अनहद : हर्ष फायरिंग का विषाद, बेटे के ब्याह में बुलेट राजा बने घूम रहे थे मुकेश सिद्धार्थ Meerut News
अखिलेश सरकार में समाज के पिछले वर्ग को सशक्त कर मुख्यधारा में स्थापित की जिन पर जिम्मेदारी थी वह मुकेश सिद्धार्थ पिछले दिनों बेटे के ब्याह में बुलेट राजा बने घूम रहे थे।
मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। अखिलेश सरकार में समाज के पिछले वर्ग को सशक्त कर मुख्यधारा में स्थापित की जिन पर जिम्मेदारी थी, वह मुकेश सिद्धार्थ पिछले दिनों बेटे के ब्याह में बुलेट राजा बने घूम रहे थे। दूल्हे संग दनादन ठांय-ठांय किया और समधी होने का रौब झाड़ते बरात लेकर पहुंचे। यह हाल तब है जब पिछले चार महीने में झूठी शान वाली, बेतुकी हर्ष फायरिंग में दो की जान चली गई और छह बुरी तरह जख्मी हुए। पता नहीं और कितने नॉन रिपोर्टेड केस होंगे लेकिन समाज के ऐसे जिम्मेदारों का रौब गालिब के लिए तमंचे पर डिस्को करने-कराने का गैर जिम्मेदाराना शौक जब अदालतों के आदेश को हवा में उड़ाता दिखता है तो चिंता बढ़ जाती है। सवाल तब और भी गंभीर हो जाते हैं जब ऐसे लोगों को अपने किए पर शर्म नहीं आती, पछतावा नहीं होता। उल्टे गुगोर्ं से कैंपेन चलवाकर खुद को जस्टीफाई करते हैं।
कानून के हाथ लंबे
हर्ष फायरिंग पर सपा नेता तो घिरे ही हैं, लेकिन सवालों के बड़े घेरे में पुलिस-प्रशासन है। दबंग स्टाइल में खुलेआम बीच बरात फायरिंग होती रही लेकिन जिम्मेदारों के कान तक बात नहीं पहुंची जबकि उस आयोजन में कई खाकीधारियों ने भी दावत उड़ाई थी। जहां गोली चली, वहां से थाना वाकिर्ंग डिस्टेंस पर है, उन्हें भी खबर ही नहीं लगी। भला हो नेताजी का और उनके गुगोर्ं का जिन्होंने अपनी शान बघारने को खुद ही हर्ष फायरिंग का वीडियो वायरल किया। मीडिया ने हो-हल्ला मचाया तो मुकदमा लिखा गया यानी पुलिस का खुफिया तंत्र फेल, खबरी व्यवस्था, बीट की जिम्मेदारी, थाने की नजरदारी सब कुछ औंधे मुंह। बात यहीं खत्म नहीं होती, इसे पुलिस के इकबाल का रसातलगामी होना ही कहेंगे कि 100 घंटे में भी आरोपित तक वह पहुंच नहीं पायी है। मेरठ पुलिस ने कानून के लंबे हाथ को छोटा कर दिया है।
जिम्मेदारी की जवाबदेही किसकी
खुशी मनाने के दिखावे में जब भी आसमान की ओर नाल उठती है, गोली दनदनाती हुई निकलती है तो उस बंदूकबाज को कानूनी शिकंजे में जकड़ने की जिम्मेदारी थानेदार की होती है। आइजी प्रवीण कुमार ने पिछले दिनों सख्ती भी दिखाई थी। जिन चार इलाकों परतापुर, जानी, दौराला और कंकरखेड़ा में हर्ष फायरिंग हुई थी और लोग घायल हुए थे वहां के थानेदारों को दोषियों पर कार्रवाई कर रिपोर्ट तो तलब की ही थी, कप्तान से इन थानेदारों की भी जांच कर कार्रवाई को कहा था। कैलेंडर का पन्ना पलट गया, न जांच हुई न रिपोर्ट पर ही बात बढ़ी। सबकुछ दिखावा और कार्रवाई सिफर। हां, लालकुर्ती थाने का नाम इस सूची में और जुड़ गया। अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर जब हर्ष फायरिंग रोकने के जिम्मेदार कोई कदम नहीं उठा पाए तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जवाबदेही वाले साहब क्यों मौन हैं?
कारतूसों का हिसाब कहां?
झूठी शान में हवाई फायरिंग करने वालों पर लगाम कसने के लिए कप्तानों के कप्तान ने महीनेभर से भी पहले निर्देश दिया था कि लाइसेंसधारी बंदूकबाजों की कारतूसों का हिसाब लिया जाए। खरीदे गए कारतूस और खाली खोखों की बैलेंस शीट तैयार हो ताकि यह पता चल सके कि गोली कहां और किन परिस्थितियों में चलाई गई है। इसके दो प्रत्यक्ष लाभ थे। अगर हिसाब-किताब शुरू हो जाए तो हर्ष फायरिंग में लिप्त संभावितों की एक सूची निकल आएगी जिसमें से उन्हें छांटना आसान हो जाएगा जो घुड़चढ़ी, चढ़त या वरमाला के दौरान हवाई फायर का प्रदर्शन करते हैं। दूसरा कि हर्ष फायरिंग की सोचने वाले लोग भी ठिठक जाएं। लेकिन दुर्भाग्य..। एक महीना बाद भी आइजी के इस निर्देश पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं। पुलिस का यह रवैया दर्शाता है कि हर्ष फायरिंग पर कार्रवाई तो दूर, रोकना भी उनके एजेंडे में नहीं है।