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आंदोलन का एक साल : गाजीपुर बार्डर पर मेरठ के किसानों का रहा अहम योगदान

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने पर तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मंजूरी मिल गई है। लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन जारी है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Nov 2021 08:16 AM (IST)Updated: Fri, 26 Nov 2021 08:16 AM (IST)
आंदोलन का एक साल : गाजीपुर बार्डर पर मेरठ के किसानों का रहा अहम योगदान
आंदोलन का एक साल : गाजीपुर बार्डर पर मेरठ के किसानों का रहा अहम योगदान

मेरठ, जेएनएन। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने पर तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मंजूरी मिल गई है। लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन जारी है। किसान आंदोलन को आज एक साल पूरा हो जाएगा। इस आंदोलन में गाजीपुर बार्डर पर मेरठ के किसानों की मौजूदगी लगातार बनी रही। मेरठ के किसानों का आंदोलन में विशेष योगदान रहा। एक साल पूरा होने पर गाजीपुर बार्डर पर किसानों की महापंचायत होगी। जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी। मेरठ से भी इसमें भाकियू के किसान शामिल होंगे। वहीं, मेरठ में सिवाया टोल के धरने को भी 26 नवंबर को छह माह पूरे हो जाएंगे।

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'मेरठ से महापंचायत में होगी 200 लोगों की भागीदारी'

गाजीपुर बार्डर पर शुक्रवार को होने वाली महापंचायत के लिए मेरठ से भाकियू के पदाधिकारी लगभग 15 ट्रैक्टर व 20 गाड़ियों के काफिले के साथ रवाना होंगे। जिलाध्यक्ष मनोज त्यागी ने बताया कि मेरठ से लगभग 200 किसानों की महापंचायत में भागीदारी होगी।

मेरठ के किसानों की रही सक्रिय भागीदारी

भाकियू मेरठ के किसानों ने आंदोलन के शुरुआती चरण में गाजीपुर बार्डर पर पूरा सहयोग किया। गाजीपुर बार्डर पर मेरठ से प्रतिदिन किसानों की आवाजाही जारी बनी रही। रोस्टर बनाकर किसानों ने बार्डर की जिम्मेदारी संभाली। प्रतिदिन मेरठ से जाने वाले किसान अपने साथ ट्रैक्टर ट्राली में आटा, दाल, चावल आदि राशन सामग्री लेकर गाजीपुर बार्डर पहुंचते थे। किसान आंदोलन में भाकियू की तीन बड़ी ट्रैक्टर रैलियां भी मेरठ से होकर गुजरी हैं। इन तीनों रैलियों में मेरठ से भी बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए। कृषि कानूनों से छोटे किसानों को अधिक लाभ होता। ये कानून छोटे किसानों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे। छोटे रकबे के किसानों को सरकार से जो उम्मीद जगी थी, वह खत्म हो गई। राजनैतिक स्वार्थ में कुछ लोगों ने सरकार की बात को किसानों तक पहुंचने नहीं दिया। किसानों को लगातार गुमराह किया गया

वेदव्रत आर्य, मंडौरा

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तीनों कृषि कानूनों में किसानों के लिए कुछ न कुछ गलत जरूर था। तभी सरकार ने वापसी की घोषणा कर इतना बड़ा निर्णय लिया है। यदि कृषि कानूनों में बुराई न होती, तो सरकार इन्हें वापस ही नहीं करती। सरकार ने किसानों के हित में ही यह निर्णय लिया है।

कुलानंद राणा, जयसिंहपुर


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