राजधानी के यात्रियों को शुद्ध हवा दे रहा मेरठ का फिल्टर
0.3 माइक्रान के सूक्ष्म कण और बैक्टीरिया भी साफ कर देता है यह एयर फिल्टर। भाभा, इसरो, भेल, और एनटीपीसी बड़े खरीदार।
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। अगर आप राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनों से सफर करने के बाद तरोताजा नजर आते हैं तो इसकी वजह मेरठ में बने एयर फिल्टर हैं। ये फिल्टर 0.3 माइक्रान के अति सूक्ष्म कणों को साफ कर कोच में शुद्ध हवा फेंकता है। यूरोपियन मानकों पर बने ये फिल्टर खतरनाक जीवाणुओं, वायरस एवं फंगस से भी बचाते हैं। वायु प्रदूषण को देखते हुए कंपनी 0.1 माइक्रान तक के सूक्ष्म कणों को साफ करने वाले फिल्टर बनाने पर भी शोध कर रही है।
मोहकमपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित ऊषा फिल्टर 1982 से क्लीन एयर कांसेप्ट पर उपकरण बना रही है। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर भी यहां के बने फिल्टरों का प्रयोग कर रहा है, जो रेडिएशन के साथ निकलने वाले सूक्ष्म कणों से भी बचाव करता है। यह एयर हैंडलिंग यूनिट ट्रेनों के एसी कोच की छतों, शापिंग माल व फार्मास्युटिकल कंपनियों में शुद्ध हवा के लिए प्रयोग किया जा रहा है। डीआरडीओ से मान्यता प्राप्त इन फिल्टरों को इसरो ने भी सराहा है। एनटीपीसी, बीएचईएल, सेना व अन्य बड़ी कंपनियां भी खरीदार हैं।
विदेश से मंगाते हैं मीडिया
एयर फिल्टर के लिए यूएसए और फ्रांस से मीडिया मंगाया जाता है, जो पेपर या कपड़े के रूप में होता है। यह 0.3 माइक्रान तक के कणों को कैंपस में पहुंचने से रोकता है। ग्लास फाइबर भी इसमें काफी कारगर होता है। ये फिल्टर नालों किनारे बने घरों के एसी में पहुंचने वाली हाइड्रोजन सल्फाइड गैस को रोक लेते हैं, जिससे धातुएं खराब नहीं होती।
अब पीएम 0.1 को भी साफ करने का लक्ष्य
ऊषा फिल्टर के रिसर्च केंद्र की रिपोर्ट के मुताबिक पीएम 2.5 एवं पीएम 10 तो बड़े आकार के कण हैं। इससे भी सूक्ष्म कणों का घनत्व हवा में कई गुना है, जो फेफड़ों के जरिए सीधे रक्त में पहुंचकर कैंसर तक बनाते हैं।
इस प्रदूषण में आजमाए जाते हैं फिल्टर
रिसर्च सेंटर में कृत्रिम रूप से प्रदूषित कणों को जनरेट कर उसे फिल्टर से गुजारा जाता है। यहां पर 0.3 से 5.0 माइक्रान साइज के कणों की उपस्थिति वायुमंडल से ज्यादा होती है।
कण का आकार इतने कणों पर परख
0.3 2.32 लाख
0.5 97033
1.0 10739
2.0 3781
3.0 1368
5.0 432
(नोट: आकार-माइक्रान में)
इन्होंने कहा--
वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए कंपनी अब 0.1 माइक्रान तक के कणों को साफ करने पर शोध कर रही है। कंपनी हर माह चार हजार से ज्यादा फिल्टर बना रही है। रेलवे, भाभा, इसरो, डीआरडीओ के साथ दवा बनाने वाली कंपनियां अपनी छतों पर इस फिल्टर को लगा रही हैं।
मधुर गुप्ता, एमडी, उषा फिल्टर
2.5 माइक्रान साइज के कण फेफड़े की झिल्ली में जख्म बनाते हैं। किंतु इससे भी बड़ी संख्या पीएम-0.5 एवं 0.3 माइक्रान कणों की है, जो रक्त में पहुंचकर हृदय, किडनी व बोनमेरो को भी बीमार कर देते हैं। हृदय रोग के मरीज इसलिए भी तेजी से बढ़े हैं।
डा. विनीत बंसल, हृदय रोग विशेषज्ञ