मेरठ : कोरोनावायरस से संक्रमित चिकित्सक दंपती को लगी प्रदेश की पहली मोनोक्लोनल एंटीबाडी
कोरोना से संक्रमित सीनियर पैथोलोजिस्ट और उनकी पत्नी को न्यूटिमा अस्पताल में मोनोक्लोनल एंटीबाडी दी गई। वह अस्पताल में सिर्फ दो घंटे रहकर घर चले गए। एंटीबाडी काकटेल लेने वाले मेरठ के 52 साल के डाक्टर के भाई की कोरोना से मौत हो गई थी।
मेरठ, जेएनएन। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इलाज में प्रयोग होने के बाद दुनियाभर में चर्चा में आई एंटीबाडी काकटेल मेरठ तक पहुंच गई। कोरोना से संक्रमित सीनियर पैथोलोजिस्ट और उनकी पत्नी को न्यूटिमा अस्पताल में मोनोक्लोनल एंटीबाडी दी गई। वह अस्पताल में सिर्फ दो घंटे रहकर घर चले गए। डाक्टर का दावा है कि संभवत: यह उत्तर प्रदेश में एंटीबाडी काकटेल से इलाज का पहला मामला है। एक वायल पर सवा लाख रुपये का खर्च आता है। हल्के लक्षणों वाले मरीजों को संक्रमण से 72 घंटे के अंदर चढ़ाने पर मौत का खतरा 70 फीसद कम हो जाता है।
भाई की मौत से सहम गए थे डाक्टर
एंटीबाडी काकटेल लेने वाले मेरठ के 52 साल के डाक्टर के भाई की कोरोना से मौत हो गई थी। डाक्टर शुगर के मरीज हैं, जबकि घर में कई सदस्य संक्रमित चल रहे हैं। ऐसे में डाक्टर ने विदेश में प्रचलित और सुरक्षित मिली मोनोक्लोनल एंटीबाडी को दवा कंपनी के माध्यम से गाजियाबाद में खरीदा। पत्नी सहित मेरठ स्थित न्यूटिमा अस्पताल पहुंचकर डा. अमित उपाध्याय से एंटीबाडी चढ़वाया। अस्पताल में दो घंटे भर्ती रहे। दावा किया कि यह दवा संक्रमण के पांच दिन के अंदर भी दे सकते हैं, लेकिन मरीज कृत्रिम आक्सीजन पर पहुंच गया तो ज्यादा कारगर नहीं रहती।
क्या है मोनोक्लोनल एंटीबाडी
कोरोना के इलाज में मोनोक्लोनल एंटीबाडी को गेमचेंजर माना जा रहा है। यह दो दवाओं को मिलाकर बनाई गई है, इसीलिए काकटेल कही जाती है। स्विटजरलैंड की दवा निर्माता कंपनी रोचे इंडिया ने मई माह के अंतिम सप्ताह में इस दवा को लांच किया। 1200 मिलीग्राम की एक डोज होती है, जिसमें लैब में बनाई गई कैसिरीविमैब और इमेडिवेब के रूप में दो एंटीबाडी 600-600 मिलीग्राम की मात्रा में शामिल होती है। एक वायल में दो का इलाज किया जाता है, जिसकी कीमत 1.20 लाख रुपये है। एंटीबाडी यह एक प्रोटीन है, जो वायरस के खिलाफ सुरक्षा देती है।
क्या कहते हैं डाक्टर
एंटीबाडी काकटेल का प्रयोग अमेरिका एवं यूरोप में तेजी से हो रहा है। संभवत: यह प्रदेश में पहला प्रयोग है। यह दवा कोरोना वायरस को सेल से चिपकने नहीं देती, यानी वायरस के स्पाइक प्रोटीन को पंगु बना देता है। ऐसे में मरीज में संक्रमण रुक जाता है। अंगों की कोशिकाओं को नुकसान नहीं होता, और मरीज जल्द निगेटिव हो जाता है। यह हल्के एवं मध्यम लक्षणों वाले मरीजों के लिए है। यानी आक्सीजन पर पहुंचने से पहले देना होगा।
- डा. अमित उपाध्याय, बाल रोग विशेषज्ञ