मेरठ : शिक्षा जगत को अपूरणीय क्षति दे गए सोनू शेखर, कोरोना संक्रमण से निधन, शिक्षकों ने दी श्रधांजलि
शिक्षक सोनू शेखर वायरस को तो शरीर में हरा चुके लेकिन उसके प्रभाव से खुद को बचा नहीं सके और ऑक्सीजन का स्तर कम होता गया और फेफड़ा क्षतिग्रस्त होता गया। स्थिति बिगड़ती देख चिकित्सकों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए। शनिवार रात को उन्होंने अंतिम सांस ली।
मेरठ, जेएनएन। समय कुछ भी हो, समस्या किसी की भी हो, एक फोन कॉल पर उसे अपना समझकर निस्तारित करने में जुट जाने वाले शिक्षक सोनू शेखर आखिरकार कोविड वायरस की समस्या का निस्तारण नहीं कर सके। न्यूट्रिमा अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी स्थिति बिगड़ती गई। शनिवार को मेडिकल के कोविड वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया, जहां शनिवार देर रात करीब एक बजे उन्होंने वेंटीलेटर पर अंतिम सांस ली। पॉजिटिव से निगेटिव होने के बाद प्लाज्मा भी चढ़ाया गया। वायरस को तो शरीर में हरा चुके लेकिन उसके प्रभाव से खुद को बचा नहीं सके और ऑक्सीजन का स्तर कम होता गया और फेफड़ा क्षतिग्रस्त होता गया। अंत में स्थिति बिगड़ती देख चिकित्सकों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए। रविवार सुबह सूरजकुंड में उनका अंतिम संस्कार किया गया। स्कूल से लेकर शिक्षा जगत तक हर कार्य को व्यक्तिगत कार्य समझ कर करने वाले राजकीय हाई स्कूल कुढ़ला के प्रधानाचार्य सोनू शेखर शिक्षा जगत को अपूरणीय क्षति देकर गए हैं। उनके यूं चले जाने से शिक्षा विभाग ही नहीं शहर के तमाम बोर्ड के शिक्षक व प्रधानाचार्य शोकाकुल हैं और उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
ऐसा रहा शिक्षा का सफर
मूल रूप से मुजफ्फरनगर के रहने वाले 48 वर्षीय सोनू शेखर पुत्र श्यामलाल ने हाईस्कूल के बाद तीन वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, इंटरमीडिएट, बीए और एमए की पढ़ाई शिक्षा शास्त्र से की थी। राजकीय इंटर कॉलेज में शिक्षण कार्य करने के साथ ही वह राजकीय हाईस्कूल कुढ़ला में प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत थे। इसके साथ ही केंद्रीय विद्यालय की तर्ज पर बने अभिनव विद्यालय बली में भी प्रधानाचार्य का पदभार संभाल चुके। इसे सोनू शेखर की शिक्षा के प्रति समर्पण ही कही जाएगी कि अभिनव विद्यालय के लिए उन्होंने जो यूनिफॉर्म चयनित कर लगाए थे वह यूनिफार्म प्रदेश के सभी अभिनव विद्यालय में लागू होने के साथ ही बेसिक शिक्षा परिषद के प्राइमरी और उच्च प्राइमरी स्कूलों में भी यूनिफार्म के तौर पर चयनित की गई। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत उन्होंने जिले में स्कूलों के लिए जिस तरह की योजना बनाई थी, प्रदेश सरकार ने उसी योजना को पूरे प्रदेश में लागू किया और उसी योजना के आधार पर प्रदेश को सबसे ज्यादा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के हाईस्कूल केंद्र सरकार से आवंटित हुए।
कार्यशैली के कायल
जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के जिला समन्वयक रहते हुए उन्होंने मेरठ को 27 राजकीय हाईस्कूल दिलाए थे जो वर्तमान में संचालित हैं। इसके अलावा नियुक्ति, बोर्ड परीक्षा व अन्य कार्यों में उनका योगदान हमेशा रहा है। जिन स्कूलों में पढ़ा कर निकले वहां बच्चे उनके जाने के बाद कभी भूले नहीं। जिन शिक्षकों के साथ उन्होंने काम किया वह उनकी लगन और समर्पण को याद कर आज शोकाकुल है। मेरठ से लेकर लखनऊ तक शिक्षा विभाग के अधिकारी उनकी कार्यशैली के हमेशा ही कायल रहे हैं। उन्होंने शिक्षा विभाग के कार्यप्रणाली में सुधार के लिए कई तरह के सॉफ्टवेयर खुद विकसित किए जो आज भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं। बोर्ड परीक्षा रिजल्ट के दौरान एनआईसी में वह हर साल स्कूलों के रिजल्ट देने में अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं। पिछले कुछ समय से वह शिक्षा विभाग की क्रिकेट टीम की अगुवाई करते हुए तीनों कार्यालयों के कर्मचारियों व अधिकारियों को साथ लेकर खेलने को प्रेरित करते रहते थे। जिलाधिकारी की टीम के साथ ही विभिन्न विभागों की टीम के साथ उन्होंने मैच भी खेला।
उनकी माता ही पूरी दुनिया थी
सोनू शेखर के पिता श्यामलाल की मृत्यु बहुत कम उम्र में ही हो गई थी। उसके बाद से उनकी माता कमलेश देवी ने ही उनका पालन पोषण किया। सोनू शेखर के लिए उनकी मा ही पूरी दुनिया थी। गंगानगर में रह रहे सोनू शेखर निरंतर अपनी मां की देखभाल कर रहे थे। माता की तबीयत पिछले कुछ सालों से लगातार खराब रहने के बाद भी वह निरंतर उनकी सेवा में जुटे रहे। कोविड संक्रमित होने के बाद जब अस्पताल पहुंचे तब मां की सेवा की ही चिंता थी। अस्पताल में भी मां की देखभाल करने के लिए उन्होंने मां की तबीयत खराब होने पर न्यूटिमा में ही भर्ती करा लिया। अंतिम दिन भी वह मां का हाल-चाल पूछते रहे। चिकित्सकों की मानें तो माता की सेवा की चिंता ही उनके शरीर के कमजोर होने का कारण भी बनी, जिससे वह ऊबर नहीं सके। स्वजनों ने अभी मां को सोनू शेखर के स्वर्गवास होने की जानकारी नहीं दी है। वह अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं।