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सड़क के बाद संसद में उठा मेरठ छावनी के नए टोल टैक्‍स का मुद्दा Meerut News

सांसद राजेन्द्र अग्रवाल ने संसद में शून्य काल में मेरठ छावनी में टोल और कठिन कानून के मुद्दे पर उठाए सवाल। कहा नए टोल से जनता परेशान है।

By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 05:13 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 05:13 PM (IST)
सड़क के बाद संसद में उठा मेरठ छावनी के नए टोल टैक्‍स का मुद्दा Meerut News
सड़क के बाद संसद में उठा मेरठ छावनी के नए टोल टैक्‍स का मुद्दा Meerut News

मेरठ, जेएनएन। 8 दिसंबर से शुरू किए गए छावनी परिषद के नए टोल व्यवस्था से व्यापारी, आमजन, आवागमन प्रभावित है। जिसे खत्म करने की मांग की जा रही है। इसका विरोध सड़क पर हो रहा है। अब यह मुद्दा भारतीय संसद में भी उठाया गया है। मंगलवार को स्थानीय सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने संसद में शून्य प्रहर में इस मुद्दे को उठाया और छावनी के टोल व्यवस्था का विरोध किया। उन्होंने कहा कि छावनी की नीतियों से सामान्य जनता परेशान है।

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नए टोल से जनता परेशान

मेरठ कैंट में पुराने अधिनियम को आधार बना कर हाइवे और राज्य की सड़कों पर टोल लगा दिया गया। सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने लोकसभा में छावनी परिषदों में रह रहे नागरिकों की समस्याओं के समाधान की मांग की। सांसद ने लोकसभा में देश भर की छावनी परिषदों में रह रहे नागरिकों की समस्याओं की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने कहा कि छावनी क्षेत्रों में नागरिकों की निजी संपत्तियां मौजूद हैं। जो अंग्रेजी शासनकाल में ओल्ड ग्रांट और लीज की शर्तों पर होती थीं। छावनी अधिनियम 1924 के अंतर्गत लोगों को अपने मकान और दुकान के नक्शे पास कराने, नाम जुड़वाने में कोई समस्या नहीं आती थी। यहां तक कि मूल मालिक की मृत्यु हो जाने पर उसके वंशजों के नाम अलग-अलग चढ़ा दिए जाते थे। सब्सिडियरी सर्वे नंबर अलग कर दिए जाते थे। आजादी के बाद भी यह व्यवस्था ठीक ढंग से चल रही थी। लेकिन 23 मार्च 1968 को सरकार ने देश में छावनी क्षेत्रों की भूमि नीति जारी करके संपत्तियों के अलग सर्वे नंबर देने, नाम चढ़ाने, नक्शे पास करने, बेचने और गिरवी रखने की अनुमति देने पर रोक लगा दी। छावनी बोर्डों के अधिकार समाप्त कर दिए गए। अपने बढ़ते हुए परिवार की आवश्यकता पूरी करने के लिए कैंट में निर्माण की अनुमति नहीं है।

मिलीभगत से हो रहा अवैध निर्माण

कर्मचारियों से मिलीभगत करके लोग अवैध निर्माण कर लेते हैं। जिसके कारण छावनी बोर्ड में भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिल रहा है। सांसद ने कहा कि छावनी क्षेत्रों की भूमि नीति जो अंतिम बार वर्ष 1995 में संशोधित हुई थी संसद के पारित छावनी अधिनियम, 2006 के पूरी तरह विरोधाभासी है। उन्होंने कहा कि सांसदों ने इस विषय को अनेक बार लोकसभा में उठाया है। इन विषयों के समाधान के लिए प्रधानमंत्री के निर्देश पर रक्षा मंत्री ने पहल की थी। देशभर के छावनी परिषदों के उपाध्यक्षों और संबंधित सांसदों की एक बैठक दिल्ली में आयोजित की गई थी। जिसमें व्यापक विचार विमर्श के बाद रक्षा मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था। जिसे 31 दिसंबर 2018 तक अपनी रिपोर्ट देनी थी। इस समिति ने सांसदों सहित सभी पक्षों से विचार विनिमय किया। उस समिति की रिपोर्ट का क्या हुआ इस संबंध में अभी कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई है।

सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने सभापति के माध्यम से सरकार से अनुरोध किया कि समिति की रिपोर्ट शीघ्र जारी की जाए। जिससें छावनी में रहने वाले नागरिकों की समस्याओं का समाधान किया जा सके। 


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