जमीन से आसमां तक है नारी शक्ति की गूंज
समाज में कभी बराबरी का दर्जा हासिल करने के लिए आवाजें उठती थी जबकि अब महिलाएं उससे भी आगे निकल चुकी हैं। क्षेत्र कोई भी हो काम कोई भी हो वर्ग कोई भी हो कहीं भी किसी से कम नहीं हैं।
मेरठ। समाज में कभी बराबरी का दर्जा हासिल करने के लिए आवाजें उठती थी जबकि अब महिलाएं उससे भी आगे निकल चुकी हैं। क्षेत्र कोई भी हो, काम कोई भी हो, वर्ग कोई भी हो, कहीं भी किसी से कम नहीं हैं। खेल, बिजनेस, शिक्षा, विज्ञान, सशस्त्र सेनाएं कोई भी क्षेत्र अब अछूता नहीं रहा जहां महिला वर्ग पुरुषों की बराबरी नहीं कर रही हैं। अब बात बराबरी की नहीं बल्कि बेहतर प्रदर्शन की होने लगी है जिसमें कई क्षेत्रों में वह आगे निकल भी चुकी हैं। इस महिला दिवस पर हम ऐसी ही कुछ महिलाओं की उपलब्धियों को उनकी ही जुबानी आप के समक्ष ला रहे हैं जो स्कूल-कालेजों में पढ़ रही बालिकाओं व गृहणी बन चुकी महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
'गजराज' को उड़ाकर बनी मिशाल
देश की हर बेटी आसमान छूने में सक्ष्म है। मैंने मेहनत से अवसर हासिल किया और वायु सेना के 'गजराज' नामक सबसे भारी विमान आइएल-76 को उड़ाने वाली देश की पहली महिला पायलट बन सकी। 20 साल की आयु में वर्ष 2001 में एयरफोर्स में भर्ती हुई और दिसंबर 2002 में फ्लाइंग ऑफिसर के तौर पर कमीशन हुआ। मैंने एएन 32 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ाया, लेकिन सपना तब पूरा हुआ जब गजराज को उड़ाने का अवसर मिला। इस विमान से सेना के युद्धक टैंक, आर्टीलरी गनें और एक बार से 800 जवानों की ट्रूप जा सकती है। एयरफोर्स में 10 साल की सेवा के दौरान लेह, सियाचिन ग्लैसियर जैसे दुर्गम स्थानों पर एयरड्रॉप कराने के साथ ही अरुणाचल की पहाड़ियों व अंडमान-निकोबार के समंदर पर लैंडिंग भी कराई है। वर्ष 2012 में एयरफोर्स से सेवानिवृत्त होने के बाद वर्तमान में इंडिगो एयरलाइंस में कैप्टन के तौर पर कार्यरत हैं।
-स्क्वाड्रन लीडर वीणा सहारन
ओलंपिक पदक जीतकर बढ़ानी है देश की 'गरिमा'
मेरा लक्ष्य अब 2020 ओलंपिक्स में देश के लिए पदक जीतना है। उसी दिखा में एक-एक कदम आगे बढ़ा रही हूं। वर्तमाल में ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाइंग प्रतियोगिताएं चल रही हैं। बुधवार को रोहतक में हुए ट्रायल में जॉर्जिया में होने जा रही प्रतियोगिता के लिए चयन हुआ है। इसके बाद 20-21 अप्रैल को दुबई में एशियन चैंपियनशिप में हिस्सा लेना है। इससे पहले नवंबर में कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। इस प्रतियोगिता में नाइजीरिया, स्कॉटलैंड, फिनलैंड आदि देशों के खिलाड़ियों को हराकर आत्मविश्वास बढ़ गया। मैं साल 2012 के ओलंपिक गेम्स में हिस्सा ले चुकी हैं। अब 2020 ओलंप्कि्स गेम्स ही लक्ष्य है। इसके अलावा सैफ गेम्स व नेशनल गेम्स में कई बार स्वर्ण पदक जीते हैं।
-अंतरराष्ट्रीय जूडो खिलाड़ी गरिमा चौधरी
पिता की विरासत को आगे है बढ़ाना
मेरे पिता ने दो दशक पहले मास्टर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट की स्थापना की थी जिसे अब मैं आगे बढ़ा रही हूं। शहर के युवाओं को स्नातक स्तर पर प्रोफेशनल कोर्स का बेहतर माहौल दिया जा रहा है। मैं स्कूली शिक्षा सोफिया गर्ल्स स्कूल से करने के बाद अहमदाबाद से एमबीए एचआर की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद गुजरात सरकार के मिनरल विभाग में एक साल कार्य करने के बाद एक एमएनसी कंपनी में एचआर विभाग की शुरुआत की। एक समय में दो कंपनियों का एचआर संभाला और उसके बाद पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मेरठ लौट आई। इस सफर में कई तरह की चुनौतियों से सामना हुआ लेकिन वह मेरा रास्ता नहीं रोक सके। इसलिए किसी भी बेटी या महिला को रुकना नहीं चाहिए।
-एंट्रप्रेन्योर विदूषी शर्मा
----
कई शहरों में पैर जमाने का है जुनून
लैक्मे सलोन और लैक्मे एकेडमी को देश के कई शहरों तक पहुंचाने के जुनून ने मेरठ और यहां से आगे बढ़ते रहने के लिए सदा ही प्रेरित किया है। पिछले 15 सालों में मैंने सात लैक्मे सलोन और दो लैक्मे एकेडमी का संचालन करने के बाद अब इसे और आगे ले जाने की तैयारी है। यह सफर बहुत आसान नहीं था। पति व परिजनों का तो सहयोग था लेकिन प्रतिस्पर्धा के युग में परिश्रम कई गुना अधिक करना पड़ता है। साल 2002 में मुंबई से कानपुर स्थित घर लौटना पड़ा तभी सोच लिया कि कुछ नया करना है। उसके बाद पहला सलोन कानपुर में 2003 में खुला और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। समाज में हर महिला को बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए और इसे पाने के लिए जूझना तो पड़ता ही है। मैंन कुछ हद तक साबित कर सकी कि औरत भी अपनी मंजिल को पाने के लिए कुछ रास्ते बना सकती है।
-एंट्रप्रेन्योर प्रीति डियास
----
विज्ञान ने बनाया पहली महिला रिसोर्स पर्सन
स्कूली शिक्षा के दौरान ही विज्ञान विषयों को पढ़ने में रुचि बढ़ी तो अंधविश्वास के पीछे छिपे विज्ञान को भी खोज निकालने को मन लालायित हुआ। तभी प्रगति विज्ञान संस्था से जुड़ी और पिछले नौ सालों से लगातार प्रदेश के विभिन्न जिलों में लोगों को विशेष तौर पर ग्रामीण महिलाओं को अंधविश्वास के छिपे विज्ञान को दिखाकर ढोंगी बाबाओं से बचाने का प्रयास किया है। यह प्रयास काफी हद तक कारगर हुआ और मुझे प्रदेश सरकार की ओर से विज्ञान में जागरूकता के लिए पहली महिला रिसोर्स पर्सन चुना गया। इसी कड़ी में प्रदेश सरकार की ओर से मलाला अवार्ड से नवाजा गया तो हिम्मत बढ़ गई। अब तक प्रदेश के 45 जिलों में एक हजार से अधिक स्थानों पर विज्ञान जागरूकता कार्यक्रम कर चुकी हूं। प्रदेश के अलावा भी जम्मू, कश्मीर, राजस्थान, हरियाणा, जयपुर आदि जगहों पर लोगों से जुड़ने का अवसर मिला।
-विज्ञान रिसोर्स पर्सन रोहिणी सिंह