सरकारी उपेक्षा और मंदी के भंवर में फंसा मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर Meerut News
मंदी की पिच पर खेल उद्योग रन आउट ट्रांसफार्मर इंडस्ट्री का करंट गुल। कारपोरेट घरानों के सस्ते उत्पादों ने बढ़ाया दबाव दर्जनों इकाइयां बंद हो गई।
By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 03 Sep 2019 03:11 PM (IST)Updated: Tue, 03 Sep 2019 03:11 PM (IST)
मेरठ, जेएनएन। आर्थिक उथल-पुथल के बीच औद्योगिक सेक्टर पर भारी दबाव है। इन्वेस्टर्स समिट से निवेश को गति देने की उम्मीदें धरी रह गईं और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की नब्ज 50 फीसद तक बैठ गई है। विश्वस्तरीय खेल उद्योग मंदी की पिच पर रन नहीं बना पा रहा है। ट्रांसफार्मर इंडस्ट्री का फ्यूज उड़ा हुआ है। पेपरमिल इंडस्ट्री पर पीएनजी लगवाने का दबाव बढऩे से कई इकाइयां बंद हो जाएंगी। कार्पोरेट घरानों द्वरा गुणवत्तापूर्ण उत्पाद सस्ती कीमतों में उपलब्ध कराने से एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) की कमर टूट गई है। उधर, पूंजी की कमी ने एमएसएमई की 25 हजार से ज्यादा इकाइयों को झकझोर दिया है।
जमीन एक इंच नहीं...उद्योग बेघर
प्रदेश सरकार ने गत वर्ष लखनऊ में इन्वेस्टर्स समिट के जरिए करीब पांच लाख करोड़ रुपये के निवेश का एमओयू साइन किया। मेरठ से करीब 900 करोड़ के निवेश की घोषणा हुई। बैंकों से आसान ऋण उपलब्धता का भरोसा देने के साथ ही उद्योगों को जमीन पर उतारने के लिए नियमों को भी सरल किया गया। किंतु पूरी कवायद जमीन की तंगी में उलझ गई। सालभर बाद भी एक इंच जमीन का अधिग्रहण नहीं हो सका, इधर मंदी के बादलों ने निवेश की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। परतापुर कताई मिल की 89 एकड़ जमीन को औद्योगिक सेक्टर में बदलने पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।
निर्यात तो ठीक पर घरेलू पिच पर आउट
वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट के अंतर्गत 125 नए उद्यमियों के लिए करीब पांच करोड़ का फंड तय किया गया, किंतु कइयों ने लोन ही नहीं लिया। मेरठ में खेल इंडस्ट्री का सालाना टर्नओवर करीब 1500 करोड़ रुपया है। 25 इकाइयों का टर्नओवर चार करोड़ से ज्यादा है, जबकि छोटी-बड़ी 20 हजार इकाइयां असंगठित तरीके से संचालित हैं। खेलकूद इंडस्ट्री निर्यात की पिच पर बेहतर किंतु घरेलू पिच पर खराब प्रदर्शन कर रही है। खेलकूद एकेडमियों के खुलने पर भी खेल उत्पादों की डिमांड गिरी है। क्रिकेट, टेबल टेनिस, एथलेटिक्स, फिटनेस, स्पोट्र्स वियर समेत सभी उत्पादों पर मंदी का बड़ा असर है।
ट्रांसफार्मर इंडस्ट्री फ्यूज
मेरठ समेत पश्चिमी उप्र में ट्रांसफार्मर इंडस्ट्री का सालाना टर्नओवर करीब पांच सौ करोड़ रुपये सालाना है, जहां 60 फीसद कारोबार बंद पड़ गया। सरकार ने ट्रांफार्मरों की रिपेयरिंग का खुद ही वर्कशाप खोल दिया, और कंपनियां बेरोजगार हो गईं। सरकारी विभाग ट्रांसफार्मर खरीद भी लेते हैं तो 11 माह बाद भुगतान करते हैं। इस बीच उद्यमी बैंकों से लोन लेकर कारोबार जारी रखते हैं। इधर, कोलेट्रल फ्री बांड के जरिए दो करोड़ का लोन देने का नियम आ गया, लेकिन इसमें चार फीसद ज्यादा ब्याज लगेगा। ट्रांसफार्मरों में स्टार रेटिंग नियम लगाने से नेशनल टेस्ट हाउस से अप्रूवल लेने में दो से छह लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। रियल एस्टेट की सेहत बिगडऩे से ट्रांसफार्मरों की खपत बंद पड़ गई। ट्रांसफार्मर के बड़े कारोबारी बिजली घरों में आपूर्ति कर बिजनेस जारी रखने में सफल हैं, किंतु रिपेयङ्क्षरग करने वाले उद्यमी तबाह हो गए।
इनका कहना है
मंदी का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर गहरा असर है। पहले हम चीनी उत्पादों की वजह से पिछड़े और अब कार्पोरेट घराने हमसे सस्ता उत्पाद दे रहे हैं। बल्क में बनाने से उन्हें बिजली व कच्चा माल सस्ता पड़ रहा है। ट्रांसफार्मर उद्योगों का बिजनेस 60 फीसद खत्म हुआ। निवेशकों को लोन नहीं मिल रहा, और बेचे गए उत्पाद की भुगतान 11 माह बाद हो रहा। पांच सितंबर को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने उद्यमियों को बुलाया है, जहां देर से मिलने वाले भुगतान पर कोई समाधान जरूरी है।
-पंकज गुप्ता, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आइआइए
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर लड़खड़ाने लगा है। सरकार एमएसएमई को संभालने के लिए कोई बड़ा कदम उठा नहीं सकी। ज्यादातर घोषणाएं कागजों में रहीं। आखिरकार यह सेक्टर मंदी की चपेट में आ गया। बैंकों से लोन न मिलना, देर से भुगतान मिलना, और विभागों के रवैये से मंदी और पीड़ादायक बन गई है।
- अतुल भूषण गुप्ता, ट्रांसफार्मर कारोबारी
घरेलू बाजार पर असर तो है। किंतु जिन उद्योगों के उपभोक्ता सरकारी विभाग हैं, वहीं खरीद का फ्लो बना हुआ है। ऐसे में मंदी का ज्यादा असर नहीं है। किंतु आर्डर कम होने के साथ ही यह संकट किसी भी उद्योग पर नजर आने लगेगा।
- मुकेश कुमार, इंसुलेटिंग केबिल निर्माता
कच्चा माल की खरीद, आयात और उपलब्धता पर मंदी का असर शुरू हो गया है। मैन्यूफैक्चङ्क्षरग सेक्टर को संभालने के लिए बड़ा कदम उठाना होगा। हालांकि एथलेटिक्स कारोबार में ज्यादातर उपभोक्ता देश मंदी से फिलहाल दूर हैं, ऐसे में इसका असर कुछ माह बाद हो सकता है।
- अंबर आनंद, नेल्को
जमीन एक इंच नहीं...उद्योग बेघर
प्रदेश सरकार ने गत वर्ष लखनऊ में इन्वेस्टर्स समिट के जरिए करीब पांच लाख करोड़ रुपये के निवेश का एमओयू साइन किया। मेरठ से करीब 900 करोड़ के निवेश की घोषणा हुई। बैंकों से आसान ऋण उपलब्धता का भरोसा देने के साथ ही उद्योगों को जमीन पर उतारने के लिए नियमों को भी सरल किया गया। किंतु पूरी कवायद जमीन की तंगी में उलझ गई। सालभर बाद भी एक इंच जमीन का अधिग्रहण नहीं हो सका, इधर मंदी के बादलों ने निवेश की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। परतापुर कताई मिल की 89 एकड़ जमीन को औद्योगिक सेक्टर में बदलने पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।
निर्यात तो ठीक पर घरेलू पिच पर आउट
वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट के अंतर्गत 125 नए उद्यमियों के लिए करीब पांच करोड़ का फंड तय किया गया, किंतु कइयों ने लोन ही नहीं लिया। मेरठ में खेल इंडस्ट्री का सालाना टर्नओवर करीब 1500 करोड़ रुपया है। 25 इकाइयों का टर्नओवर चार करोड़ से ज्यादा है, जबकि छोटी-बड़ी 20 हजार इकाइयां असंगठित तरीके से संचालित हैं। खेलकूद इंडस्ट्री निर्यात की पिच पर बेहतर किंतु घरेलू पिच पर खराब प्रदर्शन कर रही है। खेलकूद एकेडमियों के खुलने पर भी खेल उत्पादों की डिमांड गिरी है। क्रिकेट, टेबल टेनिस, एथलेटिक्स, फिटनेस, स्पोट्र्स वियर समेत सभी उत्पादों पर मंदी का बड़ा असर है।
ट्रांसफार्मर इंडस्ट्री फ्यूज
मेरठ समेत पश्चिमी उप्र में ट्रांसफार्मर इंडस्ट्री का सालाना टर्नओवर करीब पांच सौ करोड़ रुपये सालाना है, जहां 60 फीसद कारोबार बंद पड़ गया। सरकार ने ट्रांफार्मरों की रिपेयरिंग का खुद ही वर्कशाप खोल दिया, और कंपनियां बेरोजगार हो गईं। सरकारी विभाग ट्रांसफार्मर खरीद भी लेते हैं तो 11 माह बाद भुगतान करते हैं। इस बीच उद्यमी बैंकों से लोन लेकर कारोबार जारी रखते हैं। इधर, कोलेट्रल फ्री बांड के जरिए दो करोड़ का लोन देने का नियम आ गया, लेकिन इसमें चार फीसद ज्यादा ब्याज लगेगा। ट्रांसफार्मरों में स्टार रेटिंग नियम लगाने से नेशनल टेस्ट हाउस से अप्रूवल लेने में दो से छह लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। रियल एस्टेट की सेहत बिगडऩे से ट्रांसफार्मरों की खपत बंद पड़ गई। ट्रांसफार्मर के बड़े कारोबारी बिजली घरों में आपूर्ति कर बिजनेस जारी रखने में सफल हैं, किंतु रिपेयङ्क्षरग करने वाले उद्यमी तबाह हो गए।
इनका कहना है
मंदी का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर गहरा असर है। पहले हम चीनी उत्पादों की वजह से पिछड़े और अब कार्पोरेट घराने हमसे सस्ता उत्पाद दे रहे हैं। बल्क में बनाने से उन्हें बिजली व कच्चा माल सस्ता पड़ रहा है। ट्रांसफार्मर उद्योगों का बिजनेस 60 फीसद खत्म हुआ। निवेशकों को लोन नहीं मिल रहा, और बेचे गए उत्पाद की भुगतान 11 माह बाद हो रहा। पांच सितंबर को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने उद्यमियों को बुलाया है, जहां देर से मिलने वाले भुगतान पर कोई समाधान जरूरी है।
-पंकज गुप्ता, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आइआइए
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर लड़खड़ाने लगा है। सरकार एमएसएमई को संभालने के लिए कोई बड़ा कदम उठा नहीं सकी। ज्यादातर घोषणाएं कागजों में रहीं। आखिरकार यह सेक्टर मंदी की चपेट में आ गया। बैंकों से लोन न मिलना, देर से भुगतान मिलना, और विभागों के रवैये से मंदी और पीड़ादायक बन गई है।
- अतुल भूषण गुप्ता, ट्रांसफार्मर कारोबारी
घरेलू बाजार पर असर तो है। किंतु जिन उद्योगों के उपभोक्ता सरकारी विभाग हैं, वहीं खरीद का फ्लो बना हुआ है। ऐसे में मंदी का ज्यादा असर नहीं है। किंतु आर्डर कम होने के साथ ही यह संकट किसी भी उद्योग पर नजर आने लगेगा।
- मुकेश कुमार, इंसुलेटिंग केबिल निर्माता
कच्चा माल की खरीद, आयात और उपलब्धता पर मंदी का असर शुरू हो गया है। मैन्यूफैक्चङ्क्षरग सेक्टर को संभालने के लिए बड़ा कदम उठाना होगा। हालांकि एथलेटिक्स कारोबार में ज्यादातर उपभोक्ता देश मंदी से फिलहाल दूर हैं, ऐसे में इसका असर कुछ माह बाद हो सकता है।
- अंबर आनंद, नेल्को
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