मेरठ में सियासत में उलझी खाकी, हालात हो गए विकराल
मेरठ। सोमवार की चमकती सुबह अचानक शोलों में बदल गई। आंदोलन की चिंगारी सड़कों पर आग बनकर बरसी। चिल्लाती
मेरठ। सोमवार की चमकती सुबह अचानक शोलों में बदल गई। आंदोलन की चिंगारी सड़कों पर आग बनकर बरसी। चिल्लाती भीड़, जलती गाड़ियां, बदहवास भागती जनता और ईट-पत्थरों से पटी सड़कें। यह डरावना मंजर मेरठ में हर कहीं नजर आया। सियासत की कैद में फंसी खाकी तमाशबीन बनी रही। जब तक पुलिस एक्शन में आई, हालात विकराल हो गए थे।
दलित संगठनों में बहते करंट को भांपने में चूक हुई या फिर सियासत ने इस पर पर्दा डाल दिया। प्रदेशभर में अपराधियों पर ताबड़तोड़ एक्शन लेने वाली पुलिस सप्ताहभर से सुलग रही चिंगारी को कैसे नहीं भांप सकी? यह प्रश्न गलियारों में गरमा रहा है। अगर पुलिस ने आंदोलनकारियों को इतने हल्के में लिया तो खाकी का यह बचकाना रवैया कल किसी बड़ी आपदा का कारण बन सकता है। चप्पे-चप्पे में अपराधियों पर नजर रखने का दावा करने वाली पुलिस की एलआइयू कैसे चूक गई। पुलिस और सरकार दोनों ने आंदोलन की सुलगती नब्ज को परखने में चूक कर दी। सरकार को उम्मीद थी कि दलितों का आंदोलन लोकतंत्र की पटरी से गंतव्य तक पहुंच जाएगा, किंतु बवाल, आगजनी, और तोड़फोड़ की ताबड़तोड़ घटनाओं ने प्रदर्शन की दिशा बदल दी। पहले प्रशासन ने आंदोलन को सामान्य बताकर प्रदेश सरकार को भरोसा दिला दिया, किंतु यहां पर भाजपाइयों ने कमान अपने हाथ में ली। उन्होंने प्रदेश सरकार से सीधा संपर्क साधते हुए जलते हुए मेरठ की हकीकत बता दी। किंतु यहां पर सरकार ने भी सियासी नफा-नुकसान आंकने में वक्त गंवाया। उधर, दोपहर 12 बजे तक पुलिस का कहीं अता पता नहीं था। आंदोलन की पूर्व सूचना के बावजूद प्रमुख चौराहों एवं संवेदनशील स्थानों पर पर्याप्त सुरक्षा नहीं थी। इधर, सरकार का मुंह ताकती खड़ी पुलिस दोपहर एक बजे के बाद हरकत में आई। किंतु तब तक शहर के चेहरे पर जलने के दर्जनों निशान बन चुके थे। ईव्ज चौराहा से आंबेडकर चौक की ओर जाने वाली सड़क के डिवाइडरों को भारी क्षति पहुंचाई गई। गाड़ियों को फुर्सत के साथ जलाया गया। चूंकि पुलिस कहीं नहीं थी, ऐसे में प्रदर्शनकारियों ने राहगीरों के साथ ही स्कूली बच्चों से भी बदसलूकी कर दी। पुलिस के भरोसे दुकान खोलने निकले व्यापारियों ने खुद को ठगा हुआ पाया। बवालियों का आक्रोश इस कदर टूटा कि तमाम दुकानदार ातला बंद करने के बजाय जान बचाकर भाग निकले। घंटों तक चले तांडव के बाद खाकी सियासी केंचुल उतारकर अचानक प्रकट हुई। घंटों तक खामोश पुलिस अकस्मात प्रदर्शनकारियों पर टूट पड़ी। उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। पुलिस महज 20 मिनट में पूर्व विधायक योगेश वर्मा के पास पहुंचकर उन्हें समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया। आंदोलन के चश्मदीदों ने पुलिस से गंभीर सवाल पूछा है। आखिर सुबह नौ बजे जय भीम एवं संविधान के नारे लगाने वाली भीड़ दस बजे के बाद अराजक क्यों बन गई? भीड़ को सुनसान सड़कें, खुले चौराहे क्यों दिए गए? मुरझाए पुलिस वाले सुरक्षा में क्यों खड़े किए गए, जबकि पुलिस को पता था कि सोशल मीडिया पर आंदोलनकारी अन्य तमाम राज्यों से जुड़े हुए थे, जिसने आग में घी डालने का काम किया।