पछुआ हवा: यूपी में पहली बार पीपीई किट पहनकर हुआ ये काम, जानें कोरोना वार्ड में हवन का विज्ञान
कोरोना मरीजों की सेहत के लिए उनके वार्ड में हवन करने का यह दृश्य विशेषज्ञों को हैरान कर रहा है। प्रदेश में पहली बार पीपीई किट पहनकर हवन करने का उदाहरण सामने आया है।
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। वेदों से निकले विज्ञान में साफ वॢणत है कि मंत्रोच्चार की ताकत और जड़ी बूटियों की आहुति से वायुमंडल विषाणुहीन बन जाता है। कोरोना मरीजों की सेहत के लिए उनके वार्ड में हवन करने का यह दृश्य विशेषज्ञों को हैरान कर रहा है। प्रदेश में पहली बार पीपीई किट पहनकर हवन करने का उदाहरण सामने आया है, जिसमें हरिद्वार से आए पुरोहितों ने 49 प्रकार की औषधियां भी डालीं। जड़ी-बूटियों में पाए जाने वाले रसायन सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं, जिससे जीव जगत निरोगी बनता है। आयुर्वेद, कर्मकांड और अध्यात्म की इसी त्रिवेणी से संजीवनी की भी एक धारा बह निकली है। शांतिकुंज हरिद्वार के विशेषज्ञों ने आनंद अस्पताल में अनुष्ठान से पहले यजमानों को विस्तार से वैज्ञानिक पक्ष बताया। जिस वार्ड में संक्रमण के खौफ से डाक्टर तक नहीं जाते, वहां पुरोहितों की टीम ने मंत्रोच्चार से विश्वास की ज्योति जला दी।
पोस्टरों में अब मुस्कुराते-चिढ़ाते भाजपाई
संगठन के गुलशन में नए चेहरों के खिलने पर कार्यकर्ताओं ने भी अंगड़ाई ली है। कल तक वीरान पड़ी सड़कों के ऊपर होॄडगों और बैनरों का सैलाब है। भाजपाई बैनर लगाने में पैसे भी खर्च करें और समीकरण भी न सधे तो बड़ी नाइंसाफी है। महानगर इकाई के चारों महामंत्री पोस्टरों में मुस्कुराते हुए जहां प्रदेश महामंत्री अश्विनी त्यागी और क्षेत्रीय अध्यक्ष मोहित बेनीवाल को बधाई दे रहे हैं, वहीं कार्यकर्ताओं का एक खेमा चिढ़ा हुआ है। राजनीति के कुशल मौसम वैज्ञानिक ललित नागदेव ने बेगमपुल चौराहे पर एक होॄडग एक पदाधिकारी को समॢपत कर दिया, और दर्जनों चेहरों को लगाने की मजबूरी से बच गए। दीपक शर्मा ने डा.लक्ष्मीकांत का फोटो नहीं लगाया, जबकि विवेक रस्तोगी ने मुकेश सिंघल से लेकर सिक्का तक को साधा। पार्टी दर्जनों गुटों में बंटी है, ऐसे में किसको हटाकर किसका फोटो लगाएं, यह कठिन प्रश्न है।
बेटा, अब तुम डॉक्टर न बनना
कोरोना वायरस ने डॉक्टरों को अनाड़ी और अधिकारियों को डॉक्टर बना दिया। मेडिकल कॉलेज में प्रशासनिक अधिकारियों की कई पाठशालाएं लग चुकी हैं, जिसमें विशेषज्ञ डॉक्टरों को बताया जाता है कि उन्हें किस मरीज को कब और कौन सी दवा देनी है। डॉक्टरों को मलाल है कि दस साल की चिकित्सा की पढ़ाई के बाद भी
आखिर वो अधिकारियों जितनी जानकारी क्यों नहीं रख पाए। साहब हाथ में एक डायरी लेकर ब्लाक में दस्तक देते हैं, और तीन मरीजों से बात करने के बाद इलाज का प्रोटोकाल चेक कर लेते हैं। दवाओं को इस कदर पहचान गए हैं कि कई बार वो डॉक्टरों की क्लास ले लेते हैं। डॉक्टर इलाज की डाइग्नोसिस बनाने से ज्यादा निर्देशों के पालन की आदत डाल चुके हैं। घर पर बच्चों को बड़ी सीख दे रहे हैं कि बेटा घर रह जाना, धंधा कर लेना, मगर अब डॉक्टर न बनना।
गुटबाजी का पावरहाउस बन गया मेरठ
पश्चिम उप्र एक सियासी ताकत क्यों नहीं बना, इसकी पूरी झलक मेरठ में मिलती है। यहां सभी दल आपस में ही उलझे हैं। इन्हीं वजहों से नगर न सिर्फ स्मार्ट सिटी की रेस हारा, बल्कि स्वच्छता की रैंकिंग में सूबे में सबसे पीछे मिला। यहां सियासत का चरित्र अलग है। गत दिनों अवैध किताबों का जखीरा मिलने पर भाजपा में भूचाल आया। सपा और कांग्रेस ने आलस्य छोड़कर घेरेबंदी शुरू की। यही नहीं, सत्ताधारी पार्टी भाजपा में भी इतने खेमे बन गए हैं कि मंडल एवं बूथ अध्यक्षों की सांस अटकी रहती है। कब, कौन और किस विधायक से चुगली कर बैठे। वहां से रिश्ता ठीक हुआ तो महानगर व जिला इकाई खबर ले लेगी। कांटों पर चलने जैसे हालात हैं। गुटबाजी भ्रष्टाचार का ही साइड इफेक्ट है। वैसे अब भी संगठन में बदलाव की आशंका में सत्ताधारियों की नींद उड़ा रखी है।