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डिजिटल दौर में भी किताबें तो हाथ में लेकर ही पढ़ने का मजा है

सूचना क्रांति के दौर में कई बार लगता है कि किताबों का भविष्य नहीं है लेकिन पुस्तकों को पढ़ने का क्रेज इस दौर में भी कम नहीं है।

By Ashu SinghEdited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 09:35 AM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 09:35 AM (IST)
डिजिटल दौर में भी किताबें तो हाथ में लेकर ही पढ़ने का मजा है
डिजिटल दौर में भी किताबें तो हाथ में लेकर ही पढ़ने का मजा है
मेरठ, [विवेक राव]। यह डिजिटल दौर है,जहां किताबों के पन्ने पलटने में भी वक्त नहीं लगता। बस एक क्लिक कीजिए,तमाम तरह की किताबें कंप्यूटर और मोबाइल स्क्रीन पर आ जाएंगी। सूचना क्रांति के दौर में कई बार लगता है कि किताबों का भविष्य नहीं है, लेकिन पुस्तकों को पढ़ने का क्रेज इस दौर में भी कम नहीं है। आज भी असली मजा किताबों को हाथ में लेकर पढ़ने में आता है। यही कारण है कि चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी हो या फिर राजकीय पुस्तकालय या तिलक लाइब्रेरी यहां पाठकों की संख्या कम नहीं हुई है।
सीसीएसयू में ई-बुक से अधिक बुक पढ़ते हैं छात्र
चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजा महेंद्र प्रताप लाइब्रेरी आज पूरी तरह से डिजिटल है। फिर भी एक लाख 53 हजार किताबें और 17 लाख से अधिक रिसर्च पेपर रखे गए हैं। डिजिटल प्लेटफार्म में 30 लाख ई-बुक हैं। लाइब्रेरी में आज भी ई-बुक से अधिक छात्र-छात्रएं पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं। हर रोज लाइब्रेरी में 700 से अधिक विद्यार्थी पुस्तकों के साथ वक्त बिताते हैं। लाइब्रेरी में कई दुर्लभ किताबें हैं।
पहली पसंद किताबें
ए ग्रेड के राजकीय पुस्तकालय में 60 हजार से अधिक किताबें हैं। धर्म, साहित्य, कला, विज्ञान, दर्शन, इतिहास, भूगोल, वेद धर्म सहित हर प्रतियोगी परीक्षा के लिए किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए युवाओं की भीड़ रहती है। नगर निगम की तिलक लाइब्रेरी में हिंदी,अंग्रेजी,फारसी भाषा की किताबें हैं। स्वामी विवेकानंद भी इस लाइब्रेरी में आकर पढ़ चुके हैं। उनकी पढ़ी हुई कुछ किताबें आज भी आकर्षण का केंद्र हैं, पढ़ने के दौरान उन्होंने उन पर अंडर लाइन की थी।
इसलिए मनाते हैं विश्व पुस्तक दिवस
यूनेस्को ने 1995 और भारत सरकार ने 2001 में 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाने की घोषणा की थी। 23 अप्रैल से महान लेखक विलियम शेक्सपीयर की याद भी जुड़ी है। उन्होंने इसी दिन दुनिया को अलविदा कहा था। इस दिवस के माध्यम से लेखकों को नई पुस्तकें लिखने और पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसे ‘वल्र्ड बुक एंड कापी राइट डे’भी कहते हैं।
इनका कहना है
अभी भी हर पाठक तक है कंप्यूटर की पहुंच नहीं है। ई-बुक तकनीक से जुड़ी है। किताबों में ऐसी कोई समस्या नहीं है। अभी भी आनलाइन कंटेंट की गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है, जबकि किताबों की गुणवत्ता उसके लेखक और प्रकाशक से जुड़ी होती है। ऐसे में किताबें कभी कम नहीं होंगी। किताबों को कभी भी कहीं भी पढ़ने की आजादी भी इसे ई-बुक से अलग करती है।
- डा.जमाल अहमद सिद्दकी,विभागाध्यक्ष,पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग  

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