शुद्ध हवा नसीब होती तो इतने साल बढ़ जाती सबकी उम्र
प्रदूषण के लाख खतरे हैं। इन्हीं में एक खतरा यह भी है कि प्रदूषण हमारी उम्र भी कम कर रहा है। एक शोध के अनुसार शुद्ध हवा से हमारी उम्र दो साल तक बढ़ सकती है।
By Ashu SinghEdited By: Published: Fri, 04 Jan 2019 04:38 PM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 04:38 PM (IST)
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। प्रदूषित हवा से दिल्ली का दम फूला तो मेरठ का दिल बैठने लगा। शहरवासियों के शरीर में रोजाना दस सिगरेट पीने के बराबर धुआं घुल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से छह गुना विषाक्त हवा के बीच जिंदगी की डोर छूट रही है। इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीआर की हवा स्वच्छ होती तो लोगों की औसत उम्र दो वर्ष ज्यादा होती।
दिल्ली से ज्यादा खराब मेरठ की हवा
सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली गैस चेंबर में तब्दील हो गई। ईपीसीए, एनजीटी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं सेंटर फार साइंस एंड इनवायरमेंट जैसी संस्थाओं की पड़ताल में पता चला कि धूल, कंस्ट्रक्शन कारोबार, दस साल से पुराने डीजल वाहन, पेटकोक एवं फर्नेस आयल व औद्योगिक चिमनियां बड़ी वजह हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ईंट भट्ठों को जिगजैग तकनीक पर चलाने का आदेश किया, किंतु तब तक भारी प्रदूषण हवा में पहुंच चुका था।
एयरलॉक ने बढ़ाया प्रदूषण
आइआइटी दिल्ली और कानपुर के वैज्ञानिकों ने एनसीआर के वायु प्रदूषण पर रिसर्च की। रिपोर्ट के मुताबिक मेरठ जैसे शहरों में सालभर उत्सर्जित धुआं और वायु प्रदूषण सर्दी में हवा की निचली सतह में चला आया। पेड़ पौधों की कमी और वायुदाब की वजह से प्रदूषण हवा में फंस गया। उधर, हवा मंद पड़ने से प्रदूषित कण देर तक सांस लेने की परत में जमे रह गए। पीएम-2.5 एवं पीएम-10 की मात्र मानक 60 से आठ गुना बढ़कर करीब 500 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक तक पहुंचा।
धूलकण हैं घातक प्रदूषण
आइआइटी कानपुर ने एनसीआर के वायु प्रदूषण पर रिसर्च कर चौंकाने वाले तथ्य बताए। इस रिपोर्ट के मुताबिक हवा में पीएम-10 में 56 फीसद, जबकि पीएम-2.5 में 38 फीसद हिस्सा धूलकणों का है। सालभर में नौ माह तक गर्मी एवं सूखा होने से बड़ी मात्र में धूलकण हवा में जम जाते हैं। सर्दियों में यही कण निचली परत में पहुंचकर पीएम-2.5 की मात्र बढ़ा देते हैं।
सांस नलियों में अम्ल
मेरठ की हवा में सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन डाई आक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड की मात्र ज्यादा है। सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञों की रिपोर्ट बताती है कि सांस नलिकाओं में सल्फ्यूरिक अम्ल बनकर नलियों को गलाने लगता है। इसी प्रकार नाइटिक आक्साइड भी सांस नलिकाओं को क्षतिग्रस्त करती है। पीएम-2.5 की मात्र 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा होने पर परेशानी होती है।
सिलकोसिस यानी फेफड़े खराब
कंस्ट्रक्शन कारोबार पर रोक लगाई गई है, किंतु इसमें प्रयोग एल्युमिनियम, आयरन, निकिल, पोटेशियम एवं लेड के सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन होता है। धूलकणों की वजह से कई में सिलकोसिस बीमारी मिली। ये फेफड़ों को खराब कर सकती है। नवंबर में पोटेशियम की मात्र हवा में मानक से आठ गुना तक ज्यादा मिली।
ये है पीएम-2.5
इस कण का व्यास 2.5 माइक्रान से छोटा होता है। एन-95 मास्क से भी छनकर यह फेफड़ों को पार करते हुए रक्त तक पहुंच जाता है।
पीएम-10
10 माइक्रान से छोटे कण फेफड़े की ङिाल्ली में फंसकर एलर्जी, सूजन एवं जख्म बनाते हैं।
जल्द पकड़ रहा निमोनिया
लंबे समय तक संपर्क में रहने से मरीज दमा, हार्ट, शुगर, कैंसर एवं किडनी की घातक बीमारियों की चपेट में आ रहा है। प्रदूषित कणों के साथ कई बार बैक्टीरिया मिलकर घातक असर छोड़ते हैं। औद्योगिक चिमनियों में कई घातक रसायनों के कण होते हैं। उधर, फेफड़े कमजोर होने से मरीजों को जल्द निमोनिया पकड़ लेता है, जिससे कई जान गंवा चुके हैं। उधर, एनसीआर में फेफड़े के कैंसर के मरीज तेजी से बढ़े हैं।
डिप्रेशन का भी खतरा
पीएम-2.5 की मात्र ज्यादा होने पर हृदय रोग हो सकते हैं। स्माग में बड़ी संख्या में हार्ट अटैक के मरीज मिलते हैं। प्रदूषण से रक्त नलिकाएं सख्त हो जाती हैं। इससे उच्च रक्तचाप, अवसाद और शुगर भी हो रहा है।
-डा. विनीत बंसल, हृदय रोग विशेषज्ञ
सड़कों की सफाई हो
सड़कों की तीन-चार बार सफाई होनी चाहिए। पीएम-2.5 में भी धूलकणों की मात्र 38 फीसद तक है। एनसीआर में एयरलाक की वजह से वायु प्रदूषण कम नहीं हो रहा। तेज हवा और बारिश से ही स्थिति सुधरेगी। मेरठ में स्थिति दिल्ली से भी खराब है। एनसीआर में लोगों की उम्र घट रही है।
-डा. सुरेंद्र यादव, पर्यावरण वैज्ञानिक
दिल्ली से ज्यादा खराब मेरठ की हवा
सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली गैस चेंबर में तब्दील हो गई। ईपीसीए, एनजीटी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं सेंटर फार साइंस एंड इनवायरमेंट जैसी संस्थाओं की पड़ताल में पता चला कि धूल, कंस्ट्रक्शन कारोबार, दस साल से पुराने डीजल वाहन, पेटकोक एवं फर्नेस आयल व औद्योगिक चिमनियां बड़ी वजह हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ईंट भट्ठों को जिगजैग तकनीक पर चलाने का आदेश किया, किंतु तब तक भारी प्रदूषण हवा में पहुंच चुका था।
एयरलॉक ने बढ़ाया प्रदूषण
आइआइटी दिल्ली और कानपुर के वैज्ञानिकों ने एनसीआर के वायु प्रदूषण पर रिसर्च की। रिपोर्ट के मुताबिक मेरठ जैसे शहरों में सालभर उत्सर्जित धुआं और वायु प्रदूषण सर्दी में हवा की निचली सतह में चला आया। पेड़ पौधों की कमी और वायुदाब की वजह से प्रदूषण हवा में फंस गया। उधर, हवा मंद पड़ने से प्रदूषित कण देर तक सांस लेने की परत में जमे रह गए। पीएम-2.5 एवं पीएम-10 की मात्र मानक 60 से आठ गुना बढ़कर करीब 500 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक तक पहुंचा।
धूलकण हैं घातक प्रदूषण
आइआइटी कानपुर ने एनसीआर के वायु प्रदूषण पर रिसर्च कर चौंकाने वाले तथ्य बताए। इस रिपोर्ट के मुताबिक हवा में पीएम-10 में 56 फीसद, जबकि पीएम-2.5 में 38 फीसद हिस्सा धूलकणों का है। सालभर में नौ माह तक गर्मी एवं सूखा होने से बड़ी मात्र में धूलकण हवा में जम जाते हैं। सर्दियों में यही कण निचली परत में पहुंचकर पीएम-2.5 की मात्र बढ़ा देते हैं।
सांस नलियों में अम्ल
मेरठ की हवा में सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन डाई आक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड की मात्र ज्यादा है। सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञों की रिपोर्ट बताती है कि सांस नलिकाओं में सल्फ्यूरिक अम्ल बनकर नलियों को गलाने लगता है। इसी प्रकार नाइटिक आक्साइड भी सांस नलिकाओं को क्षतिग्रस्त करती है। पीएम-2.5 की मात्र 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा होने पर परेशानी होती है।
सिलकोसिस यानी फेफड़े खराब
कंस्ट्रक्शन कारोबार पर रोक लगाई गई है, किंतु इसमें प्रयोग एल्युमिनियम, आयरन, निकिल, पोटेशियम एवं लेड के सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन होता है। धूलकणों की वजह से कई में सिलकोसिस बीमारी मिली। ये फेफड़ों को खराब कर सकती है। नवंबर में पोटेशियम की मात्र हवा में मानक से आठ गुना तक ज्यादा मिली।
ये है पीएम-2.5
इस कण का व्यास 2.5 माइक्रान से छोटा होता है। एन-95 मास्क से भी छनकर यह फेफड़ों को पार करते हुए रक्त तक पहुंच जाता है।
पीएम-10
10 माइक्रान से छोटे कण फेफड़े की ङिाल्ली में फंसकर एलर्जी, सूजन एवं जख्म बनाते हैं।
जल्द पकड़ रहा निमोनिया
लंबे समय तक संपर्क में रहने से मरीज दमा, हार्ट, शुगर, कैंसर एवं किडनी की घातक बीमारियों की चपेट में आ रहा है। प्रदूषित कणों के साथ कई बार बैक्टीरिया मिलकर घातक असर छोड़ते हैं। औद्योगिक चिमनियों में कई घातक रसायनों के कण होते हैं। उधर, फेफड़े कमजोर होने से मरीजों को जल्द निमोनिया पकड़ लेता है, जिससे कई जान गंवा चुके हैं। उधर, एनसीआर में फेफड़े के कैंसर के मरीज तेजी से बढ़े हैं।
डिप्रेशन का भी खतरा
पीएम-2.5 की मात्र ज्यादा होने पर हृदय रोग हो सकते हैं। स्माग में बड़ी संख्या में हार्ट अटैक के मरीज मिलते हैं। प्रदूषण से रक्त नलिकाएं सख्त हो जाती हैं। इससे उच्च रक्तचाप, अवसाद और शुगर भी हो रहा है।
-डा. विनीत बंसल, हृदय रोग विशेषज्ञ
सड़कों की सफाई हो
सड़कों की तीन-चार बार सफाई होनी चाहिए। पीएम-2.5 में भी धूलकणों की मात्र 38 फीसद तक है। एनसीआर में एयरलाक की वजह से वायु प्रदूषण कम नहीं हो रहा। तेज हवा और बारिश से ही स्थिति सुधरेगी। मेरठ में स्थिति दिल्ली से भी खराब है। एनसीआर में लोगों की उम्र घट रही है।
-डा. सुरेंद्र यादव, पर्यावरण वैज्ञानिक
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