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यूं ही मेरठ नहीं बन गया भाजपा का पावरहाउस

राम मंदिर आंदोलन की नींव पर सत्ता की सीढि़यां चढ़ने वाली भाजपा बाद में लड़खड़ा गई लेकिन मेरठ में कमल खिलता रहा। सपा-बसपा के मजबूत होने के साथ भाजपा अपने गढ़ पूर्वाचल में जमीन गंवाने लगी। 2002 से 2012 के बीच प्रदेश में तीसरे स्थान पर पहुंच गई लेकिन इस बीच भी मेरठ में भाजपा दो बार सबसे बड़ी पार्टी रही।

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 06:05 AM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 06:05 AM (IST)
यूं ही मेरठ नहीं बन गया भाजपा का पावरहाउस
यूं ही मेरठ नहीं बन गया भाजपा का पावरहाउस

संतोष शुक्ल, मेरठ : राम मंदिर आंदोलन की नींव पर सत्ता की सीढि़यां चढ़ने वाली भाजपा बाद में लड़खड़ा गई, लेकिन मेरठ में कमल खिलता रहा। सपा-बसपा के मजबूत होने के साथ भाजपा अपने गढ़ पूर्वाचल में जमीन गंवाने लगी। 2002 से 2012 के बीच प्रदेश में तीसरे स्थान पर पहुंच गई, लेकिन इस बीच भी मेरठ में भाजपा दो बार सबसे बड़ी पार्टी रही। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बेशक पूर्वाचल में मंदिर आंदोलन की लहर थम गई थी, लेकिन मेरठ में ध्रुवीकरण के रूप में इसका असर बना रहा। सपा-रालोद गठबंधन ने भगवा दुर्ग की कड़ी घेराबंदी की है। ऐसे में पार्टी के सामने पुराना प्रदर्शन दोहराने की बड़ी चुनौती है। जनता दल के दबदबे में भी दर्ज कराई जीत

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1989 विस चुनाव में प्रदेश में जनता दल की हवा चल रही थी। पश्चिम यूपी में चौ. अजित सिंह की अगुआई में जनता दल ने एकतरफा जीत दर्ज की, लेकिन मेरठ की पांच में से तीन सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कर ली। सरधना से अमरपाल सिंह, कैंट से परमात्मा शरण मित्तल एवं शहर विस से डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी भाजपा के टिकट पर जीते। 1991 में दंगे की वजह से मेरठ की विस सीटों पर मतगणना नहीं हुई, लेकिन इस दौरान सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बुलंदशहर एवं बागपत की 42 सीटों में भाजपा ने 21 पर जीतकर 18 सीट पाने वाले जनता दल को पीछे छोड़ा था। मंदिर आंदोलन के बाद थमने लगी थी लहर

1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने के बाद प्रदेश की राजनीतिक दिशा बदल गई, लेकिन इसे भाजपा लंबे समय तक कायम नहीं रख सकी। 1993 विस चुनाव में भाजपा बहुमत से पिछड़ गई। इस दौरान भी मेरठ में भाजपा ने किठौर, कैंट, सरधना और खरखौदा जीत गई। 1996 में किठौर सीट पर भारतीय किसान कामगार पार्टी के परवेज हलीम और हस्तिनापुर सुरक्षित सीट से अतुल जीते, लेकिन अन्य चार सीटों पर भाजपा विजयी रही। 2002 में विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश में गर्त में पहुंच गई थी। इस दौरान भी मेरठ की तीन सीटों सरधना, कैंट एवं शहर सीट पर कमल खिला, जबकि किठौर और हस्तिनापुर सपा के पास चली गई। भाजपा की चमत्कारिक वापसी

सिर्फ 2007 में भाजपा का सफाया हुआ, जब मेरठ की छह सीटों में से भाजपा सिर्फ कैंट सीट जीत सकी। लेकिन 2012 विस चुनाव में पार्टी के फिर तीन चेहरे विधायक बनकर सदन पहुंच गए, जबकि इस दौरान पश्चिम उप्र की 71 में भाजपा को सिर्फ 11 सीट मिली। प्रदेश में सपा की सरकार बनी, जबकि भाजपा 50 के नीचे रह गई। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे हुए, जिसे भड़काने के आरोप में मेरठ के भाजपा विधायक संगीत सोम और शामली के सुरेश राणा जेल भेजे गए। यहां से धु्रवीकरण की एक हवा पश्चिम उप्र में बही, और 2014 में मोदी की प्रचंड जीत से भाजपा का माहौल बन गया। 2017 विधानसभा चुनाव में प्रदेशभर में भाजपा की लहर चली, और मेरठ में सात में से छह सीटों पर कमल खिला।


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