Move to Jagran APP

अद्भुत, अकल्पनीय काली: यहां तो काली में आचमन और पूजा अर्चना करते हैं लोग

जिस काली के पास से गुजरने में सांस रोकनी पड़ती है कन्नौज के मेहंदीघाट पर श्रद्धालु स्नान करते हैं। आचमन करते हैं पूजा-अर्चना होती है।

By Taruna TayalEdited By: Published: Mon, 02 Dec 2019 05:00 PM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 03:27 PM (IST)
अद्भुत, अकल्पनीय काली: यहां तो काली में आचमन और पूजा अर्चना करते हैं लोग
अद्भुत, अकल्पनीय काली: यहां तो काली में आचमन और पूजा अर्चना करते हैं लोग

मेरठ, [जागरण स्‍पेशल]। अद्भुत, अकल्पनीय...काली को कन्नौज में दूर से बलखाते हुए गंगा में संगम का दृश्य देखकर यही शब्द कौंधे। मुजफ्फरनगर से शुरू हुई यात्रा की थकान काली को देखते ही काफूर हो गई थी। जिस काली के पास से गुजरने में सांस रोकनी पड़ती है, कन्नौज के मेहंदीघाट पर श्रद्धालु स्नान करते हैं। आचमन करते हैं, पूजा-अर्चना होती है। रवि प्रकाश तिवारी की इस रिपोर्ट में कासगंज के कन्नौज तक के काली के सफर के साथी बनिए...

loksabha election banner

कासगंज में काली

कासगंज पहुंचते-पहुंचते काली की गंदगी कुछ धुली जरूर है लेकिन यहां भी नहर से आगे नदी में औद्योगिक कचरा काली को बोझिल करता है। फिर भी मेरठ-मुजफ्फरनगर की तुलना में सेहत सुधरी हुई है। कासगंज के आगे बढ़ते ही एटा के समानांतर काली आगे चलकर फरूखाबाद में प्रवेश करती है। यहां एक तट इसका फरूखाबाद तो दूसरा कन्नौज को छूता है। यहां काली पहले से थोड़ी साफ होती है। टेढ़े-मेढ़े रास्तों से काली का सफर लगभग 550 किमी का पूरा हो चुका है। गंगा नजदीक है, लिहाजा काली में भी गंगा से मिलन की एक अजब बेचैनी दिखती है। बहाव की रफ्तार पग-पग पर बढ़ने लगती है। फरूखाबाद के ऐतिहासिक राम आश्रम घाट, खुदागंज से जब काली गुजरती है तो यहां भी आभाष होता है कि काली का अतीत कितना वैभवशाली रहा होगा। यहीं के रामानंद कटियार कहते हैं कि काली नदी की आज पहचान इसके पानी के रंग से पूरी तरह मेल खाती है। इस तस्वीर को बदलने की जरूरत है। हम कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पीछे से प्रयास हो तो हमारी भी कोशिश कामयाब हो।

अब हम बढ़ते हैं कन्नौज की ओर

मेहंदीघाट हमारा अगला पड़ाव है। सांझ का समय, रोशनी धीरे-धीरे कम हो रही थी, ऊपर से बादलों की घेराबंदी मानों सूर्यास्त के समय को और पाट रही हो। खैर, मेहंदीघाट पर पहुंचने से पहले हम पुल पर चले गए जहां दूर से काली आती दिखती है और पुल के ठीक नीचे उसका मिलना गंगा से होता है। दोनों नदियों के मिलन की गवाह पानी की लकीर भी यहां स्पष्ट नजर आती हैं। काली का यह स्वरूप मेरठ-मुजफ्फरनगर के लोगों के लिए किसी कल्पना से कम नहीं। लेकिन यही सच्चाई है।

पुल से ही नजर दौड़ाया तो देखा, लोग उस समय भी स्नान कर रहे थे। औरतें पूजा-पाठ में व्यस्त थीं। काली में स्नान, किनारे पर पूजा यह सबकुछ दिखा कन्नौज के घाट पर। घाट पर पहुंचने की ललक बढ़ गई। यहां मिले अजय पांडेय ने बताया कि चूंकि हमारी ओर घाट में काली ही बहती हैं, तो हम इस ओर ही स्नान-ध्यान करते हैं। वैसे भी गंगा में मिलकर सब गंगा ही तो है। बातचीत खत्म होते-हाते अंधेरा पसरने लगा था। नदी में तैरते बत्तखों का झुंड पुल की रोशनी पड़ते ही और मनोरम लगने लगा। वास्तव में यही असली काली है। अगर काली यहां ऐसी है, तो शुरुआत में वैसी क्यों? ऐसा लगा मानों यह सवाल स्वयं काली का है।

काली को हरा-भरा करने में जुटे ग्रामीण

काली नदी को पुनर्जीवित करने की मुहिम रंग लाने लगी है। काली नदी की सेवा में ग्रामीण जी जान से जुट गए हैं। रविवार को ग्रामीणों ने काली नदी के उद्गमस्थल पर पौधारोपण किया। इस कार्य में बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक ने भागीदारी की। नीर फाउंडेशन ने काली नदी को पुन: जिंदा करने का बीड़ा उठाया है। गांव अंतवाड़ा में काली नदी के उद्गमस्थल पर खुदाई का कार्य चल रहा है। अब इस मुहिम से लोग जुड़ रहे हैं। नदी किनारे वन विकसित किया जाना है। इसके लिए पौधारोपण किया जाना है। अंतवाड़ा निवासी सतीश कुमार, ओमवीर, मूलचंद पटेल, किरणपाल, दिनेश, भूरा, जसवीर, निक्की भड़ाना आदि ने नदी के उद्गमस्थल पर पौधे रोपे। लोगों ने पौधे रोपने के साथ उनकी देखभाल का संकल्प भी लिया।

नदी के दर्शन को कानपुर व बागपत से पहुंचे लोग

काली नदी को जिंदा करने में सहयोग के लिए दैनिक जागरण का प्रयास लोगों के दिलों में उतर रहा है। दूर-दराज के जनपदों से लोग काली नदी के दर्शन को पहुंच रहे हैं। रविवार को बागपत और कानपुर के लोग नदी को देखने अंतवाड़ा पहुंचे। नदी के उद्गमस्थल पर स्वच्छ पानी देख वे खुश नजर आए।

इन्‍होंने बताया

कन्नौज पहुंचने से पहले तक काली नदी का पानी साफ नहीं हो पाता। इसमें कासगंज में भी नाला गिरता है। पीछे से गजरौला की चमड़ा इकाईयों का दूषित पानी भी इसमें गिरता है। यही वजह है कि काली की स्थिति नहीं सुधर पा रही है। हम गंगा सफाई में आठ साल से जुटे हैं लेकिन समझ में आ गया है कि जब तक सहायक नदियां साफ नहीं होंगी, गंगा भी साफ नहीं होगी। यही वजह है कि अब काली के उद्धार का भी बीड़ा उठाना पड़ेगा।

-रामानंद कटियार, फरूखाबाद

यहां काली और गंगा का मिलन होता है। हमें पता नहीं मेरठ या बुलंदशहर में काली की कैसी स्थिति है। हमारे यहां तो काली बिल्कुल साफ है और काली में पूरा मेहंदीघाट स्नान करता है। यहां हमेशा पानी लबालब रहता है। पीछे की गंदगी को जरूर साफ करना चाहिए। नदियां नहीं होंगी तो हम और आप भी नहीं रह पाएंगे।

- राहुल शुक्ला, मेहंदीघाट-कन्नौज

कन्नौज में काली की जो तस्वीर है, वह हम सभी के लिए सीख है। एक नदी जिसे हमने अपने शहर में मार दिया, वह अगर दूसरे जिले में गंगा में समाने से पहले अपने यौवन पर आ जाती है, यह हमारी गल्ती और खामियों को दर्शाता है। समाज के साथ शासन-प्रशासन को भी गंभीरता से इस दिशा में विचार करना होगा ताकि कन्नौज जैसी काली मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर में भी बहे। जब यह नदी बहेगी तो समृद्धि भी लाएगी।

- रमन त्यागी, निदेशक- नीर फाउंडेशन 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.