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जेल में लगेगी प्रदर्शनी.. दीपोत्सव पर बिकेंगे दीपक

मेरठ जेल से एक खुशनुमा खबर बाहर आई है। इस बार आपका दीपोत्सव जेल में बन रहे दीपकों से जगमग होगा। जिला कारागार में ईको फ्रेंडली दीपक बनाए जा रहे हैं। इनमें गाय के गोबर और गोमूत्र समेत 11 प्राकृतिक तत्वों का प्रयोग किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Oct 2021 09:22 AM (IST)Updated: Sun, 17 Oct 2021 09:22 AM (IST)
जेल में लगेगी प्रदर्शनी.. दीपोत्सव पर बिकेंगे दीपक
जेल में लगेगी प्रदर्शनी.. दीपोत्सव पर बिकेंगे दीपक

अभिषेक कौशिक, मेरठ : मेरठ जेल से एक खुशनुमा खबर बाहर आई है। इस बार आपका दीपोत्सव जेल में बन रहे दीपकों से जगमग होगा। जिला कारागार में ईको फ्रेंडली दीपक बनाए जा रहे हैं। इनमें गाय के गोबर और गोमूत्र समेत 11 प्राकृतिक तत्वों का प्रयोग किया जा रहा है। कैदियों द्वारा प्रतिदिन करीब दो हजार दीपक तैयार किए जा रहे हैं। साथ ही पूजन के लिए भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्ति भी बनाई जा रही हैं। इन्हें बेचने के लिए जल्द ही जेल में स्टाल भी लगाया जाएगा। यहां मुलाकात के लिए आने वाले लोग बेहद सस्ते दामों में इन्हें खरीद सकेंगे।

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जेल की चारदीवारी के भीतर कई रोजगारपरक कार्य कराए जाते हैं। जरूरत और समय के अनुसार जिम्मेदारी दी जाती है। अब दीपावली को देखते हुए महिला कैदी दीपक तैयार कर रहीं हैं। जेल अधीक्षक राकेश कुमार ने बताया कि दीपक बनाने के लिए गाय का गोबर, गोमूत्र, मुल्तानी मिट्टी, ग्वार गम, इमली बीज का पाउडर, मेथी बीज का पाउडर, मैदा लकड़ी, बबूल गोंद, चूना, चावल का मांड और ईको फ्रेंडली रंगों का प्रयोग किया जाता है। रोजाना दो हजार दीपक बनाए जा रहे हैं। दस दिन से काम चल रहा है। इसमें 10 महिला बंदी और कैदियों को लगाया गया है। इसके साथ ही भगवान गणेश, मां लक्ष्मी, मां दुर्गा की मूर्तियां भी बनाई जा रही हैं। 40 फीसद गोबर का प्रयोग

जेल अधीक्षक ने बताया कि दीपक और मूर्ति बनाने में 40 प्रतिशत गोबर का प्रयोग किया जाता है। पहले तीन से चार दिन तक गोबर को सुखाया जाता है। इसके बाद सभी तत्वों को आटा चक्की में पीसकर मिश्रण तैयार किया जाता है। गोबार कैंपस के ही गोपालक कर्मचारियों और शहर की गोशाला से लाया जाता है। दीपक और मूर्तियों को बनाने के बाद उनको जेल में ही सुखाया जाता है। मुलाकाती स्टाल पर बेचे जाएंगे उत्पाद

जेलर राजेंद्र कुमार ने बताया कि बड़ी संख्या में दीपक और मूर्तियां तैयार हो गई हैं। चार-पांच दिन के भीतर ही इनको जेल में मुलाकात के लिए आने वाले लोगों के स्टाल पर बेचा जाएगा। दीपक की लागत डेढ़ सौ रुपये प्रति सैकड़ा आती है। अभी बिक्री की दर तय करनी है। दीपक और मूर्तियों से होने वाली आय महिलाओं के खाते में जाएगी।


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