Lockdown 4.0: मरीजों का दर्द बढ़ा रहा कोरोना, परंतु डॉक्टर वायरस से डरना नहीं इसके साथ चलना चाहते हैं
Lockdown 4.0 मेरठ के डॉक्टरों ने ओपीडी में रोजाना 15 मरीजों के इलाज की मांगी अनुमति लॉकडाउन का औचित्य नहीं हर्ड इम्यूनिटी से ही भागेगा कोरोना।
मेरठ, जेएनएन। कोरोना महामारी ने अन्य बीमारियों के शिकार मरीजों का दर्द बढ़ा दिया है। लॉकडाउन शुरू होते ही निजी अस्पताल व डॉक्टर क्लीनिक से दूर हुए और असाध्य मरीज घर में कैद होकर उपचार का इंतजार करते रहे। अब लॉकडाउन के चौथे चरण तक व्यवस्था चरमरा गई है। कुछ मरीज हालत बिगड़ने पर इलाज कराने पहुंचे तो पहले कोरोना की जांच करानी पड़ी। इस दौरान कई बार ऐसा भी हुआ कि इलाज तो मिला नहीं, बल्कि कोरोना हो गया। डॉक्टरों ने ओपीडी खोलकर रोजाना सिर्फ 15 मरीजों के इलाज की अनुमति मांगी है। उधर, प्रशासन रेड जोन रहने तक कोई निर्णय लेने का साहस नहीं जुटा पा रहा। दर्जनभर बीमारियां ऐसी हैं, जिसमें मरीजों की सालभर दवा चलती है। डॉक्टरों का कहना है कि गठिया, शुगर, बीपी, हार्ट, किडनी व सांस जैसी जटिल बीमारियों में मरीज को माह में कम से कम एक बार डॉक्टर के पास जाना होता है। कैंसर के मरीज बड़ी संख्या में जहां के तहां फंसे हैं, जिनकी सिकाई और कीमो तक नहीं हो पा रही।
मरीजों के लिए बड़ी मुसीबत
स्वास्थ्य विभाग ने सभी डॉक्टरों एवं निजी अस्पतालों से कहा कि सांस व बुखार के मरीज सिर्फ मेडिकल कॉलेज भेजे जाएंगे। इससे मरीजों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई। मेडिकल के फ्लू क्लीनिक का चक्कर काटने व संदिग्ध वार्ड में भर्ती होने से कई लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए। वहीं, गर्भवती महिलाओं का दर्द और बढ़ गया, जब कोई डॉक्टर हाथ लगाने को तैयार नहीं हुआ। शासन के बदलते नियमों और क्वारंटइन की कड़ी बंदिशों को लेकर डॉक्टरों ने भी दूरी बना ली, और चिकित्सा व्यवस्था पटरी से उतर गई। दांत और इएनटी के मरीजों को कोई देखने को तैयार नहीं।
इन्होंने बताया
असाध्य रोगी घरों पर तड़प रहे हैं। टेलीमेडीसिन की अपनी सीमाएं हैं। कई बार मरीज की जांच बेहद जरूरी होती है। ग्रीन जोन में प्रदेश सरकार ने ओपीडी की छूट दे दी है। मेरठ में भी प्रशासन से रोजाना 15 मरीज देखने की छूट मांगी गई है, जो फोन पर एप्वाइंटमेंट लेंगे। चिकित्सा व्यवस्था उलझ गई है। इसे जल्दी सुलझाना होगा।
- डॉ. एनके शर्मा, अध्यक्ष, आइएमए
मरीज के इलाज के नाम पर डॉक्टर का उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। हर मरीज का कोरोना का टेस्ट फ्री होना चाहिए। मेडिकल स्टाफ को पीपीई किट मिले। अब जिंदगी को आगे बढ़ाना अब बेहद जरूरी है। बीमारी को घर पर इलाज दें। सांस की ज्यादा दिक्कत हो तभी मरीज को कोविड-19 वार्ड में भर्ती कराएं। सामान्य फ्लू जैसी बीमारी से डरने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
- डॉ. सुनील जिंदल, सीनियर एंड्रोलॉजिस्ट
कोरोना को लेकर दहशत फैला दी गई, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। प्रशासन लगातार अनिर्णय की स्थिति में रहा, जिससे संक्रमण ने जिलेभर विस्फोटक रूप ले लिया। निजी अस्पतालों में इलाज और क्वारंटाइन को लेकर लगातार भ्रम बना रहा। अस्पतालों के स्टाफ से र्दुव्यवहार के मामले भी सामने आए। असाध्य मरीजों को अस्पताल तक नहीं पहुंचने दिया गया। ये कहां की संवेदनशीलता है। लॉकडाउन खोलकर सतर्कता के साथ आगे बढ़ना होगा।
- डॉ. सुनील गुप्ता, सीएमडी, केएमसी
लॉकडाउन अब कोई इलाज नहीं है, जब संक्रमण समुदाय में पहुंच गया। 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग, शुगर एवं अन्य जटिल बीमारियों के मरीज और दस साल से कम उम्र के बच्चे घर में रहें। बाकी अन्य को सतर्कता के साथ बाहर निकलना चाहिए, जिससे 60 फीसद आबादी में हर्ड इम्युनिटी बनेगी। यही, कोरोना वायरस से निपटने का एकमात्र विकल्प है।
- डॉ. नीरज कांबोज, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ
निजी चिकत्सकों के क्लीनिक खुलवाने की मांग
मेरठ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन ने गर्मी बढ़ने के चलते होने वाली डायरिया आदि बीमारियों के मद्देनजर निजी चिकित्सकों की क्लीनिक खुलवाने की मांग की है। अध्यक्ष इंद्रपाल सिंह और घनश्याम मित्तल ने पास को लेकर प्रशासन की नई व्यवस्था का स्वागत किया है।