LokSabha Election 2019 : रुका गन्ना भुगतान बन सकता है बड़ा मुद्दा
इस बार लोकसभा चुनाव में गन्ना मूल्य भुगतान वेस्ट यूपी की राजनीति को प्रभावित कर सकता है। गन्ना भुगतान को लेकर अब भी धरना प्रदर्शन का दौर जारी है।
मेरठ, जेएनएन। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति का फलसफा गन्ना के बगैर अधूरा है। बेशक, अन्य स्थानों पर गन्ने के मायने महज फसल के रूप में समझे जाते हों,लेकिन वेस्ट यूपी में यह सियासत का अहम पहलू है। चुनाव से पहले सियासी मंचों से मीठे गन्ने के सहारे शुरू होती है कड़वी राजनीति। वोटों के लिए किसानों की घेराबंदी होती है,भुगतान से लेकर मूल्य बढ़ोत्तरी तक तमाम वादे भी..लेकिन चुनाव निपटते ही ये वादे भी निपट चुके होते हैं। कभी पर्ची की दिक्कत तो कभी चीनी मिलों के चलने-बंद होने का रोना। कभी भुगतान तो कभी गन्ना मूल्य बढ़ोत्तरी। पांच साल तक मुसीबतों के ‘सरकारी क्रेशर’ में गन्ने की मानिंद होती है किसानों की ‘पेराई’। एक बार फिर लोकसभा चुनाव सामने है और गन्ना खेतों में। किसान भी उम्मीदों के साथ नेताओं की तरफ टकटकी लगाए हैं। देखना यह है कि गन्ना किसानों को हक मिलेगा या ऐसे ही होती रहेगी उनकी हकतलफी..।
राजनीति तो होती है,गन्ना किसानों का भला नहीं
अविभाजित मेरठ (गाजियाबाद, हापुड़ और बागपत) सहित समूचे क्षेत्र की राजनीति में गन्ना हमेशा अहम रहा है। नूरपुर गांव के अति साधारण किसान परिवार से निकलकर चौ. चरण सिंह प्रधानमंत्री बने तो खेती और गन्ने की ही बदौलत। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत कहते हैं कि किसानों और नेताओं के लिए गन्ना कभी मुद्दा हुआ करता था तो हुकूमत के लिए सिरदर्द। पर, पिछले एक दशक से नेताओं और उनके घोषणा-पत्रों में गन्ने का कालम खाली है। कुछ हद तक गन्ना किसान भी इसके जिम्मेदार हैं। मेरठ की बैकिंग, बाजार, अर्थव्यवस्था पूरी तरह से गन्ने पर केंद्रित है। गन्ना भुगतान नहीं होने बाजार शिथिल हैं। किसान खाद, बीज, पानी, कीटनाशक आदि के लिए मोहताज हैं। खुद को किसान हितैषी बताने वाले संगठनों के आंदोलनों को सरकार और मिल मालिकों ने गंभीरता से नहीं लिया। टिकैत का कहना है, मिल मालिक चाहते हैं कि वह गन्ना तो खरीद लें लेकिन भुगतान सरकार करे। मेरठ के पूर्व सांसद चौधरी महाराज सिंह भारती के पौत्र और प्रगतिशील किसान मनीष भारती ने कहा कि पिछले पांच साल में गन्ने पर मात्र 15 रुपये बढ़े हैं। पिछले साल योगी सरकार ने 19 रुपये बढ़ाए थे। इस साल बढ़ोतरी नहीं हुई है।
किसान संगठनों ने किए कई बार प्रदर्शन
पश्चिम उत्तर प्रदेश के बड़े जिलों में शामिल बुलंदशहर में पिछले दस साल में लगातार गन्ना उत्पादन बढ़ रहा है। उत्पादन वृद्धि के साथ किसानों की समस्याओं में भी इजाफा हुआ है। जिले की शुगर मिलों पर किसानों का बकाया भुगतान अटका है। किसान संगठनों ने कई बार विरोध प्रदर्शन किए और लोकसभा चुनाव में नोटा की चेतावनी भी। पिछले दिनों चोला क्षेत्र के 28 गांवों में ‘भुगतान नहीं तो वोट नहीं’के बैनर भी लगे थे। पिछले लोस चुनाव में गन्ना मुद्दा नहीं बना लेकिन इस बार अटका भुगतान जिले की राजनीति में बड़ा मुददा बनकर उभर रहा है। जिले में चार शुगर मिल और 1,75,000 गन्ना किसान हैं। इस बार गन्ना रकबा 66,870 हैक्टेयर है जबकि पिछले साल 54,747 था।
गन्ने पर होती रही है राजनीति
पश्चिम उत्तर प्रदेश की सियासत के केंद्र में गन्ना हमेशा से रहा है। कैराना उपचुनाव में गन्ना और जिन्ना का मुद्दा जमकर चला। लोकसभा चुनाव में भी गन्ना मुद्दा बनेगा, यह तय है। इस साल का गन्ना भुगतान नहीं होने से किसान संगठन भी घेराबंदी की रणनीति बना रहे हैं। वर्ष 1976 में पूर्व प्रधानमंत्री चौ.चरण सिंह के जमाने में गन्ना बड़ा मुद्दा बना। 2007 में गन्ना प्रदेश सरकार के सामने बड़ी समस्या बनकर उभरा। तत्कालीन बसपा सरकार में गन्ना मूल्य बढ़ोत्तरी के लिए किसान सड़कों पर उतर आए थे। भाकियू सुप्रीमो महेन्द्र सिंह टिकैत की अगुवाई में बड़ा आंदोलन हुआ था। रालोद प्रमुख चौ. अजित सिंह भी गन्ना मूल्य बढ़ाने की जंग में कूद पड़े थे। शामली शुगर मिल पर चौ. अजित सिंह के नेतृत्व में किसानों का बड़ा धरना हुआ। वर्ष 2014 में दंगे की तपिश में गन्ना बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया। 14 दिन में भुगतान और गन्ने के रेट नहीं बढ़ाने से किसान क्षुब्ध हैं।
विपक्ष के बोल..भाजपा नहीं किसान हितैषी
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफेसर सुधीर पंवार का कहना है, भाजपा सरकार मे गन्ना किसान बदहाल हैं। लागत मूल्य बढ़ने के बाद भी इस साल सरकार ने गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी नहीं की है। लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव जीतने के मकसद से पीएम ने 14 दिन में भुगतान का वायदा किया था लेकिन भुगतान के लिए किसानों को धरना देना पड़ा। गन्ना मंत्री के आश्वासन के बाद भी किसानों को बकाया पर ब्याज नहीं मिल पाया है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष पंकज मलिक का कहना है, भाजपा सरकार ने किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के बजाय उन्हें ठगा है।
राजनीति का रुख बदलता रहा है गन्ना
पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ना सियासत का भी मुद्दा है। कांग्रेस के खिलाफ किसान राजनीति के अगुआ रहे पूर्व पीएम चौ. चरण सिंह संसद में गन्ना किसानों की आवाज बने। 1969 के विधानसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में बीकेडी जैसी नई पार्टी 99 विधायक बनाने में कामयाब रही थी। अस्सी के दशक में गन्ना राजनीति तेज हुई। 1977 का लोकसभा चुनाव हो या बोफोर्स विवाद के बाद 1989 का संसदीय चुनाव, गन्ना किसानों ने कांग्रेस के खिलाफ वोट किया। गन्ना मूल्य का मुद्दा चुनाव परिणाम में उलटफेर की वजह बना। 1989 में शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर भाकियू सुप्रीमो महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में प्रदर्शनकारी किसानों पर पुलिस फायरिंग और लाठीचार्ज के बाद लखनऊ व दिल्ली में गन्ने की राजनीति अहम हो गई। अराजनैतिक भाकियू भी सियासत के मोह से बच नहीं पाई। टिकैत ने भाकियू की राजनीतिक विंग भारतीय किसान कामगार पार्टी बनाई, जिसमें चौधरी अजित सिंह को अध्यक्ष का जिम्मा दिया गया। 1996 के विस. चुनाव में पार्टी के 12 विधायक जीते। हालांकि चुनाव से पहले ही टिकैत ने किनारा कर लिया था। 2004 में भाकियू ने नई पार्टी बहुजन किसान दल बनाई। कांग्रेस से गठबंधन में बीकेडी 16 सीटों पर चुनाव लड़ी,लेकिन कोई विधायक नहीं जीता।
इनका कहना है
आजादी के बाद से अब तक गन्ने पर किसी सरकार ने इतना काम नहीं किया है, जितना योगी सरकार ने किया है। 2015-16 में सपा सरकार ने गन्ना किसानों का कुल 18003 करोड़ का भुगतान किया था। योगी सरकार वर्ष 17-18 का अब तक 35200 करोड़ का भुगतान कर चुकी है। इस साल भी अब तक 11347 करोड़ का भुगतान हो चुका है। 400 करोड़ की लागत से रमाला मिल की क्षमता वूद्धि, 152 करोड़ की लागत से मोहिउद्दीनपुर की क्षमता वूद्धि व 10 साल से बंद बुलंदशहर व वीनस चंदौसी, दया शुगर मिल सहारनपुर को चलाया गया है। अनेक मिलों की क्षमता बढ़ाई है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी भाव कम होने के बावजूद पिछले पांच साल का बकाया भुगतान कराना सरकार की बड़ी उपलब्धि है।
- सुरेश राणा, गन्ना मंत्री
गन्ने पर सियासत बंद होनी चाहिए। सभी विभागों में डिजिटल पेमेंट की सुविधा कर दी गई है। गन्ने के दाम चीनी के रेट पर नहीं, किसानों की लागत पर निर्धारित होने चाहिए। जब तक सरकार मिल मालिकों के साथ खड़ी रहेगी, किसान का भला नहीं हो सकता। गन्ना किसानों की आवाज दबाने वाली सरकार दोबारा नहीं आती। इस वर्ष गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाया गया। चुनाव के बाद नेता मालामाल लेकिन किसान कंगाल हो जाते हैं।
- चौ. नरेश टिकैत, राष्ट्रीय अध्यक्ष भाकियू
मोदी और योगी सरकार ने किसानों को सिर्फ छला है। गन्ना किसानों की हालत दयनीय है। कागजों में रिकार्ड भुगतान दिखाने वाली भाजपा गांवों में किसानों के बीच क्यों नहीं जाती? गन्ना भुगतान बकाया चुनावी एजेंडे में ऊपर होगा।
- चौ. अजित सिंह, रालोद प्रमुख
हर सरकार में किसानों को गन्ना भुगतान के लिए आंदोलन करना पड़ता है। किसान व कृषि किसी सरकार के एजेंडे में नहीं है। 1967 के बाद किसान की स्थिति खराब हो गई। किसान की फसलों के भाव मे कुल 18 फीसद वृद्धि हुई है जबकि उद्योगों में तैयार उत्पादों के भाव 150 से लेकर 200 फीसद बढ़े हैं। अगर सरकारी नौकरी में वेतन में भी 150 से 250 फीसद तक वृद्धि हुई है
- अनिल मलिक,राष्ट्रीय महासचिव,भाकियू भानू गुट