होलिका दहन के लिए लकड़ी का बेहतर विकल्प हैं उपले
होलिका दहन के लिए चौराहों और गली-गली में लकड़ी एकत्र हो रही है। इस लकड़ी से कितना प्रदूषण फैलेगा? यह ख्याल कौन रखेगा। लकड़ी के विकल्प के रूप में सोचा जा सकता है। विकल्प मौजूद भी है। बस जरूरत है तो थोड़ा नजरिया बदलने की।
मेरठ । होलिका दहन के लिए चौराहों और गली-गली में लकड़ी एकत्र हो रही है। इस लकड़ी से कितना प्रदूषण फैलेगा? यह ख्याल कौन रखेगा। लकड़ी के विकल्प के रूप में सोचा जा सकता है। विकल्प मौजूद भी है। बस जरूरत है तो थोड़ा नजरिया बदलने की।
मेरठ में 1519 स्थानों पर होलिका दहन होगा। इसके लिए करीब 75 हजार कुंतल लकड़ी की जरूरत होगी। पर्यावरण वैज्ञानिकों के मुताबिक एक किलोग्राम लकड़ी जलने पर 130 ग्राम कार्बन मोनो आक्साइड, 51 ग्राम हाइड्रोकार्बन, 21 ग्राम पार्टिकूलेट मेटर, 0.3 ग्राम पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन और 10 से 167 मिलीग्राम डोक्सिन उत्पन्न होता है। इनमें दो रसायन कैंसरजनक हैं। कार्बन मोनोआक्साइड वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड में परिवर्तित हो जाती है, जो तापमान वृद्धि के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। ऐसे में एक दिन में 75 हजार कुंतल लकड़ी जलाने पर पर्यावरण पर कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा। अनुमान लगा सकते हैं।
उपले से गैसों का उत्सर्जन कम
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुरेंद्र यादव बताते हैं कि लकड़ी का सबसे अच्छा विकल्प उपले (कंडे) हैं। यह वेस्ट मटेरियल होता है। इसको जलाने पर लकड़ी की अपेक्षा उत्सर्जित गैस की मात्रा भी कम होती है। इसके अलावा गन्ने की खोई का प्रयोग भी होलिका दहन में कर सकते हैं। साथ ही यह भी ध्यान देना पड़ेगा कि उपले भी कम मात्रा में जलाएं। होलिका बड़ी या छोटी की होड़ से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का काम होता है।
पेड़ बचेंगे तो चलेंगी सांसे
पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार उपले की होलिका दहन शुरू होने से लकड़ी की जरूरत खत्म हो जाएगी। इससे हर साल सैकड़ों पेड़ों की बलि नहीं देनी पड़ेगी। पेड़ बचेंगे तो जीवन के लिए जरूरी ऑक्सीजन और पर्यावरण की अन्य जरूरतें पूरी होंगी। वैज्ञानिक तथ्य है कि एक चार साल का पेड़ प्रतिदिन चार से पांच लोगों को आक्सीजन प्रदान करता है।