आसान न होगा लॉकडाउन से इंडस्ट्री का उबर पाना
सड़कों पर सिर्फ पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की गाड़ियां हैं वहीं औद्योगिक क्षेत्रो में मंदी का दौर शुरु होने वाला है।
मेरठ, जेएनएन। सड़कों पर सिर्फ पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की गाड़ियां हैं, वहीं औद्योगिक क्षेत्रों में सन्नाटा पसरा है। आर्थिक चक्र पूरी तरह रुकने से भारी नुकसान तय है। उद्यमी अपने घरों में बैठकर भविष्य की योजनाएं बना रहे हैं। ऐसे में दैनिक जागरण ने संगल पेपरमिल के निदेशक हिमांशु संगल से बातचीत की। उन्होंने माना कि अंतरराष्ट्रीय आपदा है, जिसमें केंद्र सरकार के पास लॉकडाउन के अतिरिक्त कोई रास्ता न था। अब कारोबार को नई धार देने के लिए घर से ही कोई रणनीति बनानी होगी। कोरोना वायरस ने पूरे देश को नजरबंद कर दिया है। 21 दिन के लॉकडाउन में किस प्रकार की चुनौती देखते हैं?
-ये समूची मानव सभ्यता के लिए बड़ी चुनौती है। मैंने ऐसी किसी आपदा और बंदी के बारे में सुना तक नहीं था। वायरस से बचेंगे तभी जिंदगी और कारोबार का कोई अर्थ होगा। सभी को घरों में रहकर सरकार का सहयोग करना चाहिए। -आप पेपरमिल इंडस्ट्री संचालित करते हैं। इंडस्ट्री पर कोरोना का कितना और कैसा प्रभाव रहा?
कोरोना ने इंडस्ट्री और इकोनॉमी को बड़ा झटका दिया है। दिसंबर 2019 में चीन में बीमारी फैलने के साथ ही मेरठ के कई कारोबारियों का आयात-निर्यात रुक गया। जनवरी 2019 से स्थिति और भयानक हो गई। जब मेरठ के उद्यमियों ने कोरिया, जापान और अन्य देशों से मशीनें व कच्चा माल मंगवाना शुरू किया तो भारत में भी संक्रमण आ गया। 22 मार्च से तो इंडस्ट्री पूरी तरह बंद है। चीन से मिला आर्डर भी निरस्त हो गया है। 2018 पेपर इंडस्ट्री के लिए अच्छा था, किंतु 2019 में सिर्फ 25 फीसद बिजनेस बचा रह गया। अब कोरोना ने भारी क्षति पहुंचा दी। -इस तरह अभूतपूर्व बंदी में आपकी दिनचर्या क्या है। क्या इंडस्ट्री को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कोई योजना बना रहे हैं?
-घर पर परिवार के साथ लंबे समय बाद इतना वक्त गुजारने का मौका मिला है, जिसका आनंद ले रहा हूं। पढ़ने का शौक है। बच्चों के साथ घुलमिल गया हूं, किंतु चिंता देश और दुनिया की है। अपनी भी। इंडस्ट्री के नुकसान को फिलहाल रणनीति बनाकर नहीं पूरा किया जा सकता। कोरोना खत्म होने के बाद इंडस्ट्री तुरंत रफ्तार भी तो नहीं पकड़ पाएगी। दुनिया की इकोनॉमी को लगभग 900 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। हर सेक्टर प्रभावित हुआ है। -देश के औद्योगिक सेक्टर को उबरने में कितना वक्त लग सकता है। आपका क्या अनुमान है?
-पूरी दुनिया अंधेरे में है, ऐसे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लॉकडाउन के बाद भी दुनिया महीनों सहमी रहेगी। भारत ही नहीं, मेरठ के भी उद्यमियों का बड़ा कारोबार यूरोपीय व अमेरिकी देशों से था, जो पटरी में आने में लंबा वक्त लग सकता है। वैसे भी, पिछले एक साल से इंडस्ट्री में डिमांड कम रह गई थी।