National Girl Child Day 2020: हर घर को रोशन करती हैं बेटियां, आने वाला कल हैं बेटियां
National Girl Child Day 2020 बेटियों के जन्म और परवरिश के लिए बदल रही है माता-पिता और समाज की सोच।
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। खिलती हुई कलिया हैं बेटियां, मां बाप का दर्द समझती हैं बेटियां, घर को रोशन करती हैं बेटियां, लड़के आज हैं तो आने वाला कल हैं बेटियां। बेटियों के लिए यह पंक्तियां बिल्कुल सटीक है। सच है कि हर घर की रोशन बेटियों से ही होती है। आज बेटियों के जन्म और परवरिश को लेकर माता-पिता की मानसिकता बदली है। बल्कि बेटियों ने भी घर परिवार से निकलकर हर क्षेत्र में अपना अलग मुकाम और पहचान बनाई है। अब बेटियां न सिर्फ बुढ़ापे में माता-पिता का सहारा बन रही है, बल्कि बेटों से बढ़कर उनकी हर परेशानी में साथ खड़ी है। 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर ऐसे परिवारों से बातचीत की गई जहां माता-पिता की सारी खुशियां उनकी बेटियों से जुड़ी हुई है।
सबसे बढ़कर बेटियां
सरस्वती लोक निवासी डा. अनुजा गर्ग के दो बेटियां है अनुष्का और अनन्या। अनुजा कहती है कि उनके लिए सबसे बढ़कर उनकी बेटियां है। एक जमाना था जब लोग बेटियों को बेटों के समान नहीं समझा जाता था। लेकिन अब बेटियां हर क्षेत्र में आगे बढ़कर माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं। एक होनहार बेटी बेटों से कहीं आगे है। जो हमेशा मां के अनमोल होती है।
नहीं बेटियां बेटों से कम
साकेत निवासी स्वाति गुप्ता और अतुल गुप्ता के दो बेटियां है, श्रृंखला और अंशिका। एक आइआइएम इंदौर में अपनी पढ़ाई कर रही है और दूसरी पीएचडी। स्वाति कहती है कि श्रृंखला और अंशिका से ही घर की खुशियां हैं। दोनों की परवरिश बेटों से बेहतर की गई है। आज दोनों इस मुकाम पर है कि अपना भविष्य स्वयं बना सकती हैं। जहां तक बेटियों को लेकर लोगों की मानसिकता है तो बेटियां सभी को प्यारी होती है, बस समाज बढ़ रहे अपराध और घटनाओं को देखकर डर लगता है। क्योंकि बेटियां बहुत नाजुक होती है और उन्हें बहुत प्यार और देखभाल की जरूरत होती हैं।
समय के साथ बदलनी होगी सोच
अंसल टाउन निवासी अंजलि शर्मा और मनोज कुमार शर्मा के दो बेटियां है तान्या और गार्गी। दोनों ही बीटेक कर रही है। अंजलि का कहना है अब समय बदल रहा है। हमें भी अपनी सोच बदलनी होगी। कब तक बेटे और बेटियों में हम फर्क करते रहेंगे। जबकि हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि बेटियां माता-पिता के दिल के ज्यादा करीब होती है।
इन्होंने बताया
शास्त्रों के हिसाब से बेटियों का मुखाग्नि देना कुछ गलत नहीं है। हालांकि भारतीय संस्कृति में ऐसा नहीं किया जाता है। कुछ विशेष उपाय करके बेटियां भी बेटों की तरह ही सभी कर्मकांड कर सकती हैं।
- महामंडलेश्वर नीलिमानंद महाराज, बाबा मनोहर नाथ मंदिर सूरजकुंड
दो दशक पहले तक लोगों की मानसिकता बेटे और बेटी के लिए अलग-अलग थी। बेटी को ही नहीं बेटी की मां को समाज में वह स्थान प्राप्त नहीं था। जो एक बेटे की मां को था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। लोग बेटियों के जन्म पर खुशियां बनाते हैं, उनकी बेहतर परवरिश करते है और बेटियां भी बुढ़ापे में माता-पिता का सहारा बनती है। हालांकि यह बदलाव अभी भी शहरों में दिखने को मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी वहीं पुरानी मानसिकता है, और लोग आज भी बेटों की चाह अधिक रखते हैं।
- डा. लता कुमार, विभागाध्यक्ष समाजशास्त्र शहीद मंगल पांडे डिग्री कालेज