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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमला चौधरी की जयंती पर लाइव गोष्ठी, इनकी रचनाओं पर हुआ विमर्श Meerut News

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी साहित्यकार समाज सेवी और सांसद कमला चौधरी की 22 फरवरी को जयंती पर फेसबुक पेज स्त्री दर्पण पर लाइव गोष्ठी हुई। गोष्ठी में सुनंदा पाराशर और प्रज्ञा पाराशर ने कमला चौधरी के रचनाओं पर विमर्श किया।

By Himanshu DwivediEdited By: Published: Tue, 23 Feb 2021 12:01 PM (IST)Updated: Tue, 23 Feb 2021 12:01 PM (IST)
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमला चौधरी की जयंती पर लाइव गोष्ठी, इनकी रचनाओं पर हुआ विमर्श Meerut News
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमला चौधरी की जयंती पर लाइव गोष्ठी।

मेरठ, जेएनएन। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, साहित्यकार, समाज सेवी और सांसद कमला चौधरी की 22 फरवरी को जयंती पर फेसबुक पेज स्त्री दर्पण पर लाइव गोष्ठी हुई। गोष्ठी में सुनंदा पाराशर और प्रज्ञा पाराशर ने कमला चौधरी के रचनाओं पर विमर्श किया। कमला चौधरी की पुत्री डा. इरा सक्सेना ने भी विचार रखे।

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डा. प्रज्ञा ने बताया कि 1933 में कमला जी की पहली कहानी उन्माद का प्रकाशन हुआ था। पेशे से बाल मनोवैज्ञानिक इरा सक्सेना ने स्मृतियों के पन्नों को पलटते हुए बताया कि जब वह स्कूल से लौट कर आती थी तो अक्सर उनकी मां (कमला ) अपनी नई कहानी सुनने का आग्रह करती थी। बताया कि वह उस समय बहुत छोटी थी कहानी भले जी समझ में नहीं आती थी। पर भाषा का बहाव ऐसा होता था कि वह उसमें बहती चली जाती थी। इसी तरह रात में पिता डा. जितेंद्र मोहन जो पेशे से चिकित्सक थे लौट कर आते थे वह भी कहानी सुनाने का आग्रह करते। उन्हें भी वह रचनाएं सुनाती थी।

डा. इरा ने बताया कि जब समझदार हुई और वही कहानियां पढ़ी तो ऐसा लगता कि मां आज भी वह कहानी सुना रही हैं। कहा एक कहानी में भाषा ऐसी होनी चाहिए पाठक भटके नहीं। उनकी कहानियां पाठकों को बांधे रखती हैं। बताया कि उन्होंने नब्बे कहानियां लिखी हैं। कविता संग्रह अभी अप्रकाशित है। डा. इरा ने बताया कि जब तक रचना पूरी नहीं हो जाती थी उनकी (कमला चौधरी की) कलम रुकती नहीं थी। उनका काव्य संकलन जिसमें हिंदी, अवधी और ब्रजभाषा में व्यंगात्मक कविताएं हैं।

अप्रकाशित रचना मुझे राह में रोशनी मत दिखाना, मैं अपना ही दीपक जलाती चलुंगी कविता पढ़ कर सुनाई। डा. इरा ने बताया कि अंतिम दौर में वह बीमार रहती थी इसके बावजूद वह बंग्ला सीखती थी। बंग्ला में अमृत बाजार पत्रिका में उनकी कई रचनाएं छपी थी। 


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