात्र उत्सर्जित होती है जो पीएम2.5 से भी खतरनाक है।
- पेड़ों की संख्या घटने एवं पत्तों पर धूल जमने की वजह से कार्बन सोख नहीं पाते। आक्सीजन का उत्सर्जन भी रुक जाता है।
इनका कहना है
औद्योगिक क्षेत्रों में कई बार छापेमारी कर ब्वायलर और चिमनी को रुकवाया गया। कचरा जलाने की सूचना पर नगर निगम एक्शन लेता है। तापमान कम होने से आगे भी प्रदूषण का खतरा बना रहेगा। कई विषाक्त गैसें हवा में घुलकर सेहत के लिए खतरा बनती हैं।
- योगेंद्र सिंह, वैज्ञानिक, क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
प्रदूषण से बढ़ी फेफड़ों की जानलेवा बीमारी
अगर सूखी खांसी लंबे समय तक चले और सांस भी उखड़े तो इसे हल्के में न लें। ये फेफड़ों की गंभीर बीमारी हो सकती है। वायु प्रदूषण, धूल, निर्माण कार्य से उठते कण व अन्य स्रोतों से सांस के जरिए शरीर में पहुंचकर फेफड़ों को जख्मी कर देते हैं। उक्त बातें मेरठ के चेस्ट सर्जन डा. अनिल कपूर ने कोचीन में छाती रोग पर आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में कहीं।
यह है ज्यादा खतरनाक
केरल के शहर कोचीन में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण, रेत, सीमेंट, धूल, कैंची उद्योग की धूल, खेल उद्योग में इस्तेमाल रंगों व पॉलिश और कबूतर व पक्षी पालने वालों में ज्यादा खतरा है। सूखी खांसी को नजरंदाज करने पर यह वक्त के साथ गंभीर और जानलेवा बन जाती है। उनके प्रजेंटेशन को इंग्लैंड अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देशों से पहुंचे विशेषज्ञों ने सराहा। डा. अनिल कपूर ने बताया कि आइएलडी-इंटरस्टीटियल लंग डिसीज के बढऩे से कई मरीज जिंदगी गंवा चुके हैं। उन्होंने सर्जरी की आधुनिक तकनीक की भी जानकारी दी।