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मेडिकल में भर्ती मरीजों को ही मिलेगी दवा, मुफ्त इलाज का ख्‍वाब देखने वालों को झटका Meerut News

बजट की कंगाली से जूझ रहे मेडिकल कालेज को उबारने के लिए शासन ने कदम उठाते हुए साफ किया है कि अब केवल इलाज के लिए भर्ती मरीजों को ही मुफ्त दवा मिलेगी।

By Prem BhattEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 09:38 AM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 09:38 AM (IST)
मेडिकल में भर्ती मरीजों को ही मिलेगी दवा, मुफ्त इलाज का ख्‍वाब देखने वालों को झटका Meerut News

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। मेडिकल कालेज में मुफ्त इलाज कराने का ख्वाब देख रहे बीमारों को बड़ा झटका लग सकता है। केजीएमयू की तर्ज पर मेडिकल अस्पताल की ओपीडी के मरीजों को दवा देने पर रोक लग सकती है। सिर्फ भर्ती मरीजों के लिए दवा की व्यवस्था होगी। बजट की कंगाली से जूझ रहे मेडिकल कालेज को उबारने के लिए शासन यह कदम उठा सकता है।

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अतिरिक्‍त बजट से इंकार
शासन ने 2017-18 में दवा का बजट 15 करोड़ था। 2018-19 में दस करोड़ कर दिया। बजट में पांच करोड़ की कमी से चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई। दवा कंपनियों से एडवांस दवा खरीदने से मेडिकल पर देनदारी का बोझ बढ़ गया। गत दिनों मेडिकल प्राचार्य डा. आरसी गुप्ता ने प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा से वीडियोकांफ्रेसिंग के दौरान दवा संकट की चर्चा की, किंतु शासन ने अतिरिक्त बजट देने से इंकार कर दिया। मेडिकल प्रशासन सिर्फ भर्ती मरीजों को दवा देने के बारे में सोच रहा है। केजीएमयू की तरह मेडिकल में ओपीडी के मरीजों को प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र व अन्य स्टोरों से दवा लेनी होगी।

तो शासन लेगा एक्‍शन
अगर किसी डाक्टर की लिखी दवा सिर्फ उसकी क्लीनिक में मिली तो शासन एक्शन लेगा। ड्रग कंट्रोलर अजय जैन ने गुरुवार को जारी सकुर्लर में साफ किया है कि नर्सिग होमों में खुले मेडिकल स्टोरों में बिकने वाली दवाएं बाजार में नहीं मिलतीं, जिससे मरीज महंगे इलाज का शिकार बन रहा है। उन्होंने सहायक आयुक्त और ड्रग इंसपेक्टरों को पत्र भेजकर नर्सिग होमों एवं क्लीनिकों में जांच का निर्देश दिया है।

डॉक्‍टर कमा रहे बड़ा मुनाफा
ड्रग कंट्रोलर अजय जैन ने बताया कि नर्सिग होमों में खुले मेडिकल स्टोरों के प्रति गंभीर शिकायतें मिल रही हैं। ड्रग कंट्रोल पॉलिसी लागू होने के बाद भी डाक्टर कई साल्ट अपने ढंग से बनवाते हैं। मरीजों को मजबूरी में यहीं से एमआरपी पर खरीदना पड़ता है। माना जाता है कि इससे चिकित्सक भी बड़ा मुनाफा कमाते हैं। ड्रग कंट्रोलर ने स्पष्ट किया है कि दवा एक आवश्यक वस्तु है, जिसकी उपलब्धता सुलभ होनी चाहिए। अगर कोई दवा निर्माता कंपनी सिर्फ नर्सिग होम या क्लीनिकों में आपूर्ति करती है तो उसके खिलाफ ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी। ड्रग इंसपेक्टर पवन ने बताया कि कई नर्सिग होमों की सूचनाएं एकत्रित की गई हैं। जल्द ही टीम औचक निरीक्षण करेगी। इसकी मासिक सूचना शासन को देनी होगी।

प्रवेश द्वार से हटे अतिक्रमण
मेडिकल कॉलेज के प्रवेश द्वार पर अतिक्रमण आने वाली एंबुलेंस का रास्ता रोकता है। ओपीडी और इमरजेंसी दोनों तरफ प्रवेश द्वार हैं। ओपीडी की तरफ प्रवेश द्वार के बगल में दोनों तरफ दुकाने सुबह से सज जाती है। अंदर तक ठेले वाले घुस जाते हैं। जिस पर कोई रोक नहीं है। इसी तरह का नजारा इमरजेंसी प्रवेश द्वार की ओर है। दोनों गेट के बाहर वाहनों की कतार भी लग जाती है। इस अतिक्रमण के चलते एंबुलेंस को आने-जाने में परेशानी होती है।

इन उपायों से बचेगा खर्च
2019 में दवा बजट-10 करोड़
अगस्त माह तक जारी छह करोड़
एक अप्रैल से अब तक खर्च-4.61 करोड़
बची धनराशि-1.38 करोड़
बजट की आवश्यकता-9 करोड़
जनवरी 19 से अब तक कुल मरीज-6 लाख 86 हजार 96
जनवरी 19 से अब तक भर्ती मरीज-25, 825

यह भी जानें
ओपीडी में सिर्फ बीपीएल कार्डधारकों, अंडर ट्रायल मरीजों व जनप्रतिनिधियों को ही दवा मिलेगी।
मेडिकल स्टाफ और कर्मचारी मरीजों पर महंगी एंटीबॉयोटिक दवाएं लिखने का दबाव बनाते हैं, जिससे सस्ती दवाओं की खरीद नहीं हो पाती है।
ड्रग स्टोर में जेनरिक दवाओं का स्टाक बढ़ाया जाएगा। डाक्टरों को जेनरिक एवं कैंपस में उपलब्ध दवा लिखनी होगी।
एक ही स्थान पर लंबे समय से तैनात फार्मासिस्ट, स्टाफ नर्स, व वार्ड ब्वाय को एक अंतराल पर बदला जाएगा।
कमाई के चक्कर में शार्ट एक्सपायरी दवाओं की खरीद पर रोक लगेगी।

प्राइवेट एंबुलेंस संचालकों पर रोक लगाने की मांग
मेडिकल प्राचार्य डा. आरसी गुप्ता ने जिलाधिकारी अनिल ढींगरा को पत्र लिखकर कैंपस में मंडराने वाले प्राइवेट एंबुलेंस संचालकों पर रोक लगाने की मांग की है। इसकी वजह से गरीब मरीजों को महंगे इलाज के लिए मजबूर किया जाता है। मेडिकल कालेज में प्राइवेट एंबुलेंस संचालक द्वारा मरीजों की छीनाझपटी को लेकर कई बार मारपीट हो चुकी है। गत दिनों मरीज को बाहर भेजने के दौरान रोकने वाले गार्ड पर गोली चला दी गई थी। स्टाफ सदस्यों की मानें तो मरीजों को निजी अस्पतालों में भर्ती कराने पर प्रति मरीज पांच हजार रुपए का कमीशन मिलता है। इसमें मेडिकल कालेज के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर ओटी में काम करने वाला स्टाफ भी शामिल है।

मेडिकल स्टाफ जानबूझकर नाइट डयूटी पर
एंबुलेंसों के जरिए मरीजों को बाहर भेजने में कई डाक्टरों का नाम भी आ चुका है। चार साल पहले तत्कालीन डीएम पंकज यादव ने मेडिकल कैंपस में निजी एंबुलेंसों के प्रवेश पर रोक लगाया था, किंतु बाद में फिर सब कुछ पहले जैसा हो गया। इस रैकेट में शामिल मेडिकल स्टाफ जानबूझकर अपनी नाइट डयूटी लगवाते हैं। इससे रात के अंधेरे में मरीजों को भ्रमित कर दूसरे अस्पतालों में भेजा जा सके। नीमा की टीम कई बार ऐसे रैकेट का आडियो भी बना चुकी है। मेडिकल स्थित इमरजेंसी वार्ड का रिकार्ड देखें तो यहां पर रात में भर्ती मरीजों की संख्या दिन के मुकाबले काफी कम है। स्टाफ की मानें तो रोजाना दर्जनभर से ज्यादा मरीजों को नर्सिग होमों में भेज दिया जाता है। प्राचार्य डा. आरसी गुप्ता ने डीएम को लिखे पत्र में कहा है कि इस संदर्भ में मेडिकल पुलिस को कई बार सूचना दी जा चुकी है।

इनका कहना है
दवाओं के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। ओपीडी के बजाय भर्ती मरीजों पर दवा देने को प्राथमिकता दी जाएगी। इस संदर्भ में शासन से बात हुई है, किंतु कोई गाइडलाइन जारी नहीं हुई है।
- डा. आरसी गुप्ता, प्राचार्य 


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