समीकरण का नया संगीत, हर हाल में हो चुनाव में जीत
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर नए सिरे से हुए आरक्षण ने चुनाव के रोमांच को बढ़ा दिया है।
मेरठ, जेएनएन। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर नए सिरे से हुए आरक्षण ने चुनाव के रोमांच को भले ही बढ़ा दिया हो, लेकिन गांव-देहात के तमाम लोगों की राजनीति को लगभग ठंडा कर दिया है। ऐसे में अपनी शाख और पहचान को पुख्ता करने के लिए दावेदारों ने नए दांव चले हैं। आरक्षण बदलने के बाद बदली सीट पर पत्नी को आगे कर अपनी मंशा पूरी करने की नए सिरे से कोशिश शुरू की है।
प्रदेश सरकार ने पहले ग्राम पंचायत के आरक्षण का आधार वर्ष 1995 में हुए चुनाव को बनाकर आरक्षण जारी कर दिया। आरक्षण जारी होते ही तमाम सीटों का समीकरण बिगड़ गया। आरक्षण ने ऐसे तमाम दावेदारों को मौका उपलब्ध कराया, जो पिछले काफी समय से चुनाव मैदान में उतरने के इंतजार में थे। लेकिन एक बार फिर आरक्षण का चार्ट बदला और फिर तमाम दावेदारों के सपने चूर-चूर हो गए। जिले की लगभग सभी ग्राम पंचायतों के साथ ग्राम पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के वार्ड तक पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा। आरक्षण ने तमाम ऐसी सीटों को महिला के खाते में दर्ज करा दिया, जिस पर पुरुष दावेदारी जता रहे थे। अब बिगड़े चुनावी गणित को ठीक करने के लिए पुरुष दावेदारों ने अपनी पत्नी को मैदान में उतारना शुरू कर दिया है। जबकि कई ने बदले वर्ग के बाद अपने करीबियों पर भी दांव लगाया है।
पीढि़यों के रिश्ते, पार्टी का हवाला
ग्राम प्रधान पद के लिए हालांकि अभी किसी भी दल ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है, लेकिन गांवों का माहौल पूरी तरह से पार्टी बाजी में रंग चुका है। पार्टी के साथ विचारधारा, पीढि़यों के रिश्ते, अच्छे-बुरे समय में साथ देने का हवाला देकर माहौल बनाया जा रहा है।
महिला प्रधान सीट की स्थिति
38 - एससी महिला
47 - ओबीसी महिला
76 - सामान्य महिला
161 - कुल सीट