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Survey Report: पांच में एक बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य खराब, पढ़ि‍ए इसके प्रमुख कारण व बचने के उपाय

सीबीएसई ने स्कूलों के लिए तैयार की है। सर्वे में यह बात सामने आई है कि देश में हर पांच बच्‍चों के बाद एक बच्‍चे का मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य खराब है। इस बारे में पूरी तथ्‍य दिया गया। इसके कारण और बचाव के तरीके को जानें।

By Edited By: Published: Sat, 07 Nov 2020 06:30 AM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 07:28 PM (IST)
Survey Report: पांच में एक बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य खराब, पढ़ि‍ए इसके प्रमुख कारण व बचने के उपाय
पांच में एक बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य खराब।

अमित तिवारी, मेरठ देश में मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक कल्याण सबसे उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-2016 दर्शाता है कि हमारे देश में ऐसे करीब 15 करोड़ नागरिक हैं, जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य कल्याण के लिए देखभाल और सहायता की आवश्यकता होती है। इनके अतिरिक्त 70 से 90 फीसद लोग सही समय पर गुणवत्ता युक्त सहायता प्राप्त नहीं कर सके।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किशोर आयु समूह में आत्म क्षति दर वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक संख्या में पाई जाती है। अधिकांश शारीरिक बीमारियों के लिए भावनात्मक तनाव और अन्य चिंताएं प्रमुख कारक हैं। शोध बताते हैं कि पांच में एक बच्चा और किशोर तनाव, चिंता धमकाने, अधिगम नि:शक्तता या शराब और मादक द्रव्यों के सेवन जैसी मानसिक स्वास्थ्य चिंता का सामना करता है। स्कूलों की है प्रमुख जिम्मेदारी सीबीएसई का कहना है कि स्कूल और परिवार महत्वपूर्ण सामाजिक इकाइयां हैं।

स्कूलों की प्रमुख जिम्मेदारी है कि वह छात्रों को शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति प्रोत्साहित करें और बेहतर बनाएं। स्कूल छात्रों की मनोवैज्ञानिक जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करें। इस बाबत सीबीएसई ने मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण नामक पुस्तिका स्कूलों के लिए तैयार की है।

पुस्तिका का उद्देश्य है केयर सी-क्रिएट : छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा करना।

ए-एड्रेस : स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को संबोधित करना।

आर-रिडिफाइनिंग : हितधारकों की भूमिकाओं औैर जिम्मेदारियों को पुन: परिभाषित करना।

ई-इलूसिडेटिंग: मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और छात्रों के कल्याण के लिए नवाचार के तरीकों और सर्वोत्तम प्रथाओं को लागू करना।

पांच चरणों में अलग-अलग है फोकस एरिया प्री-प्राइमरी से प्राइमरी शाखा

- बच्चों को दिनचर्या में बदलाव के लिए तैयार करना चाहिए।

- बैठने की व्यवस्था बदलने की बात करनी चाहिए।

- समूह कार्य से जुड़ी गतिविधियों को सुगम बनाना चाहिए।

- बच्चों का नई कक्षाओं या नए ब्लाक से परिचय कराना चाहिए।

मां के रूप में शिक्षक से विषय शिक्षक बनना

-बच्चे को यह समझने में मदद करें कि परिवर्तन के दौरान चिंतित होना स्वाभाविक है।

-सत्र शुरू होने से पहले ही परिचय कराने की योजना बनाएं।

-बच्चों को उन सभी शिक्षकों से मिलवाना बेहतर होगा जो उन्हें पढ़ाएंगे।

पेंसिल से पेन में बदलाव

-बच्चे की तैयारियों को इन बातों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

-नौ साल की उम्र एक अच्छा समय है।

-बच्चे को अच्छे फाउंटेन पेन से लिखने को प्रोत्साहित करना चाहिए।

-बारीक गतिक और आंख-हाथ समन्वय गतिविधयों का अभ्यास करवाना चाहिए।

प्राइमरी से मिडिल

-शारीरिक परिवर्तनों व किशोरों की चिंताओं से संबंधित कार्यशालाओं का आयोजन।

- धमकाने और इसके बुरे प्रभाव पर कक्षा में बातचीत करें।

- सिलेबस में नए बदलाव को विस्तार से बताना चाहिए।

- जिन बच्चों के प्रति शैक्षणिक एवं व्यवहार संबंधी चिंता है, उनके लिए साथी प्रणाली शुरू करें।

कक्षा नौ से 12वीं तक

- करियर मार्गदर्शन कार्यशालाओं का आयोजन।

- हर बच्चे को हर स्ट्रीम और उससे जुड़ी करियर संभावनाओं की जानकारी साझा करें।

- इस आयु वर्ग को साइबर दुनिया के खतरों पर चर्चा करना अत्यंत आवश्यक है।


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