डर है न मार डाले..प्रदूषण का क्या ठिकाना
धूलकण धूमपान धुआं और धुंध..ये सभी मौत का सबब बनकर सिर पर मंडराने लगे हैं। माहभर से मेरठ के फेफड़ों में मानक से 20 गुना जहरीली हवा पहुंच रही है।
मेरठ, जेएनएन। धूलकण, धूमपान, धुआं और धुंध..ये सभी मौत का सबब बनकर सिर पर मंडराने लगे हैं। माहभर से मेरठ के फेफड़ों में मानक से 20 गुना जहरीली हवा पहुंच रही है। दिल्ली के पास रहने वालों में सीओपीडी से मौत का रिस्क कई गुना है। वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 40 प्रतिशत में सीओपीडी वजह है।
स्टेट ग्लोबल एयर-2019 की रिपोर्ट में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का विश्लेषण किया गया है। इससे लंग्स कैंसर, सीओपीडी, हार्ट डिसीज, शुगर एवं लोअर रिस्पेरिटरी इंन्फेक्शन एवं स्ट्रोक का खतरा होता है। एनसीआर में एक लाख में 74 की जगह अब वायु प्रदूषण से 170 से ज्यादा लोग जान गंवा रहे हैं। गैर-संक्रामक बीमारियों से होनी वाली मौतों में से 75 प्रतिशत में वायु प्रदूषण भी एक कारक है। सिर्फ पीएम 2.5 की वजह से एनसीआर में लोगों की उम्र ढाई से तीन साल कम होने का अनुमान लगाया गया है।
प्रदूषण से मौतों का आंकड़ा
सीआपीडी-41 फीसद
सांस नलिका में संक्रमण-35 फीसद
मधुमेह-20 फीसद
लंग्स कैंसर-19 फीसद
हार्ट डिसीज-16 फीसद
ये बीमारियां हैं प्रदूषण में मौतों की वजह सीओपीडी
- ये सांस की क्रॉनिक बीमारी है, जिसमें लंग्स की सांस की नलियों का लोच खत्म हो जाता है। लंग्स अटैक से होठ, नाक व कान नीले पड़ जाते हैं। सांस लेने में दिक्कत से शरीर में ऑक्सीजन कम पड़ जाती है। स्मोक, इंडोर प्रदूषण व औद्याोगिक क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में ज्यादा खतरा।
- लंग्स कैंसर
- लंग्स में पीएम 1, पीएम 2.5 के सूक्ष्म कण पहुंचकर मेंब्रेन पार करते हुए रक्त में पहुंचकर डीएनए डिस्टर्ब कर सकते हैं। सांस में हाइड्रोकार्बन, बेंजीन व मेटल पहुंचने से लंग्स में कैंसर का खतरा है। सांस फूलने के साथ खून की उल्टियां भी होती हैं।
हार्ट डिसीज
- एंबिएंट एयर पॉल्यूशन-2016 और स्टेट ग्लोबल एयर 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक गत दशक में सांस की बीमारी से हुई मौतों में 28 फीसद, जबकि हार्ट की बीमारी से मरने वालों की संख्या में 69 फीसद की बढ़ोतरी हुई। पीएम-2.5 खून में मिलकर हार्ट की नसों की लाइनिंग गड़बड़ा देती है, जिससे ब्लॉकेज बनता है।
शुगर
- पीएम 2.5 शरीर में एंडोक्राइन सिस्टम बिगाड़ता है। हार्मोन्स ग्रंथियों का सिग्नल बिगड़ जाता है। प्रदूषण में 90 फीसद लोगों में में विटामिन-डी नहीं पहुंचती, जिससे इंसुलिन उत्सर्जन बिगड़ जाता है। उच्च रक्तचाप व तनाव भी शुगर बनाता है।
- सांस की नलिका में संक्रमण
- पीएम 2.5, सल्फर डाई आक्साइड व अन्य प्रदूषक लोअर रिस्पेरिटिरी इंफेक्शन बनाते हैं, जिससे निमोनिया व बैक्टीरियल संक्रमण से बड़ी संख्या में मौतें होती हैं।
इनका कहना है..
प्रदूषण का कहर सालभर चलता है, लेकिन नजर सिर्फ सर्दियों में आता है। औद्योगिक कारोबार, वाहनों एवं धूल से उठने वाले विषाक्त कण व गैसें शरीर मेटाबोलिक सिस्टम बिगाड़ते हैं, जो जानलेवा है।
डा. अनिल जोशी, पर्यावरणविद्
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सीओपीडी दुनिया में तीसरी और भारत में दूसरी टॉप किलर बन चुकी है। धुआं व वायु प्रदूषण इसके कारण एवं ट्रिगर भी हैं। लंग्स अटैक में कई मरीज जान गंवा देते हैं। स्पायरोमीटर से लंग्स की क्षमता की जांच कराएं।
डा. अमित अग्रवाल, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ
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प्रदूषित हवा में हेवी मेटल व हाइड्रोकार्बन कैंसरकारक होते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में लंग्स कैंसर तेजी से बढ़ा, जिसमें वायु प्रदूषण बड़ा कारक है। किसी भी प्रकार के लक्षण उभरें तो तत्काल चिकित्सक से मिलें। प्रथम स्टेज में ही इलाज कराएं।
डा. अमित जैन, कैंसर रोग विशेषज्ञ