Move to Jagran APP

मेरठ: साधनों की कमी नहीं, बस इच्छाशक्ति चाहिए

चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पीके गुप्ता गुप्ता 50 साल से शिक्षा और शोध के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 04:21 PM (IST)
मेरठ: साधनों की कमी नहीं, बस इच्छाशक्ति चाहिए
शहर के विकास की बात हो या व्यक्ति की, शिक्षा दोनों के ही विकास की धुरी है। बशर्ते शिक्षा वास्तव में शिक्षा हो। शिक्षा के क्षेत्र में संसाधन की कोई कमी नहीं है, कमी है तो बस एक दृढ़ इच्छाशक्ति की। शहर में कुछ ऐसे लोग हैं जो बगैर किसी शिकायत के अपने मिशन को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में ज्ञान की गंगा बहाने वाले ऐसे भगीरथ को दैनिक जागरण का माय सिटी माय प्राइड महाअभियान ने सामने लाने की कोशिश की। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शोध और शिक्षा को आगे बढ़ाने वाले ऐसे ही हमारे एक्सपर्ट हैं प्रो. पीके गुप्ता।

अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी

loksabha election banner

चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग में प्रोफेसर गुप्ता पिछले 50 साल से शिक्षा और शोध के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। वर्ष 1996 में विभाग से रिटायर हुए। 22 साल हो गए रिटायरमेंट के, लेकिन आज भी विवि के लैब में शोध और उच्च शिक्षा की गुत्थियां सुलझातें मिल जाएंगे। प्रो. गुप्ता का मानना है कि आज छात्रों पर किसी तरह का दोष लगाना उचित नहीं। अगर शिक्षक पढ़ाने वाला है तो छात्र उनकी कक्षा में जरूर आएंगे। शोध के क्षेत्र में आ रही गिरावट पर प्रो. गुप्ता गंभीर हैं। वह शिक्षकों को एक रोल मॉडल की तरह खुद को साबित करने पर जोर देते हैं।

लैब टू लैंड फॉर्मूला को कर रहे हैं साकार

कृषि शिक्षा से जुड़े प्रो. गुप्ता लैब टू लैंड फॉर्मूला पर काम करने में विश्वास रखते हैं। उनकी कोशिश है कि बेसिक साइंस में शोधकर्ता को उन लोगों से भी संपर्क करना चाहिए जो उस विषय पर काम करते हैं। मसलन अगर एग्रीकल्चर के फिल्ड में काम करना है तो किसानों के बीच में जाकर उनकी मूल समस्या को जानना जरूरी है। वह इस दिशा में खुद काम भी कर रहे हैं। प्रो. गुप्ता कृषि शिक्षा और शोध में कार्य करते हुए दो दशक से गर्म तापमान, नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी वाली जमीनों के लिए गेहूं की प्रजाति विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।

साधन से जरूरी है साधना

प्रो. गुप्ता इस बात को लेकर काफी नाखुश भी रहते हैं आज उच्च शिक्षा में ऐसे लोग आ रहे हैं जिन्हें पढ़ने और पढ़ाने को लेकर रुचि नहीं है। वह रिसर्च नहीं करना चाहते। वह शिक्षा का ऐसा ढांचा चाहते हैं जिसमें शिक्षक- शिक्षा और शिष्य के बीच कोई अवरोध न आए। शिक्षक रुचि लेकर पढऩे और पढ़ाने में विश्वास करें।

दिक्कतें है...उनका समाधान जरूरी है

प्रो. गुप्ता को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कई सारी समस्याएं दिखती हैं। जिनके समाधान की जरूरत है। हालांकि प्रो. गुप्ता मौजूदा स्थिति को देखते हुए थोड़े निराश भी हैं। उन्होंने कुछ दिक्कतें गिनाईं तो उनका समाधान भी देने की कोशिश की है।

1. आज मेरठ में उच्च शिक्षण संस्थान कम नहीं हैं। यूनिवर्सिटी के पास भी पैसे की कोई कमी नहीं, लेकिन हर जगह इच्छाशक्ति की कमी है। वे कहते हैं, मेरे हिसाब से सरकार की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। अगर सरकार गंभीर हो तो विश्वविद्यालय स्तर पर ईमानदार कुलपतियों की नियुक्ति होगी। शीर्ष स्तर पर नियुक्ति प्रक्रिया ठीक हो तो अन्य समस्याओं का भी समाधान हो जाएगा।

2. एक बेहतर शिक्षा के लिए सबसे जरूरी है कि शिक्षक ऐसा हो जो वास्तव में पढ़ाने में रुचि रखे। हर तरह के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। ऐसे में अगर कोई शिक्षक मजबूरी में आकर शिक्षण संस्थान से जुड़ता है तो उसका परिणाम सकारात्मक नहीं रहता है। शिक्षक ऐसे आने चाहिए जो पढ़ाने को बोझ न समझे, शिक्षा के पेशे को केवल पैसा कमाने का माध्यम न मानें।

3. देश की बहुसंख्यक आबादी अभी भी कृषि से जुड़ी है। नई पीढ़ी इस क्षेत्र में जाना नहीं चाहती। ऐसे में कृषि शिक्षा का महत्व बढ़ रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश में कृषि शिक्षा में भी छात्रों का रुझान कम है। कृषि शिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है। यहां से निकलने वाले युवाओं को जिस स्तर का जॉब मिलना चाहिए, नहीं मिल पा रहा है। इसका कारण है कि ये लोग डिग्री लेते हैं, जानकारी नहीं। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र की तरह ही यहां भी एग्रीकल्चर एजुकेशन को ठीक करना होगा।

4. उच्च शिक्षा हो या पूरी शिक्षा, इसमें एक सबसे बड़ी दिक्कत गैर शैक्षणिक कार्यों की अधिकता है। शिक्षकों को कई सारे प्रशासनिक और सरकारी कार्यों में लगा दिया जाता है। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है।

5. मेरठ एजुकेशन हब के रूप में विकसित हो रहा है, फिर भी छात्रों का पलायन है। क्लास से बंक मारकर कोचिंग संस्थानों में भीड़ बढ़ रही है। इसके दोषी शिक्षक ही हैं। अगर वह सही तरीके से कक्षा में पढ़ाने के लिए जाएंगे तो हर छात्र पढऩे आएंगे। हर शिक्षक को जवाबदेह होना पड़ेगा।

अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.