Special Column: जमीन नहीं, जनभावना नापिए साहब! अक्सर ठेके से होकर गुजरतीं हैं बहन-बेटियां
मेरठ में आवासीय क्षेत्रों में शराब की दुकानें खोलने को लेकर जनता मुखर है। दिक्कत महिलाओं को सबसे ज्यादा है लिहाजा विरोध की कमान भी उन्होंने अपने हाथ में ले रखी है।
मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। आवासीय क्षेत्रों में शराब की दुकानें खोलने को लेकर जनता मुखर है। दिक्कत महिलाओं को सबसे ज्यादा है, लिहाजा विरोध की कमान भी उन्होंने अपने हाथ में ले रखी है। चार दिनों तक चले विरोध और हंगामे के बाद जांच को पहुंचे अफसर ने दावों की वैधता जांचने के लिए जैसे ही फीता डलवाया, महिलाएं फिर भड़क गईं। बोलीं, यहां जमीन नहीं जनभावना नापिए साहब। महिलाओं के इस तर्क के पीछे वो भय था, वह विचित्र हालात उनकी आंखों में तैर रहे थे, जिनसे अक्सर ठेके से होकर गुजरतीं बहन-बेटियों को दो-चार होना पड़ता है। नियमों के तराजू पर तौलकर, कानूनी गुणा-जोड़ से ठेका ठीक भी ठहरा दिया जाए, लेकिन शायद आज अपने शहर का समाज इतना भी एडवांस नहीं हुआ है कि वह इन्हें आत्मसात कर ले। ठेके के बाहर होने वाले आचरण और उनसे निपटने में पुलिस की परफार्मेंस भी भरोसे लायक नहीं।
संस्कारों के विघटन का डगआउट
डगआउट कैफे की परतें जिस तरह एक-एक कर उतर रही हैं, वह सभी के लिए बेहद चिंतनीय है। हुक्का बार-मारपीट, टशनबाजी, नियमों की अनदेखी तो एक बात थी, लेकिन डगआउट से संस्कारों के विघटन की एक से बढ़कर एक डरावनी कहानियां निकलकर सामने आ रही हैं। डगआउट के बहाने ही स्कूल जाने वाले बच्चों के अचानक ‘बड़े’ होने की खबरें आना चिंताजनक हैं। शहर का सौहार्द भी खतरे में आ गया है। सोशल मीडिया पर नाबालिगों की वायरल होती आपत्तिजनक तस्वीरें यह भी इशारा कर रही हैं कि ऐसे तथाकथित मनोरंजन स्थल दरअसल नई पीढ़ी को बहकने का हर साधन मुहैया करा रहे हैं। चुपचाप, बेरोकटोक। दोष अकेले इनका है, ऐसा भी नहीं। हमारा भी है। संस्कारों का हमारा बीज अंकुरित ही नहीं हो पा रहा है। शायद तरुणाई को हम संभाल भी नहीं पा रहे और वे बहककर कोई विषैली डाल थाम रहे हैं।
दया, आज कौन सा बादल बरसेगा?
मानसून में भी बादलों की दगाबाजी को देखते हुए जनता जल्द ही सीआइडी से इसकी जांच की मांग उठा सकती है। दिनभर बादलों की घेराबंदी, सुबह से शाम तक चित्रकारी के बाद हवा के साथ हौले-हौले बादलों के मेरठ के आसमान से निकल जाने से यहां के लोग बड़े चिंतित हैं। कभी ये बरसते भी हैं तो कैंट में झमाझम, और पूरा शहर पसीना पोंछता रहता है। एक ही समय लालकुर्ती में बारिश से जलभराव हो जाता है, तो दिल्ली रोड पर धूप खिली रहती है। लोगों की बढ़ती चिंताओं और बादलों की वादाखिलाफी का समाधान पाने के लिए संभव है कि मौसम विभाग की अनुशंसा पर पुलिस-प्रशासन इस केस को सोनी वाले सीआइडी को सौंप दें। ऐसे में बेगमपुल चौराहे पर खड़े होकर अंगुलियां नचाते सीआइडी के एसीपी प्रद्युम्न यह कहते हुए सुने जा सकते हैं.. दया! जरा पता लगाओ, आज कौन-सा बादल बरसेगा?
आखिर कब तक ङोलें झटके?
शहर में इन दिनों आम शिकायत है, बिजली नहीं आ रही। भारी उमस के बीच बार-बार बिजली के गुल होने से जनता भी आपा खो रही है। वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन पढ़ाई के इस कोविडकाल में बिजली कटौती ने परेशानियों को गुणात्मक कर दिया है। दिन में झटके 50 तक लगते हैं, लेकिन अफसरों को फिक्र कहां। जब भी पूछिए, रिकॉर्डेड मैसेज की तरह एक ही जवाब मिलता है ..बिजली पर्याप्त है, बिजली कटौती नहीं हो रही है। लोकल फॉल्ट की वजह से बिजली कटी होगी आदि आदि। इन दिनों अब पेड़े-पौधों को भी दोषी ठहराया जाने लगा है। अच्छा होता कि साथ में ये भी बता देते कि पेड़ों की कटाई-छंटाई किसे करानी थी और क्यों नहीं हुई? एक आम घर से लेकर औद्योगिक इकाईयां तक त्रस्त हैं, लेकिन समाधान शून्य है। वह भी उस शहर में, जिसके प्रभारी स्वयं बिजली मंत्री हैं।