Corona Fighters: कठिन परीक्षा का दौर, कोरोनावायरस को हररोज हराते हैं ये एंबुलेंस चालक
मेरठ और आसपास के क्षेत्रों में कोरोनावायरस खतरनाक ढंग से पांव पसार रही है। लेकिन इन सबके के बीच मेडिकल कालेज में कार्यरत एंबुलेंस चालक जो मरीजों को अस्पताल और शवों को श्मशान घाट पहुंचा रहे हैं। कुछ चालक एक-एक महीने घर से बाहर रहते हैं।
मेरठ, जेएनएन। Corona Fighters जिनको कोरोना संक्रमण है वह इलाज की ओर दौड़ रहे। जिन्हें संक्रमण नहीं वह संक्रमण से दूर भाग रहे। लेकिन हमारे बीच ऐसे भी लोग हैं जो दिन-रात कोरोना संक्रमितों के साथ रहते हैं। ये हैं मेडिकल कालेज में कार्यरत एंबुलेंस चालक जो मरीजों को अस्पताल और शवों को श्मशान घाट पहुंचा रहे हैं। कुछ चालक एक-एक महीने घर से बाहर रहते हैं। जो अपने घर में हैं वह भी स्वजन से अलग-थलग हैं। पिछले एक साल से यही जीवनचर्या बन गई है। हमने एंबुलेंस चालकों से जानने की कोशिश की कि वे खुद को और परिवार को किस तरह सुरक्षित रखते हैं।
मां साथ हैं पर महीनों से पैर नहीं छुए
एंबुलेंस पर ड्यूटी के दौरान जरूरी सुरक्षा सामग्री जैसे- मास्क, सैनिटाइजर है। दिन भर संक्रमण के बीच रहने के बाद जब घर जाते हैं तो बाहर ही नहाकर प्रवेश करते हैं। माताजी साथ में रहती हैं लेकिन उनसे दूरी बनाकर रहना पड़ा है। महीनों से उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी नहीं ले सका। मरीजों व मृतकों के स्वजन की वेदना देखना-सुनना जीवन का हिस्सा बन गया है। खुद संभलते हुए हम उन्हें भी संभालने की कोशिश करते हैं। इस महामारी में हमारी कोई छुट्टी नहीं है। हम 12 महीने सातों दिन 24 घंटे ड्यूटी पर ही हैं।
- अंकित कुमार, एंबुलेंस चालक, मेडिकल कालेज
सालभर से घर में आइसोलेट हैं
एंबुलेंस पर रहने के दौरान डबल मास्क लगाते हैं। सैनिटाइजर हाथ में ही रखते हैं। कुंडी खोलने या बंद करने से पहले सैनिटाइज करते हैं। हर जगह पानी नहीं पीते हैं। मरीजों के स्वजन को भी सुरक्षित रहने के तौर-तरीके बताते हैं। इसी तरह सालभर से स्वयं को बचाए रखा है। घर में भी आइसोलेशन में ही हैं। घर के बाहर खुद को सैनिटाइज करके प्रवेश करते हैं। किसी को नजदीक नहीं आने देते। भाई नोएडा में कार्यरत हैं जो इन दिनों संक्रमित होकर क्वारंटाइन हैं। वर्तमान स्थिति देखकर निराशा होती है।
- राकेश कुमार, एंबुलेंस चालक, मेडिकल कालेज
आखिर इस महामारी में छुट्टी मांगें भी तो कैसे
हमें भी थकान होती है, अवकाश की जरूरत पड़ती है, लेकिन इन हालात में छुट्टी मांगें भी तो कैसे। पिताजी की मृत्यु होने पर चार दिन की छुट्टी मिली लेकिन जब भी ड्यूटी का बुलावा आएगा मैं जाने को तैयार रहूंगा। परिवार से दूर ही रहता हूं और कभी-कभी ही घर जाना होता है। मेरा नंबर कई एंबुलेंस पर लिखा है इसलिए दिन भर मदद के लिए लोगों के फोन आते रहते हैं। हमारी सुरक्षा के लिए तमाम संसाधन हमें दिए गए हैं। मरीज की मृत्यु होने पर स्वजन से शिनाख्त कराने के बाद हम श्मशान ले जाते हैं। रो दर्जनों शवों का दाह संस्कार देखना हमारी दिनचर्या बन चुका है।
- मनोज कुमार, एंबुलेंस चालक, मेडिकल कालेज
ड्यूटी ऐसी है कि पीछे नहीं हट सकते
हमारी ड्यूटी ऐसी है कि हम अपनी सुरक्षा का हवाला देकर पीछे नहीं हट सकते हैं। एक मरीज को छोड़ते ही दूसरे के लिए तैयार रहना पड़ता है। पिछले साल मार्च से इसी तरह ड्यूटी चल रही है। एक महीने बाद पांच-छह दिन की छुट्टी मिलती है। दो-तीन दिन क्वारंटाइन रहने के बाद स्वजन के बीच जाता हूं। तीन बच्चे हैं जो हमेशा याद करते हैं लेकिन उनकी सुरक्षा हमसे दूरी में ही है। देर-सबेर बदायूं स्थित घर आना-जाना होता है। बागपत खेकड़ा में तैनाती के स्थान पर ही रहने को कमरा मिला है। वहां से रेफर मरीज लेकर आया था, फिर वहीं जाना है।
- अंग्रेज यादव, एंबुलेंस चालक, खेकड़ा, बागपत