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कल-कल बहेगी काली: किसानों ने छोड़ी 145 बीघा जमीन जिंदा हो रही नदी

मेरठ में खोदाई के दौरान काली नदी ईस्ट की जलधारा आठ फीट पर ही फूट निकली। अंतवाड़ा के ग्रामीण नदी के उद्धार की कारसेवा में जुटे हैं।

By Taruna TayalEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 03:06 PM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 03:07 PM (IST)
कल-कल बहेगी काली: किसानों ने छोड़ी 145 बीघा जमीन जिंदा हो रही नदी
कल-कल बहेगी काली: किसानों ने छोड़ी 145 बीघा जमीन जिंदा हो रही नदी

मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। जिस इलाके में मेड़ की लड़ाई में अदालत के चक्कर काटते-काटते पीढ़ि‍यां खत्म हो जाती हैं, वहां के ग्रामीणों ने एक नदी को जिंदा करने की खातिर जोत की 145 बीघा जमीन छोड़ दी है। भले ही जमीन उनकी नहीं थी, लेकिन दशकों से कब्जा उनका ही था। इतना ही नहीं, ग्रामीण नदी को जीवित करने के प्रयास में कारसेवा भी कर रहे हैं। यह कहानी है मुजफ्फरनगर में खतौली तहसील के अंतवाड़ा गांव की। इस गांव में काली ईस्ट नदी का उद्गमस्थल है। कालांतर में पाट दी गई नदी की इन दिनों खोदाई चल रही है। आठ फीट की गहराई पर जलधारा फूटने से गांववालों की खुशी का ठिकाना नहीं है। उन्हें विश्वास है कि उनकी नदी अब कल-कल बहेगी।

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उद्गम स्‍थल से किया शुभारंभ

दरअसल, जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाने वाले नदी पुत्र रमन त्यागी ने काली नदी की सफाई का काफी प्रयास मेरठ में किया था। तकनीकी पक्ष को समझने के बाद उन्होंने पाया कि जब तक नदी का स्रोत फिर से शुरू नहीं होगा, वह बह नहीं सकती। इसके बाद रमन ने खसरा-खतौनी का अध्ययन कर इस स्थान का पता लगाया। जानकारी हुई कि 145 बीघा जमीन नदी के नाम है जिस पर ग्रामीण कब्जा कर खेती कर रहे हैं। गांव के लोगों ने ही खेतीबाड़ी के लिए नदी में भराव कर उसे पाट दिया था। जब स्रोत ही बंद हो गया तो नदी नाले में तब्दील हो गई। समय के साथ यह औद्योगिक कचरों और सीवेज का डंपिंग केंद्र बन गया। लेकिन तस्वीर बदली जानी थी, लिहाजा शुरू हुआ ग्रामीणों को जागरूक करने और व्यवस्था को जगाने का काम। पिछले दो महीने में नदी की धारा को फिर आकार दिया गया। गाद-गंदगी साफ करने के क्रम इसी मंगलवार को उसी मूल स्थान पर जलधारा फूट निकली जहां कागजों में नदी का उद्गम बताया गया है। इस धारा से जलप्रवाह जारी है।

नागिन, ईस्ट काली और फिर कालिंदी

अंतवाड़ा से मुजफ्फरनगर की 22 किमी की सीमा में यह नदी बल खाकर चलती थी। इसके पीछे कई जनश्रुतियां भी हैं जिसके बाद ही इसका नाम नागिन पड़ा था। मेरठ की सीमा में पहुंचते ही इसका नाम ईस्ट काली हो जाता है। यहां से फिर हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, कासगंज, एटा, फरूखाबाद तक काली के नाम से पहचाना जाता है फिर आगे यही कन्नौज में जाकर गंगा से मिल जाती है और इसे नया नाम मिलता है...कालिंदी। उद्गमस्थल से गंगा में मिलने तक की इसकी लंबाई 598 किमी है और इस नदी के किनारे लगभग 1200 गांव बसते हैं।

गलती का पश्चाताप कर रहा हूं

गांव के ही किसान मुकेश कुमार बताते हैं कि 1992 में उनके पिता ने आठ फीट मिट्टी का भराव कराकर इस नदी के स्रोत को पाट दिया था। नदी के किनारे उनकी 12 बीघा जमीन थी, 12 बीघा इसे पाट लिया लेकिन वह परिवार को फला नहीं। नदी पाटने के कुछ माह के अंदर ही उसी ट्रैक्टर के नीचे आकर पिता की असमय मृत्यु हो गई। मेरे विदेश जाने का वीजा तक लग चुका था, लेकिन सब बर्बाद हो गया। हमें आभास होने लगा था कि बड़ी गलती हो गई है। जब नदी को पुनर्जीवित करने की पहल हुई, उसी दिन मैंने ठान लिया। नदी की जमीन छोड़ दी और कारसेवा में जुट गया।

नदी पूजन और गोष्ठी आज

काली नदी ईस्ट की जहां जलधारा फूटी है, खतौली के अंतवाड़ा गांव में उसी स्थान पर गुरुवार सुबह नदी पूजन और गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। नीर फाउंडेशन के रमन त्यागी ने बताया कि सुबह के समय ग्रामीण और आसपास के लोग सबसे पहले नदी पूजन में भाग लेंगे। नदी पूजन की खातिर पद्मश्री डा. अनिल जोशी और हरियाणा के किसान पद्मश्री केवल सिंह चौहान भी पहुंच रहे हैं।

इसके बाद पौधरोपण और श्रमदान होगा। सुबह आठ से 10 बजे तक इन गतिविधियों को पूरा करने के बाद गोष्ठी का भी आयोजन किया जाएगा। जो दोपहर 12 बजे तक चलेगी। इसमें संघ के पर्यावरण गतिविधियों के राष्ट्रीय सह संयोजक आरके जैन, स्थानीय जिला पंचायत सदस्य व अन्य गण्यमान्य लोग भी मौजूद रहेंगे।

मेरठ में 36 गांवों से होकर बहती है काली

काली नदी ईस्ट मुजफ्फरनगर में नौ गांव से होकर गुजरती है जबकि मेरठ में 36 गांव इसके किनारे पड़ते हैं। मेरठ सीमा में नदी दबथल गांव से प्रवेश करती है। इसके बाद से इसमें बड़ी मात्र में औद्योगिक कचरा और सीवरेज गिरता है।

नदी का पानी नहाने लायक बनाना है: एमडी

शहर से निकलने वाला सीवेज नालों के जरिए सीधे नदियों में बहाया जा रहा है। सीवेज को शुद्ध पानी में बदल कर नदी में छोडऩे के लिए वर्तमान 13 एसटीपी पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए नमामि गंगे योजना से 200 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की कवायद चल रही है। काली नदी का पानी नहाने लायक बनाने का लक्ष्य है।

बुधवार को मेरठ दौरे पर आए जल निगम के प्रबंध निदेशक विकास गोठलवाल ने बताया कि काली नदी के पानी को नहाने लायक बनाने के लिए शहर को शत-प्रतिशत सीवेज सिस्टम से युक्त करना होगा। विश्व बैंक इस प्रोजेक्ट में मदद करेगा। एमडी ने कहा कि शहर के तीन प्रमुख नाले आबू नाला एक, आबू नाला दो और ओडियन नाले को सीवेज प्लांट से जोड़ा जाएगा। ये नाले शहर का गंदा पानी सीधे काली नदी में ले जा रहे हैं। एमडी ने कहा कि नदी प्रदूषित है, जिससे जलीय जंतुओं को खतरा है। नदी का गंदा केमिकल युक्त पानी भूगर्भ तक पहुंच रहा है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ऐसी तकनीक का बनाया जाएगा जिससे शुद्ध हुए पानी में नहाया जा सकेगा। यही नहीं इस पानी के उपयोग के बारे में प्लान बनाया जा रहा है। जल्द ही जमीन का मसला हल करने के साथ इस प्लांट की नींव रखने का काम होगा। प्लांट के निर्माण से पहले यह भी देख रहे हैं कि शहर को वाकई कितनी क्षमता के प्लांट की जरूरत है। 


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