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Special On Army Day: देश में खास महत्व रखती है मेरठ छावनी, इतिहास पढ़कर आपको होगा नाज

मेरठ छावनी देश में एक खास महत्‍व रखती है। ऐसा कोई भी युद्ध या हलचल नहीं जिसमें मेरठ छावनी के जवानों ने हिस्‍सा न लिया हो। यहां के बहुत से जवानों ने अपनी सहादत दी है। सैन्‍यबलों के नजरिए से यह देश के लिए दूसरी बड़ी छावनी है।

By PREM DUTT BHATTEdited By: Published: Fri, 15 Jan 2021 01:32 PM (IST)Updated: Fri, 15 Jan 2021 07:27 PM (IST)
Special On Army Day: देश में खास महत्व रखती है मेरठ छावनी, इतिहास पढ़कर आपको होगा नाज
देश की दूसरी सबसे बड़ी छावनी मेरठ का महत्व देश की उत्तरी सीमाओं पर हर हलचल में रखता है।

अमित तिवारी, मेरठ। देश की सरहद पर तैनात भारतीय सेना के लिए मेरठ छावनी विशेष महत्व रखती है। सैन्यबल के हिसाब से देश की दूसरी सबसे बड़ी छावनी मेरठ का महत्व देश की उत्तरी सीमाओं पर हर हलचल में रखता है। इन क्षेत्रों में सैन्य गतिविधियों के बढऩे से मेरठ छावनी से भी सैन्य टुकडिय़ों को रवानगी दी जाती है। एक रेजिमेंट सेंटर और दो इंफैंट्री डिवीजन के साथ सौ से अधिक बटालियन वाली मेरठ छावनी सैन्यबल के हिसाब से देश की दूसरी सबसे बड़ी छावनी मानी जाती है। भारतीय सेना की सबसे बड़ी जीत वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी छावनी स्थित पाइन डिवीजन ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की सबसे सुरक्षित जेसोर छावनी पर कब्जा किया था। मेरठ की क्रांति धरा और मेरठ छावनी से सैकड़ों वीरों ने देश की सरहद पर शहादत प्राप्त की हैं और सेवाएं भी दे रहे हैं।

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स्ट्राइक फोर्स हैं दो डिवीजन

छावनी में तैनात सेना की दोनों डिवीजन स्ट्राइक फोर्स यानी हमलावर डिवीजन मानी जाती हैं। पाइन डिव के नाम जहां वर्ष 1971 के युद्ध का पराक्रम जुड़ा है, वहीं चार्जिंग रैम डिवीजन के नाम भी स्ट्राइक कोर का हिस्सा बनकर आपरेशन पराक्रम के कारनामे जुड़े हैं। दोनों ही डिव के साथ छावनी में एक-एक ब्रिगेड रहती है, जिनका युद्ध और आपरेशन में अहम योगदान रहा है। दोनों डिवीजन के अंतर्गत छावनी में आने व जाने वाली बटालियनों में 50 से 200 साल तक पुरानी बटालियन हैं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से अब तक हर जिम्मेदारी में खरा उतरकर बटालियन, सेना और देश की इज्जत-ओ-इकबाल को बुलंद रखा है।

पुरुष और पशु को प्रशिक्षित कर फौजी बनाती है आरवीसी

भारतीय सेना की ट्रेनिंग कमांड के अंतर्गत संचालित आरवीसी सेंटर एंड कालेज में नए युवाओं का प्रशिक्षण होता है। यहां नए युवाओं को बेहतरीन सैनिक बनाकर विभिन्न सैन्य यूनिटों में भेजा जाता है। इसके साथ ही डाग ब्रीङ्क्षडग एंड ट्रेङ्क्षनग फैकल्टी में श्वानों की विभिन्न प्रजातियों के प्रजनन से प्रशिक्षण तक की रूपरेखा यही बनती हैं। यही प्रशिक्षण मिलता है और एक बेहतरीन फौजी बनकर वह श्वान देश की सीमाओं की रक्षा में तैनात होते हैं। आरवीसी स्थित इक्वेट्रियन ङ्क्षवग में घोड़ों का प्रशिक्षण घुड़सवारी प्रतियोगिताओं के लिए किया जाता है। आरवीसी के अंतर्गत ही संचालित सहारनपुर सेंटर में खच्चरों को कारगिल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में सैन्य साजो सामान पहाड़ी चोटियों पर चढ़ाने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है।

1806 में बनी थी छावनी

अंग्रेजी शासन काल के दौरान दिल्ली की सत्ता को मजबूती देने और व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्व रखने वाला दोआब क्षेत्र अंग्रेजों को 1803 में मिला था। लसवारी युद्ध के बाद मराठाओं से हुई संधि के बाद राजा ङ्क्षसधिया ने इस क्षेत्र को अंग्रेजों को सौंप दिया था। वर्ष 1806 में अंग्रेजों ने मेरठ फोर्ट की दीवार के निकट छावनी को बसाया था। वह दीवार अब नहीं है। मेरठ छावनी बंगाल आर्मी का हिस्सा थी, जिसका प्रांत बंगाल प्रेसीडेंसी के साथ ही पूरा उत्तर भारत था। सामरिक तौर पर मेरठ कैंट दिल्ली के लिए काफी मददगार साबित हुआ। साथ ही पहाड़ों पर गोरखा और पंजाब में सिखों को बढऩे का रास्ता भी मिला। कुछ ही सालों में मेरठ छावनी उत्तर भारत में महत्वपूर्ण ब्रिटिश मिलिट्री स्टेशन बना और भारतीय उप-महाद्वाीप में सबसे बड़े मिलिट्री स्टेशन के तौर पर भूमिका निभाई। 1857 की क्रांति भी मेरठ में हुई, जिसमें अंग्रेजों को काफी नुकसान हुआ।

एक समय यहां थे सात रेजिमेंटल सेंटर

मेरठ छावनी में तैनात सैनिकों ने प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के साथ ही बेल्जियम के वाइप्रस युद्ध, बर्मा आपरेशन, फ्रांस युद्ध और आजादी के बाद वर्ष 1965, वर्ष 1971 और कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। मेरठ छावनी में एक समय सात रेजिमेंटल सेंटर हुआ करते थे। इनमें सिख, पंजाब, डोगरा, सिख लाइन, एएससी नार्थ, मिलिट्री फार्म और आरवीसी सेंटर हैं। वर्तमान में आरवीसी सेंटर और मिलिट्री फार्म है। हालांकि मिलिट्री फार्म भी धीरे-धीरे बंद करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। करीब 3568.06 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले मेरठ छावनी को जमीन के हिसाब से तीन हिस्से में बांटा गया था। वर्ष 1976 में पांच रेजिमेंटल सेंटर के जाने के बाद पाइन इंफैंट्री डिवीजन और चाॢजंग रैंम डिवीजन ने उनका स्थान लिया। इनके अलावा सूर्या इंजीनियङ्क्षरग ब्रिगेड में भी मेरठ छावनी का हिस्सा है।

आजादी के बाद बना पश्चिम यूपी सब-एरिया

15 अगस्त 1947 में आजादी मिलने के साथ यूपी एरिया के अंतर्गत मेरठ सब-एरिया को पश्चिम यूपी सब-एरिया बनाया गया। पहले पश्चिम यूपी सब-एरिया कमांडर का पदभार ब्रिगेडियर एसजे ग्रीन को मिला और दिसंबर में उन्होंने सब-एरिया कमांडर का पदभार महावीर चक्र से सम्मानित ब्रिगेडियर यदुनाथ को दिया। ब्रिगेडियर यदुनाथ को देश का पहला सब-एरिया कमांडर होने का गौरव भी मिला।


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