छात्रों की प्रेरणास्त्रोत बन रही सैनिकों की परमवीरता
देश पर कुर्बान होने वाले परमवीरों के जीवन से नई पीढ़ी को जोड़ने की केंद्रीय विद्यालयों की पहल कारगर होती दिख रही है। सेना का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र पाने वाले वीर शहीदों व जीवित सैनिकों की गाथा केंद्रीय विद्यालयों में वॉल ऑफ हीरोज गौरव बढ़ा रही है।
मेरठ, जेएनएन : देश पर कुर्बान होने वाले परमवीरों के जीवन से नई पीढ़ी को जोड़ने की केंद्रीय विद्यालयों की पहल कारगर होती दिख रही है। सेना का सर्वोच्च वीरता सम्मान 'परमवीर चक्र' पाने वाले वीर शहीदों व जीवित सैनिकों की गाथा केंद्रीय विद्यालयों में 'वॉल ऑफ हीरोज' गौरव बढ़ा रही है। स्कूलों में आने वाले बच्चे हर दिन इनको देखते हैं। उनके बारे में पढ़ते हैं और कुछ समझ न आए तो शिक्षकों से पूछते हैं। आजादी के बाद हुए तमाम युद्ध में अब तक 21 वीरों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया हैं। इनमें 14 को यह सम्मान मरणोपरांत मिला। तीन परमवीर चक्र सम्मानित वीर आज भी हमारे बीच हैं।
प्रार्थना में भी बताते हैं वीरों की कहानी
स्कूल में प्रार्थना के समय भी (कुछ दिनों के अंतराल में) शिक्षक देश के वीर सपूतों की कहानी को बताते हैं। उनकी बहादुरी की रोचक कहानी बच्चों को आकर्षित करती है। प्रार्थना के बाद बच्चे 'वॉल ऑफ हीरोज' में उस वीर की तस्वीर व नाम खोजते हैं और उनके बारे में पढ़ते हैं। सेना के पहले से उनकी जीवनी और युद्ध के मैदान तक की गाथा बच्चों को रोमांचित करती है। इन कहानियों को सुनने भर से ही कई बच्चे देश सेवा के लिए फौज में जाने का मन बनाने लगते हैं।
बच्चों में दिखता है जानने का कौतूहल
केंद्रीय विद्यालय पंजाब लाइंस के प्राचार्य राजकुमार शर्मा के अनुसार बच्चों में इन हीरोज के बारे में जानने का कौतूहल साफ दिखाई देता है। इस साल मेरठ के दो लाल शहीद हुए। उनके बारे में जानने के बाद बच्चों ने इन 21 के बारे में भी जानकारी लेने की कोशिश की। पहला अवार्ड मेजर सोमनाथ शर्मा को तीन नवंबर 1947 को दर्शायी गई वीरता के लिए दिया गया था। अंतिम बार यह पुरस्कार कारगिल युद्ध में अदम्य साहस के लिए दिया गया।
सुशोभित है इन परमवीरों की दास्तां
परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले वीर सैनिकों में मेजर सोमनाथ शर्मा 1948 (मरणोपरांत), लांस नायक करम सिंह 1948, सेकेंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे 1948, नायक यदुनाथ सिंह 1948 (मरणोपरांत), हवलदार मेजर पीरू सिंह 1948 (मरणोपरांत), कैप्टन गुरबचन सिंह 1961 (मरणोपरांत), मेजर धनसिंह थापा 1962, सूबेदार जोगिंदर सिंह 1962 (मरणोपरांत), मेजर शैतान सिंह 1962 (मरणोपरांत), हवलदार अब्दुल हमीद 1962 (मरणोपरांत), ले. कर्नल आर्देशिर तारापोर 1962 (मरणोपरांत), लांस नायक अलबर्ट एक्का 1971 (मरणोपरांत), फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों 1971 (मरणोपरांत), लेफ्टिनेंट अरुण क्षेत्रपाल 1971 (मरणोपरांत), मेजर होशियार सिंह 1971 (मरणोपरांत), नायब सूबेदार बाना सिंह 1987, मेजर रामास्वामी परमेश्वरन 1987 (मरणोपरांत), ले. मनोज कुमार पांडे 1999 (मरणोपरांत), ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव 1999, राइफलमैन संजय कुमार 1999 और कैप्टन बिक्रम बत्रा 1999 (मरणोपरांत) का नाम शामिल है।