अब स्क्त्रीन पर मेरठ की जनता को मिले पेयजल की एक-एक बूंद का हिसाब
मेरठ। शहर की जनता को कितना पानी मिला। जमीन से कितना पानी निकाला गया और टैंकों में कितना पानी शेष है।
मेरठ। शहर की जनता को कितना पानी मिला। जमीन से कितना पानी निकाला गया और टैंकों में कितना पानी शेष है। कौन का नलकूप क्षमता से कम काम कर रहा है। ऐसे ही बहुत से सवालों का जवाब पल-पल निगम को मिल रहा है। स्काडा योजना के तहत 158 में से 65 नलकूपों को ऑटोमेटिक सिस्टम से जोड़कर ऑनलाइन कर दिया गया है। जल्द शहर के सभी नलकूप और वाटर टैंक अपनी पल पल की गतिविधि की जानकारी ऑनलाइन देने लगेंगे। अपने आप चलेगा, पूरा हिसाब देगा नलकूप
केंद्र सरकार की स्काडा योजना के तहत मेरठ शहर की पेयजल व्यवस्था को भी ऑटोमेटिक तथा ऑनलाइन करने का काम जल निगम की यांत्रिक शाखा द्वारा किया जा रहा है। सभी नलकूपों पर स्काडा सिस्टम लगाया जा रहा है। इसके बाद वे निर्धारित समय पर अपने आप चलते हैं और बंद होते हैं। जमीन मे पानी निकालना तथा जनता को आपूर्ति करने के लिए किसी आपरेटर की जरूरत नहीं है। सभी पर सीसीटीवी कैमरे तथा सिमयुक्त सिस्टम से जोड़कर ऑनलाइन किया जा रहा है। नलकूप कब चला, कब बंद हुआ, कितना पानी निकाला, कितना आपूर्ति किया, नलकूप अपनी क्षमता के मुताबिक काम कर रहा है या नहीं, टैंक में कितना पानी है ये सभी जानकारियां उपलब्ध होंगी। टैंक का स्तर कम होते ही नलकूप का अपने आप चल जाना भी संभव होगा। 158 में से 65 ऑनलाइन, निगम में कंट्रोल रूम
जल निगम कोरोनेट इंजीनिय¨रग प्रा. लि. से यह कार्य करा रहा है। नगर निगम में कंट्रोल रूम बन गया है। वहां लगी स्क्रीन पर 65 नलकूपों तथा उनसे जुड़े पानी टैंक की जानकारियां मिल रही हैं। जल निगम अफसरों की माने तो अगस्त 2018 तक पूरे शहर के नलकूपों को ऑनलाइन कर दिया जाएगा।
भोलाझाल का प्लांट भी शहर की मांग पर चलेगा
जल निगम ने भोलाझाल पर स्थापित गंगाजल प्लांट तथा उससे जुड़े शहर में स्थापित छह भूमिगत जलाशयों को भी स्काडा सिस्टम से जोड़कर ऑनलाइन कर दिया है। अब शहर के भूमिगत जलाशयों में पानी का स्तर कम होते ही भोलाझाल का प्लांट भी खुद चलने लगता है। देर से पैसा दे रहा निगम
जल निगम के एक्सईएन अमित सहरावत ने बताया कि कुल 20 करोड़ के प्रोजेक्ट में 33.33 फीसदी राशि केंद्र से, 33.67 फीसदी प्रदेश से तथा 33 फीसदी राशि नगर निगम द्वारा दी जानी है। दो किश्त मिल चुकी हैं। इसमें से केंद्र और प्रदेश का हिस्सा मिल गया गया। अभी तक 12 करोड़ रूपया मिला है। नगर निगम से दूसरी किश्त का 2.72 करोड़ रुपया मिलना बाकी है। तीसरी किश्त समय से मिली तो काम समय से खत्म कर लिया जाएगा। स्काडा के ये होंगे लाभ
- निर्धारित समय पर अपने आप शुरू होगी पेयजल आपूर्ति और बंद होगी।
- वाटर टैंक में पानी हमेशा फुल रहेगा।
- नलकूपों और वाटर टैंकों पर ऑपरेटर की जरूरत नहीं होगी। वे अपने आप काम करेंगे।
- नलकूप और वाटर टैंक की गतिविधियों पर नजर रखने का काम सीसीटीवी कैमरे से होगा।
- न व्यर्थ में पानी बहेगा और न ही बिजली का फालतू खर्च होगा।
- मेंटीनेंस और संचालन का खर्च कम होगा। मोटर भी नहीं फुकेंगे।
- भोलाझाल पर बना प्लांट भी तब चलेगा जब जरूरत होगी।
किस शहर की कितनी प्यास, जानेगी सरकार
प्रदेश शासन का आदेश है कि प्रदेश के जिन शहरों में पेयजल योजना को स्काडा सिस्टम से जोड़ा गया है उनकी स्क्रीन का कनेक्शन लखनऊ मुख्यालय से भी किया जाये। इसके माध्यम से सरकार प्रदेश के शहरों की पेयजल आपूर्ति की मात्रा की रोजाना मॉनिट¨रग कर सकेगी। यह भी जाना जा सकेगा कि किस शहर की पेयजल की कितनी खपत है। हटा लो आपरेटर, अब जरूरत नहीं
स्काडा सिस्टम से रखरखाव और संचालन के मद में खर्च होने वाला नगर निगम का काफी पैसा बचेगा। संचालन के लिए ऑपरेटरों को लगभग 32 लाख मासिक तथा रखरखाव के लिए 16 लाख रुपये मासिक का भुगतान किया जाता है। जल निगम के एक्सईएन अमित सहरावत ने हाल ही में पत्र भेजकर 65 ऑनलाइन नलकूपों से आपरेटर हटा लेने की मांग की है।