कवाल कांड की बरसी : पुश्तैनी घरों की आती है याद, भलवा गांव में निर्वासित जिंदगी बसर कर रहे खेड़ा पट्टी के 29 परिवार
कवाल कांड 2013 सांप्रदायिक दंगों के बाद जिंदगी कितनी कठिन हुई यह उन लोगों के अलावा कोई नहीं जान सकता जो पुश्तैनी घरों से महरूम होने के साथ अपनो से दूर हो गए।
मुजफ्फरनगर, जेएनएन। सांप्रदायिक दंगों के बाद जिंदगी कितनी कठिन हुई, यह उन लोगों के अलावा कोई नहीं जान सकता, जो पुश्तैनी घरों से महरूम होने के साथ अपनो से दूर हो गए। गांव भलवा में रहने वाले 29 परिवार सात साल पुराने मंजर को याद कर सिहर जाते हैं।
दहशत में छोड़ दिया था घर
दंगों के बाद भौराकलां थाना क्षेत्र के गांव खेड़ा पट्टी से 29 परिवारों ने दशहत के चलते अपने घर छोड़ दिए थे। सात सालों से गांव भलवा में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। दंगों के दिनों और उसकी बाद की परेशानियों को याद करके उनका गला भर आता है। अय्यूब, मीर हसन, लियाकत, ताहिर, मेहरबान, अहसान मकसूद ने बताया कि सात साल पहले की याद आज भी उनके जहन में ताजा है। उन्होंने बताया कि यदि समय रहते सेना नहीं आती तो शायद एक भी नहीं बच पाता। सेना ने उन्हें गांव से निकालकर बसी के शरणार्थी शिविर में पहुंचाया था। बाद में भलवा के लोगों ने जमीन देकर कौम की मदद से उनके रहने के लिए आशियाना बनाया। उन्होंने बताया कि उन्होंने पुरखो का मकान भी छोड़ दिया। साथ में रहने वाले भाई भतीजे भी छूट गए। जिसे जहां पर जगह मिली वहीं पर बस गया। करीब गांव के 29 परिवारों ने भलवा गांव में शरण ले रखी है। उन्हें अपने घर छोडऩे का मलाल है, लेकिन अब परिस्थिति ऐसी बन गई है कि वह वापिस अपने पुश्तैनी घर में नहीं जा पाएंगे।