मजहब के नाम पर विभाजन मानवाधिकार का हनन
किसी देश का अप्राकृतिक विभाजन मानवाधिकार हनन की जननी है। जब कोई देश मजहब के नाम पर विभाजित होता है तब से ही मानवाधिकार हनन का बीज पड़ जाता है।
मेरठ, जेएनएन। किसी देश का अप्राकृतिक विभाजन मानवाधिकार हनन की जननी है। जब कोई देश मजहब के नाम पर विभाजित होता है, तब से ही मानवाधिकार हनन का बीज पड़ जाता है। यह कहना है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री का। वे मेरठ कालेज की ओर से आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की ओर से इसका आयोजन किया गया।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकारों की स्थिति पर उन्होंने कहा कि धर्म और मजहब समान अर्थ नहीं हैं। धर्म को अंग्रेजी से अनुवाद करके नहीं देखना चाहिए। धर्म और रिलिजन एक दूसरे के पूरक नहीं हैं। धर्म मनुष्य के स्वभाव के अनुकूल या मानवी प्रकृति का होने के कारण स्वाभाविक है, जबकि रिलिजन अप्राकृतिक व अस्वाभाविक है। उन्होंने चीन में मुस्लिम समुदाय पर हो रहे मानवाधिकार अत्याचारों पर भी चर्चा की। कहा कि चीन रिलिजन को अफीम कहता है। सिध बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन किया जा रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बौद्धिक प्रमुख सुशील ने बताया कि आतंकवादी आमजन का नरसंहार कर रहे हैं। ऐसे लोगों का कोई मानवाधिकार नहीं होना चाहिए। प्रधान वैज्ञानिक डा. रविद्र कुमार ने जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के कार्यों की जानकारी दी। आयोजन सचिव डा. संजय कुमार ने कहा कि जो भी व्यक्ति, देश, संगठन देश के लिए खतरा है, आतंकवादी या आतंकवादियों के संगठन हैं, इनका कोई भी मानवाधिकार नहीं होना चाहिए। डा. रविद्र कुमार, दयानंद द्विवेदी, एस गोदियाल, डा. नीलम कुमारी, डा. एमपी वर्मा, बीना राय, भूपेंद्र सिंह, अनुराग जैसवाल, संजीव मिश्रा का सहयोग रहा।