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समाज को जगाकर पढ़ाने और आगे बढ़ाने की जिद ने बनाया कप्तान अंकल

आलम यह है कि पुरानी एकेडमी के भवन को बेचकर लोहियानगर में नई जमीन ली और वहां अब बड़ा भवन बनाकर स्कूल संचालित किया जाएगा।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Thu, 26 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2018 11:31 AM (IST)
समाज को जगाकर पढ़ाने और आगे बढ़ाने की जिद ने बनाया कप्तान अंकल

पढ़ें बेटियां बढ़ें बेटियां, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, जैसी योजनाओं की खूब सराहना हो रही है। लोग यह संदेश एक-दूसरे तक पहुंचा भी रहे हैं। बेटी को पढ़ाने के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है। इस संदेश को अपने जीवन में उतारने और यह बीड़ा खुद ही उठाने वाले हमारे बीच कम ही हैं। मलिन बस्तियों में रहने वाली, लोगों के घरों में चूल्हा-चौका और सफाई करने वाली, मीट और बीड़ी फैक्ट्रियों में काम करने वाली बेटियों की शिक्षा ने एक शिक्षक मन को पूरी तरह झकझोर दिया।

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इन बेटियों को शिक्षित करने की बात को गांठ की तरह अपने जीवन में उतारने वाले डॉ. इफ्तेखार अली खान एक, दो नहीं बल्कि तीन सौ से अधिक बेटियों के कप्तान अंकल बन चुके हैं। उन्होंने समाज को जगाकर पढ़ाने और आगे बढ़ाने की मुहिम छेड़ रखी है।

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मूल रूप से गढ़मुक्तेश्वर में दौताई गांव के रहने वाले कप्तान डॉ. आइए खान का जन्म तीन मार्च 1961 को हुआ। वे फैज-ए-आम इंटर कॉलेज में वर्ष 1995 से लेक्चरर के तौर पर कार्यरत हैं। वर्ष 1999 से एनसीसी में कैप्टन हैं और साल 2012 और 2014 में एनसीसी के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे गए। 

वर्ष 2004 से ही गरीब बच्चों को विज्ञान और गणित विषय की निशुल्क कोचिंग दिया करते थे। साल 2010 में साक्षर मिशन के तहत शास्त्रीनगर की मलिन बस्तियों में रहने वाली बालिकाओं को पढ़ाना शुरू किया। वर्ष 2012 में 'एफर्ट एकेडमी' नामक संस्था बनाई।

बच्चे बढ़ने लगे तो साल 2014 में बैंक लोन के जरिए बड़ी जगह ली और बिल्डिंग बनाकर बालिकाओं को हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, गणित, विज्ञान आदि विषयों के अलावा सिलाई, कढ़ाई, श्रृंगार, खिलौने बनाना, मूर्तिकला, कंप्यूटर आदि की ट्रेनिंग देने लगे। तीन सौ अधिक बालिकाओं के साथ एक स्कूल का रूप ले चुकी संस्था में पांच शिक्षिकाएं हैं। वर्ष 2017 में एकेडमी को जूनियर हाईस्कूल की मान्यता मिल गई।

रंग लाया एफर्ट
अपने इस प्रयास की संतोषजनक उपलब्धि डॉ. खान को इसी साल मिली है। उनकी 'एफर्ट एकेडमी' से आठवीं पढ़कर निकलने वाली 22 बालिकाओं को इस साल राजकीय कन्या इंटर कॉलेज हापुड़ रोड में कक्षा नौवीं में दाखिला मिला है। इस स्कूल की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर स्थान बनाने वाली बालिकाओं की सफलता को ही वे अब तक की अपने सबसे उपलब्धि मानते हैं।

उनके लिए यह उपलब्धि इसलिए भी है क्योंकि ये बालिकाएं कभी किसी मेन स्ट्रीम स्कूल में पढ़ने नहीं पहुंच सकी। एकेडमी की शिक्षिकाओं की कड़ी मेहनत और बालिकाओं की लगन का नतीजा ही है कि बेटियां आगे बढ़ रही हैं।

इस एकेडमी में जमनानगर, जाकिर कॉलोनी, लोहिया नगर, जाहिदपुर, कांशीराम आदि क्षेत्र की मलिन बस्तियों की बालिकाएं पढ़ती हैं। यहां करीब दो हजार बालिकाएं ऐसी हैं जो स्कूल नहीं जाती। डॉ. खान को अब तक करीब 20 फीसद सफलता ही मिल सकी है। असर यह हुआ है कि जो लोग पहले विरोध कर रहे थे वहीं लोग अब अपनी बेटियों के साथ आस-पास की बेटियों को भी एकेडमी में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं। शुरुआती सालों में एकेडमी से पढ़कर निकलने वाली बालिकाएं सफलतापूर्वक अपने-अपने क्षेत्र में सिलाई, कढ़ाई आदि के स्वरोजगार से जुड़ी हैं।

इस क्षेत्र में व्यापक रूप से कार्य करने की जरूरत है। आर्थिक तंगी के कारण शहर की मलिन बस्तियों की बालिकाएं स्कूल नहीं जा पाती हैं। परिजन भी उन्हें पढ़ने के लिए तनिक भी प्रेरित नहीं करते हैं। जीवन संघर्ष के साथ आगे बढ़ रहीं इन बालिकाओं में हुनर की कमी नहीं है। बास उन्हें तराशने की जरूरत है, जिससे वे अपने पैरों पर खड़ी होकर समाज के लिए उदाहरण बन सकें और सभी माता-पिता को बेटियों को पढ़ाने की प्रेरणा बन सकें।
- कप्तान डॉ. इफ्तेखार अली खान, प्रवक्ता, फैज-ए-आम इंटर कॉलेज

लोग समझने लगे शिक्षा का महत्व
मलिन बस्तियों में रहने वाले परिजनों की सामाजिक सेवा से जुड़ी संस्था फलाह-ए-आम सोसायटी के संचालक जकाउल्ला और हामिद अली हैं। वे एफर्ट एकेडमी की कोशिशों को पिछले कुछ सालों से देखते आ रहे हैं। यह सोसायटी लगातार गरीब परिवारों के बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करती रही है।

हामिद अली के अनुसार अब बस्ती में परिजनों को जब बेटियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाता है तो सुनते और समझते हैं। एकेडमी में पढ़कर निकली बेटियों में शिक्षा और प्रशिक्षण का फर्क देखते हैं। इससे जागरूकता बढ़ रही है। अब उन्हें यह समझाने में आसानी होती है कि बालिकाओं का पढ़ना कितना जरूरी है।

'अग्निपरीक्षा' के समान रहा सफर
डॉ. खान बताते हैं कि उनके लिए यह सफर अग्नि परीक्षा के समान था। शुरुआत में परिजनों को प्रेरित करने के बाद जब पढ़ाना शुरू किया तो समाज के लोगों ने तरह-तरह के आरोप लगाते हुए विरोध किया। बालिकाओं को पढ़ने आने से रोकने लगे। जो परिजन बच्चों को भेजते थे उन पर भी दबाव बनाया गया। समय लगा लेकिन लोगों की सोच बदलने में उन्हें सफलता मिली। एकेडमी में बालिकाओं की संख्या लगातार बढऩे लगी।

आलम यह है कि पुरानी एकेडमी के भवन को बेचकर लोहियानगर में नई जमीन ली और वहां अब बड़ा भवन बनाकर स्कूल संचालित किया जाएगा। इसमें एक हजार तक बालिकाओं के बैठने की व्यवस्था की जाएगी।

डॉ. खान की मंशा एफर्ट एकेडमी की तर्ज पर बालिकाओं को निशुल्क डॉक्टर और इंजीनियर बनाने की संस्था खोलने की है। अगर उनके पास समुचित संसाधन होता तो वे स्कूल से प्रोफेशनल डिग्री तक का कॉलेज संचालित करते।

 

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