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मेरठ : गन्‍ने की सुरक्षा और प्रबंधन के लिए एडवाइजरी ताकि मौसम के उतार चढ़ाव में किसान को न हो परेशानी

बार-बार बदलते मौसम के बीच किसानों को भी गन्‍ने की फसल में दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है। इसी को मद्देनजर रखते हुए मेरठ में गन्ना उप आयुक्त राजेश मिश्र ने किसानों के लिए फसलों से संबंधित एक एडवाइजरी जारी है। ताकि फसलें सुरक्षित रह सकें।

By PREM DUTT BHATTEdited By: Published: Fri, 15 Jan 2021 10:25 AM (IST)Updated: Fri, 15 Jan 2021 01:34 PM (IST)
मेरठ : गन्‍ने की सुरक्षा और प्रबंधन के लिए एडवाइजरी ताकि मौसम के उतार चढ़ाव में किसान को न हो परेशानी
मेरठ में गन्‍ना किसानों के लिए उप आयुक्‍त ने एडवाइजरी जारी की है।

मेरठ, जेएनएन। मेरठ में गन्ना किसानों के लिए मौसम के उतार-चढ़ाव को देखते हुए गन्ना विभाग ने एडवाइजरी जारी की है। गन्ना उप आयुक्त मेरठ राजेश मिश्र ने बताया कि अधिकांश किसानों द्वारा नकदी फसल होने के कारण गन्ने की खेती विस्तृत क्षेत्रफल में की जाती है। प्रतिवर्ष गन्ने की खेती में वर्षा के कारण जलभराव, बाढ़ अथवा सूखा पड़ने के कारण गन्ने की बुवाई निराई व गुड़ाई आदि में व्यवधान उत्पन्न होता है। इसलिए गन्ना फसल के प्रबंधन एवं सुरक्षा के उपायों को अपनाकर मौसम के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।

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सूखा सहने की क्षमता रखने वाली गन्ना किस्में अधिक कारगर

गन्ना उप आयुक्त ने बताया कि जिन क्षेत्रों में सूखा पड़ने की आशंका हो अथवा वर्षा ऋतु में लंबी अवधि तक वर्षा न हो ऐसे क्षेत्रों में सूखा सहने की क्षमता से युक्त सूखा रोधी किस्मों यथा. को लख 94184, को लख 12209, को शा 08279 आदि किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। गन्ने की फसल में गन्ने की पताई अथवा पुआल का बिछावन पंक्तियों के बीच में डालने से भी बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। टपक सिंचाई अथवा छिड़काव विधि को अपनाने से पानी की बचत के साथ साथ अधिक उपज भी प्राप्त होती है। यदि सूखे की अवस्था में गन्ने की पत्तियां मुरझाने लगी हों तो जीवन रक्षक सिंचाई करने से पहले पोटाश उर्वरक का पानी में 5 फीसद घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने से सूखे का हानिकारक प्रभाव कम हो जाता है।

बसंत काल में गन्ने की अगेती बुआई लाभप्रद

उन्होंने बताया कि जलभराव की स्थिति में जलप्लावित क्षेत्रों हेतु संस्तुत किस्मों यथा. को लख 94184, को से 9530, को से 96436, को लख 12207 आदि की ही बुवाई करनी चाहिए। जलप्लावन ग्रस्त क्षेत्रों में गन्ने की शरद कालीन बुवाई उत्तम है। लेकिन शरद कालीन बुवाई संभव न होने पर बंसत काल में गन्ने की अगेती बुवाई करनी चाहिए। बुवाई से पूर्व कार्बेण्डाजिम के 0.2 फीसद घोल में 20 मिनट तक डुबोकर गन्ना बीज का उपचार करके गन्ने की बुवाई ट्रेंच विधि से करनी चाहिए तथा उर्वरकों का प्रयोग वर्षा ऋतु से पहले अवश्य कर लें।

एक खेत का पानी दूसरे खेत में जाने से रोकें

जलभराव के बाद की खड़ी फसल में पोटाश के 5 फीसद घोल का छिड़काव करने से फसल की वृद्धि होती है तथा कीटों एवं रोगों का प्रकोप कम होता है। जल निकास की व्यवस्था होने पर जून माह के मध्य तक गन्ने की पंक्तियों पर मिट्टी अवश्य चढ़ा दी जानी चाहिए। जिससे जल निकासी के लिए नालियां बन जाती हैं तथा गन्ना फसल गिरने से बच जाती है। एक खेत का पानी दूसरे खेत में जाने से रोकना आवश्यक है अन्यथा लाल सड़न रोग का प्रकोप होने पर पूरे क्षेत्र में रोग फैलने की आशंका रहती है। जलप्लावित क्षेत्र में पानी सूखने के बाद गन्ना फसल को शीघ्र ही चीनी मिल अथवा खाण्डसारी इकाई को आपूर्ति करें।


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