खेत में बना दिया नेचर पार्क, लिविंग कॉटेज, स्वीमिंग पूल और जुटने लगे पर्यटक
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिर्फ गन्ना की खेती के मिथक को तोड़ रहा यह प्रगतिशील किसान। फल-फूल और सब्जियों की खेती पर किया फोकस खेतों में ही बनाया नेचर पार्क जुटने लगे पर्यटक।
मेरठ, [विनय विश्वकर्मा]। ‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिर्फ गन्ना की खेती’ के मिथक को प्रगतिशील किसान ने तोड़ दिया। फल-फूल और सब्जियों की खेती के अलावा खेतों में ही सुंदर नेचर पार्क भी बनाया, जिसमें पर्यटकों की भीड़ जुटती है। रजपुरा ब्लाकक्षेत्र के गांव कुनकुरा निवासी किसान प्रद्युम्न चौधरी कहते हैं, खेती के मायने अब सिर्फ शारीरिक श्रम से नहीं, बल्कि यह पेशा तकनीक और दिमाग की जुगलबंदी का है। मैंने इस सूत्र को समझा, परखा और अपनाया भी। गन्ना का रकबा घटाया और फल-फूल व सब्जियों की खेती पर फोकस किया। मेहनत रंग लाई और शुगर बाउल में लिलियम, जरबेरा खिलखिला उठे।
विकसित किया नेचर पार्क
देसी-विदेशी सजावटी फूलों की खेती करके उन्होंने इस इलाके में खेती का कारगर विकल्प दिया। यही नहीं, कृषि भूमि से अतिरिक्त कमाई कैसे हो सकती है, यह भी प्रद्युम्न ने कर दिखाया। मेरठ, उप्र में एनएच-119 से 3.5 किमी. दूर अपनी 100 बीघा कृषि भूमि में प्रद्युम्न ने नेचर पार्क भी विकसित किया है। यहां पॉली हाउस में फूलों की खेती के साथ बागवानी भी हो रही है। लीची की बुआई हो चुकी है। कुछ जैविक सब्जियां तैयार हो रही हैं। इसी परिसर में स्वीमिंग पूल, लिविंग कॉटेज, योग केंद्र, खेल का मैदान, लिविंग एरिया, एडवेंचर झूले और गोशाला भी हैं। प्रद्युम्न कहते हैं, उनका प्रयास लोगों को ग्राम्य जीवन के नजदीक लाना और खेती की इस शैली को समझाना है। लोग इसके प्रति आकर्षित होते हैं और इसे महसूस करने यहां चले आते हैं। फार्म में लोगों के लिए चूल्हे की रोटी, हांडी की दाल, देशी गाय का दूध, घी, लस्सी सहित अनेक देसी व्यंजन निर्धारित दरों पर उपलब्ध हैैं।
इन्होंने बताया
जिला उद्यान अधिकारी आरएस राठौर कहते हैं, गन्ने की अपेक्षा सब्जियों व फूलों से सालभर में दस गुना अधिक उत्पादन ले रहे प्रद्युम्न चौधरी क्षेत्र के किसानों के लिए मिसाल हैं। वहीं, सहायक निदेशक कृषि प्रबोध कुमार का कहना है कि प्रद्युम्न का प्रयास कृषि विविधीकरण, आय व उत्पादन बढ़ाने के साथ ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देते दिखता है, जो अनुकरणीय है।
मुनाफे का सौदा
प्रद्युम्न ने बताया कि वह अक्टूबर माह में लिलियम फूल की पौध लगाते हैं। लिलियम नीदरलैंड्स से मंगाया जाता है। एक एकड़ में करीब 12 लाख रुपये लागत आती है। चार माह में 25-30 लाख रुपये का उत्पादन होता है। वहीं, जरबेरा का पौधा पांच साल तक फूल देता है। एक एकड़ में शुरुआती लागत (सब्सिडी के अलावा) 15 लाख रुपये आती है जबकि प्रति एकड़ प्रतिवर्ष आठ-दस लाख रुपये आमदनी होती है। जरबेरा और लिलियम मेरठ मंडी और दिल्ली की गाजीपुर मंडी में जाते हंै। यहां से ये सजावटी फूल दिल्ली के अनेक पांच सितारा होटलों के अलावा विदेशी होटलों में भी पहुंचते हैं।