ओ खंडित प्रणयबंध मेरे, किस ठौर कहां तुझको जोडूं, कब तक पहनूं ये मौन धैर्य, बोलूं भी तो किससे बोलूं
मेरठ से राम का नाम जोडऩे और उसे अमर कर देने का गौरव कवि भरत भूषण को हासिल है। राम की जलसमाधि रचकर भरत भूषण ने राम के अलग ही रूप को व्याख्यायित किया।
मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मंदिर निर्माण का श्रीगणोश आज हो गया है। मेरठ सहित देशभर से माटी और जल पहुंच भी गया है। यूं तो कण-कण में राम हैं, लेकिन मेरठ से राम का नाम जोडऩे और उसे अमर कर देने का गौरव कवि भरत भूषण को हासिल है। राम की जलसमाधि रचकर भरत भूषण ने राम के अलग ही रूप को व्याख्यायित किया, जो कहीं न कहीं छूट गया था। राम की अयोध्या और अयोध्या की सरयू को लेकर पिरोये कवि भूषण के शब्द तो आज भी प्रासंगिक हैं लेकिन इस त्योहारी मुहूर्त में भाव जरूर बदल जाएंगे। मेरठ को राम में रमाने वाले ऐसे चितेरे को नमन।
सर्वस्व सौंपता शीश झुका, लो शून्य राम लो राम लहर।
फिर लहर-लहर, सरयू-सरयू, लहरें-लहरें, लहरें- लहरें।।
ईंट नहीं दी, दीया तो जलाइए
याद है 1990 से 1992 के बीच का वह आंदोलन। जगह-जगह शिलायात्रओं का आयोजन और राम मंदिर के लिए चंदा स्वरूप एक ईंट की कीमत एक रुपये लेना। मेरठ में भी यह आंदोलन जोर-शोर से चला था। विहिप के अशोक सिंघल से लेकर भाजपा के विनय कटियार तक के दौरे मेरठ में रामभक्तों का जोश बढ़ाते थे। तमाम बंदिशों चक्रव्यूह को भेदकर कारसेवकों का अयोध्या पहुंचना, यह सब एक बार फिर परतंत्रता की विद्रोही इस माटी के मानुष को याद दिलाई जा रही हैं। आज संघ परिवार, विहिप अथवा भाजपा फिर से हर घर-घर, दरवाजे-दरवाजे पहुंच रही है। नई पीढ़ी से विनती कर रही है। कहते हुए सुने जा रहे हैं ..कोई बात नहीं आप तब मंदिर की ईंट नहीं दान कर पाए थे, लेकिन यह मौका तो मत गंवाइए। पांच अगस्त को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के नाम का एक दीया तो जरूर जलाइए।
वर्चुअल स्क्रीन पर दिखेगी एक्चुअल रामभक्ति
जमाना बदल गया है। दूसरे, कोविड का खतरा। इन प्रतिकूल परिस्थितियों में धर्म और आस्था का पर्व मनाने में कहीं कोई छूट न जाए, इसकी खातिर आज की जरूरत और समय की मांग को देखते हुए रियल रामभक्ति की वचरुअल व्यवस्था भी की गई है। जो बुजुर्ग है, शारीरिक दूरी का पालन हो, भीड़भाड़ न हो, इसकी खातिर रामभक्तों ने विभिन्न एप पर डिजिटल व्यवस्था की है। यह प्रभु राम की ही लीला है कि बड़ी संख्या में लोग पांच अगस्त को विदेशी जूम एप पर हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ करेंगे। अयोध्यापुरी में चल रहे कार्यक्रम की कवरेज को वचरुअल स्क्रीन पर जगह-जगह देख पाएंगे, फिर रियल सेलीब्रेशन का हिस्सा बनेंगे। इन सबकी जिम्मेदारी भी सौंपी जा चुकी है। राम सबके बनें और राम की आस्था के नाम पर कहीं कोई व्यवस्था न बिगाड़ दे, इसकी खातिर पुलिस-प्रशासन भी कमर कसे हुए है।
राम से बड़ा राम का नाम
अवधपुरी तो त्योहारी रंग में सराबोर है, लेकिन अयोध्या की इस उत्सवी बेला में क्रांतिधरा भी पूरी तरह से डूबी हुई है। अयोध्या में रामार्चा (श्रीराम की प्रसन्नता के लिए उनके परिजनों की अर्चना की विशेष पूजा पद्धति) के शुरू होते ही मेरठ में भी कहीं अखंड रामायण का पाठ बैठ गया है तो कहीं रामधुन बजने लगी है। अपने इष्ट को लेकर संजोए गए सपनों को साकार होता देख उम्र के पड़ाव पर पहुंच चुके उन लोगों की आंखें छलक जा रही हैं। संघर्ष के दिनों की बंद पड़ चुकी किताबों के पóो पलटने लगे हैं और उनमें से एक-एक कर किस्से-कहानियां निकलने लगी हैं। यह यहां की भावी पीढ़ी के काम आएंगी, ज्ञानगंगा साबित होंगी, जब कुछ वर्ष बाद वे अवधपुरी के राममंदिर में पहुंचेंगे। विश्वास है, किस्से-कहानियां सुनने वाली यह पीढ़ी नींव में अपनों की उस ईंट को जरूर तलाश लेगी।