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बदलता दौर है ऑनलाइन शिक्षा, पर लाडलों की सेहत न बने कीमत

शिक्षा और शिक्षण में बदलाव की नीतियां अभी बन ही रही हैं कि कोरोना महामारी ने पैर पसार कर सबकुछ बदलने पर मजबूर कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 23 Jun 2020 03:00 AM (IST)Updated: Tue, 23 Jun 2020 06:04 AM (IST)
बदलता दौर है ऑनलाइन शिक्षा, पर लाडलों की सेहत न बने कीमत
बदलता दौर है ऑनलाइन शिक्षा, पर लाडलों की सेहत न बने कीमत

जेएनएन, मेरठ। शिक्षा और शिक्षण में बदलाव की नीतियां अभी बन ही रही हैं कि कोरोना महामारी ने अचानक पैर पसार कर सब कुछ तत्काल बदलने को मजबूर कर दिया। लॉकडाउन में स्कूलों के पट बंद हुए तो सबसे छोटी स्क्रीन यानी मोबाइल ही क्लास और टीचर दोनों बन गए। शुरुआत में सब कुछ नया लगा, अच्छा लगा, माता-पिता भी बच्चों संग बैठने लगे, लेकिन बढ़ते लॉकडाउन ने मोबाइल से पढ़ाई का नकारात्मक रूप भी दिखा। अधिक समय तक मोबाइल लेकर बैठने पर बच्चों व स्वजनों की आंखों में समस्या, शरीर के अलग-अलग हिस्सों यानी गर्दन, कमर, रीढ़ की हड्डी आदि में दर्द की शिकायतें होने लगीं। साथ ही ऑनलाइन शिक्षण के औचित्य पर भी अभिभावकों ने सवाल उठाए। ऑनलाइन शिक्षा नहीं तो बच्चों को क्या दें?.. इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिल सका है। दैनिक जागरण की ओर से 'ऑनलाइन शिक्षा : वर्तमान और भविष्य' पर सोमवार को आयोजित वेबिनार में स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षण को वर्तमान की जरूरत और भविष्य की तस्वीर बताया तो अभिभावकों ने प्राइमरी तक के बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास को अनुचित बताया।

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वेबिनार में ये रहे उपस्थित

ऑनलाइन शिक्षा पर आयोजित वेबिनार में स्कूल पक्ष से दीवान पब्लिक स्कूल के प्रिसिपल एके दुबे, दयावती मोदी एकेडमी की प्रिसिपल रितु दीवान, एमपीजीएस शास्त्रीनगर की प्रिसिपल सपना आहुजा, बीडीएस इंटरनेशनल स्कूल के प्रिसिपल गोपाल दीक्षित, केएल इंटरनेशनल स्कूल के प्रबंधक और निदेशक मनमीत खुराना और नगीन ग्रुप ऑफ स्कूल्स के निदेशक डा. विशाल जैन रहे। अभिभावक पक्ष से नो स्कूल-नो फीस अभियान से जुड़े अमित त्यागी, भावना भटनागर के अलावा संजीव सहरावत गंगानगर, डा. एसके चौहान गंगानगर, अरुण अग्रवाल दिल्ली रोड और अंशुल तायल मीनाक्षीपुरम रहे। इनके अलावा बेसिक शिक्षा विभाग में एकेडमिक रिसोर्स पर्सन व प्रेरणा प्रशिक्षण से जुड़े विनोद गोस्वामी ने भी बेसिक शिक्षा की तस्वीर सामने रखी।

अभिभावकों का पक्ष

-ऑनलाइन क्लास की पढ़ाई बच्चों के लिए संतोषजनक नहीं है।

-नेटवर्क की समस्या के कारण क्लास में आधी बात बच्चे समय ही नहीं पाते।

-छोटे बच्चों को वीडियो व ऑडियो का इंटरेक्शन समझने में होती है दिक्कत।

-स्कूल स्वजनों को दें विस्तृत, सहूलियत वाली किफायती तकनीक की जानकारी।

-प्राइमरी तक के बच्चों को ऑनलाइन क्लास में सबसे ज्यादा परेशानी।

-महामारी में कोई रास्ता निकालने के लिए टेक्नोलॉजी से कदम मिलाना होगा।

-ऑनलाइन एजुकेशन में कंटेंट आसानी से समझने लायक होना चाहिए।

-ऑनलाइन क्लास में एक साथ अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए। कम-कम बच्चे ही हों।

-स्वजनों के लिए स्कूल बनाएं ऑनलाइन एजुकेशन ट्यूटोरियल, समझने में होगी आसानी।

-कम खर्च में ज्यादा टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना सिखाया जाना चाहिए।

-स्कूल की तरह कई घंटे लगातार क्लास चलने से बच्चे हो रहे बीमार।

-बच्चों के साथ ही स्वजनों को भी हो रही आंख व अन्य शारीरिक परेशानी।

-विशेष तौर पर माताओं को अपना काम करने के बाद बच्चों को देना पड़ रहा पूरा समय।

-तीन महीने में भी तैयार नहीं हो सकी है ऑनलाइन एजुकेशन की रूपरेखा।

-ग्रामीण क्षेत्र के परिवार अभी भी ऑनलाइन उपकरणों में न दक्ष हैं न उपलब्धता है।

-ऑनलाइन क्लास में बच्चों को पढ़ाने का काम भी माता-पिता ही कर रहे हैं।

स्कूलों का पक्ष

-छोटी उम्र से ही बच्चे ऑनलाइन वीडियो देखकर सीखते हैं और वीडियो गेम खेलते हैं।

-विश्व में अभी तक केवल 10 फीसद स्कूल की डिजिटल लर्निग में तब्दील हो सके हैं।

-35 फीसद योजना बना रहे हैं, 31 फीसद ने सोचा भी और 24 फीसद ने अब शुरू किया है।

-स्कूल तैयार नहीं थे, पर चुनौती से लड़ रहे हैं, स्वजनों से भी चाहिए सहयोग।

-सारी सुविधाएं ऑनलाइन हो रहीं, शिक्षा भी होगी। बेहतर साफ्टवेयर बन रहे हैं।

-शिक्षक पहले केवल स्कूल के समय पढ़ाते थे, अब शाम को भी बच्चों को जवाब देते हैं।

-बच्चों की भलाई के लिए शिक्षण को बदलना पड़ा। भविष्य में भी नजरअंदाज नहीं कर सकते।

-अब स्कूलों को दाखिले में यह भी देखना होगा कि बच्चों के पास डिजिटल उपकरण हैं या नहीं।

-हर व्यवस्था अब डिजिटल हो रही है, पर शिक्षा में लोग बदलने को तैयार नहीं हैं।

-बच्चों के हित के लिए स्वजन व स्कूलों में सहयोग बढ़ाने की जरूरत है।

-ऑनलाइन शिक्षण में बच्चे व माता-पिता की नजर में शिक्षकों का महत्व बढ़ा है।

-दिन के शोर से बचने को शिक्षक रात में बना रहे वीडियो, तैयारी में थोड़ा वक्त तो लगेगा।

-बच्चों को घर से बाहर निकाल नहीं सकते, उनका साल खराब किए बिना कोई और रास्ता नहीं।

-शिक्षकों को धीरे-धीरे प्रशिक्षित कर ऑनलाइन शिक्षण के लिए किया गया तैयार।

-प्री-प्राइमरी एक घंटे, प्राइमरी डेढ़ घंटे और अन्य को तीन घंटे की ऑनलाइन क्लास।

-शिक्षकों को ऑनलाइन भी पसंद कर रहे बच्चे, अटेंडेंस हैं इस बात का सबूत।

-ऑडियो, वीडियो में ऑनलाइन उपलब्ध होगी सभी क्लास, किसी भी समय पढ़ सकेंगे बच्चे।

कलम-दवात से मोबाइल-लैपटॉप तक पहुंच गए हैं हम : सिस्टर गेल

तकनीकी खराबी के कारण वेबिनार से न जुड़ सकीं सोफिया ग‌र्ल्स स्कूल की प्रिसिपल सिस्टर गेल कहा कि हम इतिहास के नवीनीकरण के दौर में जी रहे हैं। महामारी की मार के तकरीबन एक साल होने को हैं। इससे हमारे जीवन का हर हिस्सा प्रभावित हुआ है। शिक्षा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। बल्कि शिक्षा व्यवस्था पारंपरिक से पूरी तरह मॉडर्न एजुकेशन में परिवर्तित हो चुकी है। ऐसा हमेशा से ही रहा है। यह वैश्विक सच्चाई है कि हर उत्पत्ति के पीछे बदलाव हुए हैं। कलम-दवात से लेकर हम पेन-पेपर और अब अति आधुनिक उपकरणों तक पहुंचे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि दुनियाभर में लॉकडाउन के पहले तक चॉक एंड टॉक पद्धति से ही पढ़ाई होती रही है। जिसके अपने कुछ फायदे हैं, लेकिन भविष्य अलग होगा। यह तकनीकी होगी जो शब्दों से हर जगह पहुंचाएगी। आशावादी बनकर हमें इसके सकारात्मक पहलुओं को देखना होगा ऑनलाइन एजुकेशन ने समय व स्थान की सीमाओं को तोड़ा दिया है। यह हर समय उपलब्ध है और जानकारी और ज्ञान का भंडार है। ऑनलाइन एजुकेशन की बजाय इसे एडॉप्टिव लर्निग कहना अधिक सटीक होगा, जिसमें हम स्वयं को इसे योग्य बनाएं और अपनाएं। मनुष्य जाति की यही विशेषता रही है। वह स्वयं का दायरा बढ़ाते हैं और हर बाधा को पार कर स्वयं को विकसित करते हैं।


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