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मिशन शक्ति : अब जमीन पर नहीं अंतरिक्ष में लड़ाई, हमारी सैन्य क्षमता बढ़ी

आज हमारे पास अलग-अलग उपग्रह हैं। ये देश के विकास में योगदान दे रहे हैं। डीआरडीओ ने लो आर्बिट सेटेलाइट पर लक्ष्य साध कर सफल परीक्षण किया।

By Ashu SinghEdited By: Published: Thu, 28 Mar 2019 12:29 PM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 12:29 PM (IST)
मिशन शक्ति : अब जमीन पर नहीं अंतरिक्ष में लड़ाई, हमारी सैन्य क्षमता बढ़ी
मिशन शक्ति : अब जमीन पर नहीं अंतरिक्ष में लड़ाई, हमारी सैन्य क्षमता बढ़ी
मेरठ,जेएनएन। आज हमारे पास अलग-अलग उपग्रह हैं। ये देश के विकास में योगदान दे रहे हैं। बुधवार को डीआरडीओ ने लो आर्बिट सेटेलाइट पर लक्ष्य साध कर सफल परीक्षण किया। इसके बाद अमेरिका,रूस,चीन के बाद भारत चौथी शक्ति बन गया है। एक आम उत्सुकता है कि आखिर ये लाइव सेटेलाइट यानी लो ऑर्बिट सेटेलाइट क्या है। इस विषय में दैनिक जागरण ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में फिजिक्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अनुज कुमार से बात की। डॉ कुमार ने बताया दो तरह के सेटेलाइट हमारे अंतरिक्ष में काम कर रहें हैं। पृथ्वी से कम ऊंचाई पर लो ऑर्बिट सेटेलाइट है। पृथ्वी से बहुत अधिक ऊंचाई पर जिओ स्टेशनरी सेटेलाइट है। लो ऑर्बिट सेटेलाइट चक्कर काटते हुए किसी भी देश के ऊपर से गुजरता रहता है। यह जिस देश के ऊपर से गुजरता है । उसके जमीन पर क्या चलता है । सभी पर नजर रखता है।
उपयोगी हैं लो आर्बिट सेटेलाइट
डा.अनुज ने बताया कि लो आर्बिट सेटेलाइट से हम मौसम का हाल जान सकते हैं। कृषि में मैपिंग में इसकी उपयोगिता है। रक्षा के क्षेत्र में सेटेलाइट की उपयोगिता तेजी से बढ़ रही है। इसकी मदद से हम जमीन के एक मीटर तक चीजों पर नजर रख सकते हैं। जमीन के अंदर की भी मैपिंग करने की क्षमता रखते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण में जब परमाणु परीक्षण किया था। तो उस समय भारत ने अमेरिका के जानकारी में आए बगैर परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया था।
बहुत मददगार आर्बिट सेटेलाइट
इसमें अमेरिका का लो ऑर्बिट सेटेलाइट जब भारत की सीमा से मूवमेंट करते हुए बाहर निकला तो उस दौरान ही परमाणु परीक्षण की सारी प्रक्रिया पूरी की गई। लो आर्बिट सेटेलाइट की खासियत होती है कि वह अर्थ के बाहर लगातार घूमती रहती है। इस भ्रमण के दौरान वह एक देश से दूसरे देश की सीमाओं तक भी चली जाती है। अभी हाल ही में बालाकोट पाकिस्तान के अंदर जिस तरह से एयर स्ट्राइक किया गया । उसमें भी सम्भवत:आर्बिट सेटेलाइट की मदद ली गई हो।
बालाकोट पर निगरानी में बनी थी 'सेना की आंख'
रक्षा विशेषज्ञ कर्नल नरेंद्र सिंह ने बताया वर्ष 1995 में लो ऑर्बिट सेटेलाइट के जरिए ही अमेरिका ने पोखरण पर नजर बनाकर रखी थी, जिससे परमाणु परीक्षण का पहला प्रयास बुरी तरह विफल रहा था। साल 1998 में इन्हीं सेटेलाइटों से नजर बचाते हुए सेना व वैज्ञानिकों ने परमाणु परीक्षण करने में सफलता हासिल की थी। देश की सुरक्षा के लिए खतरा महसूस होने वाले ऐसे ही लो ऑर्बिट सेटेलाइटों को मार गिराने के लिए ही एंटी सेटेलाइट वीपन का इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे ऑपरेशनों में भारतीय सेना की आंख यही उपकरण था जिससे टारगेट में मौजूद हर व्यक्ति की उपस्थिति दर्ज की जा सकी और टारगेट को सटीक निशाने पर मारने में सफलता मिली। भविष्य के युद्ध जमीन पर नहीं बल्कि आसमान और अंतरिक्ष के होंगे। इस दिशा में अब देश मजबूत स्थिति में पहुंच चुका है। इससे जहां हम अपनी सीमाओं को सुरक्षित कर सकते हैं वहीं अपने दुश्मन की हर हरकत पर निरंतर निगरानी कर सकते हैं। यह कई प्रकार और अलग-अलग क्षमता के होते हैं जिससे हर टारगेट को निशाना बनाया जा सकता है।
इनका कहना है
दुनिया में कभी नासा का दबदबा था,लेकिन भारतीय इसरो सेंटर भी अंतरिक्ष की दुनिया में आगे बढ़ रहा है। सेटेलाइट पर सफल परीक्षण से यह पूरे विश्व को पता चल गया कि भारतीय वैज्ञानिक ऐसी तकनीकी बनाने में सक्षम हैं।
- प्रो. वीरपाल सिंह, विभागाध्यक्ष, भौतिक विज्ञान, सीसीएसयू
आज कोई भी लड़ाई हो, जल, थल और नभ हर जगह सटीक सूचना की जरूरत होती है। सटीक सूचना सेटेलाइट ही भेजते हैं। जिस तरह से देशी तकनीकी से लो आर्बिट सेटेलाइट को टारगेट किया गया। वह स्पेस की दुनिया में एक लंबी छलांग है। इससे सैन्य शक्ति चार गुना और बढ़ जाएगी।
- डा. वीरेंद्र आर्य, प्राचार्य, डीएन पालीटेक्निक कॉलेज
डीआरडीओ एडवांस टेक्नोलॉजी पर कार्य कर रही है। स्पेस वैज्ञानिक स्वदेशी तकनीकी को लगातार समृद्ध बना रहे हैं। आर्बिट सेटेलाइट पर सफल प्रशिक्षण देश की बड़ी उपलब्धि है।
- डा. बीएस यादव, प्राचार्य व भौतिक विज्ञानी डीएन डिग्री कॉलेज
रक्षा वैज्ञानिकों ने एक सफल परीक्षण किया है। आज अमेरिका सेटेलाइट की मदद से ही पूरे विश्व पर निगरानी करता है। देश की सुरक्षा के लिए यह परीक्षण भविष्य में उपयोगी साबित होगा।
- दीपक शर्मा, जिला विज्ञान समन्वयक 

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