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आइए लगाएं डुबकी और घूमकर आएं गंगा मेला

सालभर यहां उस तरह की रौनक नहीं रहती लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के पांच दिवसीय मेले के दौरान तंबुओं का एक अलग नगर आबाद हो जाता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 12:40 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 12:40 PM (IST)
आइए लगाएं डुबकी और घूमकर आएं गंगा मेला
आइए लगाएं डुबकी और घूमकर आएं गंगा मेला

पंकज त्यागी, सचिन गोयल, (जेएनएन)। मेरठ पश्चिम उप्र के गंगा-जमुना के दोआब में जनपद मेरठ के मखदूमपुर घाट पर गंगा की तलहटी में हर वर्ष दीपावली के एक पखवाड़ा बाद काíतक पूíणमा पर मेला लगता है। इस अनूठे आयोजन में आस्था, ज्ञान और संस्कृति के साथ ही अनेकता को एकता में पिरोने की झलक भी साफ दिखती है। दूर-दराज से भैंसा-बुग्गी व बैल-गाड़ियों से पांच लाख से अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और पुण्यार्जन करने के साथ पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए दीपदान और ¨पडदान करते हैं। सालभर यहां उस तरह की रौनक नहीं रहती लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के पांच दिवसीय मेले के दौरान तंबुओं का एक अलग नगर आबाद हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा 23 नवंबर की है, पर मेला का उद्घाटन 20 नवंबर को हो जाएगा। यदि इन विहंगम और मनमोहक नजारों को प्रत्यक्ष रूप से देखने से आप महरूम रह जाते हैं तो हम कराते हैं आपको मेले की सैर-

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आस्था व भक्ति का समागम है मखदूमपुर काíतक मेला

मेरठ का ऐतिहासिक महाभारतकालीन हस्तिनापुर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। गंगा-जमुना के दोआब में मखदूमपुर घाट को भी क्षेत्र के एक तीर्थ स्थल का गौरव प्राप्त है। यहां गंगा की तलहटी में हर वर्ष दीपावली के एक पखवाड़ा बाद काíतक पूíणमा पर पांच दिवसीय मेला लगता है। भक्ति व आस्था की बयार में ऊंच-नीच व जात-पात की दीवार ढह जाती हैं। हर वर्ग के श्रद्धालु एक घाट पर ही गंगा में डुबकी लगाकर आचमन करते हैं। उक्त स्थान पर यूं तो दशकों पहले मेला लगना शुरू हुआ लेकिन अब यह विस्तार लेकर बड़ा स्वरूप ले चुका है। भैंसा-बुग्गी, ट्रैक्टर-ट्राली और निजी वाहनों से दूर-दराज से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाकर पुण्यार्जन कर रैन-बसेरा करते हैं। इन पांच दिन गंगा की रेती मे तंबुओं की नगरी बस जाती है। इस दौरान सुबह-शाम नित्य गंगा पूजन के साथ बच्चों का मुंडन संस्कार भी होता है। नवविवाहित युगल मंगल गीतों के बीच बुजुर्गो का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर

जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर मवाना तहसील क्षेत्र के हस्तिनापुर ब्लाक में मखदूमपुर घाट पर लगने वाले मेले का स्वरूप भले ही वक्त के साथ बदल गया हो लेकिन आस्था में कोई परिवर्तन नहीं आया है। मेला आयोजन की जिम्मेदारी जिला पंचायत उठाता है।

1929 से हुआ मेले का शुभारंभ

बताया जाता है कि यह मेला यहां 1929 में लगना शुरू हुआ। पूर्व में यह मेला परीक्षितगढ़ ब्लाक अंतर्गत खरकाली घाट पर लगता था लेकिन पत्रकार स्व. रामजीदास हितैषी आर्य कुमार व स्वतंत्रता सेनानी एवं तत्कालीन सेवानिवृत डीएसपी स्व. ठाकुर रूमाल ¨सह के प्रयासों से मेले का आयोजन खरकाली की जगह मखदूमपुर घाट पर शुरू किया गया।

गंगा की धारा तय करती है मेले का स्थान

मखदूमपुर घाट पर हर बार मेला का स्थान बदल जाता है। इसकी मुख्य वजह गंगा की धारा का परिवर्तन है। इस बार गंगा ने बस्ती की तरफ ज्यादा कटान किया, जिससे मेला का स्थान बदल गया है। गंगा किनारे कच्चे रास्ते फूंस पराल से तैयार किए जाते हैं। इस बार मेले के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा जगह मिली है।

बैल व भैंसा-बुग्गी छोड़ते हैं छाप

आस्था व भक्ति के समागम में कृषि प्रधान देश की झलक भी नजर आती है। 21वी सदी में प्रवेश करने के बाद बेशक मेले में जाने के लिए लोग कार, बस और बाइक का भी प्रयोग करते हैं लेकिन ग्रामीण अंचल में अभी बैल व भैंसा-बुग्गी का क्रेज बरकरार है। लोग कई माह पहले से अच्छे पशु खरीदकर उन्हें चना, तेल, घी आदि खिलाकर तैयार करते हैं। उनके हुनर को परखने के लिए रेस भी लगवाते हैं। भैंसा दौड़ आदि की प्रतियोगिताएं ग्रामीण अपने स्तर पर करते हैं, जिनमें विजेताओं को लाखों रुपये का इनाम बंट जाता है। यह जोर आजमाइश मेला समापन तक रहती है।

पिकनिक स्पॉट से कम नहीं मेला स्थल

पांच दिन तक चलने वाला मेले में खेल-खिलोनों के साथ झूला आदि का बाजार सजता है, जिसमें घरेलू व कृषि संबंधित सामान उपलब्ध रहता है। बच्चे झूला झूलते और रेत के घरोंदे बनाते हैं जबकि युवा कुश्ती, कबड्डी, वॉलीबाल के साथ तैराकी आदि का लुत्फ उठाते हैं।

भजन-संध्या व लोक गीतों से गूंजता है घाट

गंगा के घाट कई दिनों तक भजन-संध्या के साथ लोक गीतों से गूंजते हैं। सुबह शाम मां गंगे की महा आरती के साथ गंगा किनारे महिलाओं के लोकगीत सुनाई देते हैं। ढोल की थाप के साथ महिलाएं व युवा नृत्य करते नजर आते हैं। बैलों के गले में बंधी खांकर और घंटियों की आवाज सुनकर पुराना दौर लौटता सा महसूस होता है।

पूर्वजों को दीपदान और ¨पडदान

गंगा में डुबकी लगाकर लोग पुण्यार्जन करते हैं। गंगा मां को पान-नारियल आदि अर्पित करते हैं। पूर्वजों की मुक्ति के लिए ¨पडदान और दीपदान भी किया जाता है। कहीं-कहीं अंतिम संस्कार होते भी देखे जा सकते हैं।

पर्यटन की घोषणा के बावजूद घोर उपेक्षा

हरिद्वार की तर्ज पर गढ़मुक्तेश्वर को तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने पर प्रदेश सरकार का ध्यान है लेकिन मखदूमपुर गंगा घाट आज भी उपेक्षित है। कच्चे घाट पक्के नहीं हुए। राजनैतिक व प्रशासनिक अधिकारी कई बार इसे पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा कर चुके लेकिन दावे धरातल पर नहीं उतरे।

जनसंख्या नियंत्रण का देंगे संदेश, देहदान-अंगदान कीजिए

जिला पंचायत ने मेले में जनसंख्या नियंत्रण का संदेश देने की भी योजना बनाई है। पूरे मेला प्रांगण में माइको-लाउडस्पीकर के जरिए जनसंख्या नियंत्रण का संदेश देने के साथ बढ़ती जनसंख्या से होने वाले नुकसानों की भी जानकारी दी जाएगी। श्रद्धालु गंगा स्नान के बाद देहदान, नेत्रदान या अंगदान का पुण्यलाभ कमाना चाहते हैं तो इसके लिए भी स्वास्थ्य विभाग की टीम मौजूद रहेगी। यहां विशेष कैंप में लोग देहदान, अंगदान या नेत्रदान का फॉर्म भर सकेंगे।

पॉलीथिन मुक्त होगा मेला

जिला पंचायत ने मेला स्थल को पॉलीथिन मुक्त रखने की घोषणा की है। जिपं अध्यक्ष कुलविंदर सिंह का कहना है कि सभी दुकानदारों से मेला प्रांगण में पॉलीथिन का इस्तेमाल न करने को कहा गया है। श्रद्धालुओं से भी अपील की जा रही है। जागरूकता स्लोगन लिखे बैनर-पोस्टर व होर्डिग भी लगाए जाएंगे।

महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था

इस बार भी महिलाओं के स्नान के लिए अलग घाट बनया जा रहा है ताकि उन्हें असुविधा न हो। महिलाओं के कपड़े बदलने का भी स्थान अलग ही होगा। सुरक्षा के मद्देनजर पूरे मेला प्रांगण में सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था रहेगी।


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