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मेरठ: 1993 से रवि बख्शी अब तक दस हजार से ज्यादा मरीजों का करा चुके मोतियाबिंद का ऑपरेशन

रवि बख्शी ने अंतरराष्ट्रीय भारत-तिब्बत सहयोग संगठन के अंतर्गत 1995 से अब तक करीब 800 दिव्यांगों को उपकरण उपलब्ध कराया है।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 06:00 AM (IST)
मेरठ: 1993 से रवि बख्शी अब तक दस हजार से ज्यादा मरीजों का करा चुके मोतियाबिंद का ऑपरेशन

रवि बख्शी के सामने उनके पिता स्वर्गीय कुलभूषण बख्शी आदर्श हैं। रवि ने कल्याणं करोति संस्था के जरिए 1993 से अब तक करीब दस हजार लोगों का मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराया। वह नेत्र रोगों के निदान के लिए नियमित ओपीडी संचालित करते हैं। मकसद ये कि लोगों की आंखें महफूज रहें, और लोग दुनिया अपनी नजरों से देखें। 58 साल के रवि बख्शी भविष्य में रेटिना के ऑपरेशन की सुविधा मुहैया कराना चाहते हैं। 

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मुहिम से जुड़ गए लोग

मेरठ में गोल्डेन एवेन्यू फेज-3 निवासी रवि बख्शी ने आसपास के गांवों में पहुंचकर नेत्र रोग कैंप लगाया। लोगों में मोतियाबिंद को लेकर जागरूकता जगाई। बड़ी संख्या में मरीजों के ऑपरेशन कैंप आयोजित किए। नतीजा ये रहा है कि हजारों लोगों की आंखों की रोशनी बचाई गई। उन्हें अन्य नेत्र रोगों के लिए भी सजग किया गया। प्रभाव ये हुआ कि बड़ी तादाद में लोग मुहिम से जुड़े। कैंट अस्पताल ने अलग से ओपीडी संचालन का कक्ष दे दिया। संस्था ने दो नियमित चिकित्सकों के साथ ओपीडी शुरू की। आज रोजाना करीब दो सौ मरीजों का इलाज हो रहा है। कैंपों से होकर आने वाले मरीजों का ऑपरेशन फ्री में किया जा रहा है।

पिछले साल 1463 ऑपरेशन
पिछले साल रवि बख्शी ने तमाम स्थानों पर कैंप लगवाकर 1463 मरीजों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाया। अस्पताल में भी मरीजों को महज एक से दस हजार तक का खर्च आता है, जबकि बाहर इसके लिए 30 हजार तक खर्च करना पड़ता है। हालांकि कैंट अस्पताल की ओपीडी में मरीज महज 10 रुपए के शुल्क पर देखे जाते हैं।

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उधर, रवि बख्शी ने अंतरराष्ट्रीय भारत-तिब्बत सहयोग संगठन के अंतर्गत 1995 से अब तक करीब 800 दिव्यांगों को उपकरण उपलब्ध कराया है। इसके लिए भी वह नियमित तत्पर रहते हैं। आर्युविज्ञान न्यास के तहत आम व्यक्ति में नैतिक मूल्यों की पौध रोपते हैं। गत वर्ष 14 अक्टूबर 2017 को दलाईलामा आए। छठवीं कक्षा के लिए नैतिक शिक्षा का पाठ लांच कराया। इस वर्ष जुलाई से प्रदेश के पीलीभीत, झांसी, मेरठ समेत कई जिलों में शुरू हो रहा है।

चुनौतियां भी बेशुमार...
रवि बख्शी बताते हैं कि अब पहले की तरह वालंटियर्स नहीं मिलते। लोगों में सेवाभाव की कमी देखी जा रही है। ऐसे में मुहिम से ज्यादा लोगों को जोड़ना आसान नहीं रहा। इसका असर कई बार कैंपों पर भी पड़ता है। बेरोजगारी का संकट भी इसकी बड़ी वजह है। वह कहते हैं कि कल्याणं करोति पुरानी और बेहद भरोसेमंद संस्था है, किंतु आम आदमी अब नई संस्थाओं पर एतबार नहीं कर पा रहा। इससे भी समाजसेवा में दिक्कतें बढ़ी हैं।

अब रेटिना का कैंप लगाऊंगा
उन्होंने कहा कि मैं तीन संस्थाओं के जरिए लोगों के बीच में हूं। पिताजी ने समाजसेवा की जिम्मेदारी को बड़ी संजीदगी से निभाया। मैं खुद भी इसी दर्शन के साथ लोगों से जुड़ा हूं। आने वाले दिनों में रेटिना के ऑपरेशन का कैंप लगाऊंगा, जिससे लोगों को मदद मिले।

रिसोर्स होता तो....

रवि बख्शी कहते हैं पर्याप्त रिसोर्स होता तो वह पश्चिमी उप्र के तकरीबन सभी गांवों में नियमित कैंप करवाते। प्रशासन के साथ मिलकर समाज की सेहत के लिए हमेशा तत्पर रहते। जनसंख्या ज्यादा है, जबकि सुविधाएं कम हैं। ऐसे में सहभागिता से ही बात बनेगी। साथ ही स्कूलों में नैतिक शिक्षा का पाठ अनिवार्य कर दिया जाता है।


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