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आनलाइन क्लास में खराब हुई पढ़ाई.. बढ़ रहीं परेशानियां

मार्च 2020 से अब तक करीब दो साल कोविड के कारण स्कूल बंद रहे। 2021 में 40-50 प्रतिशत समय में स्कूल जरूर खुले लेकिन प्री-प्राइमरी व प्राइमरी शिक्षा स्कूलों में बंद ही रही। स्कूलों ने आनलाइन क्लास चलाई।

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 10:09 AM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 10:09 AM (IST)
आनलाइन क्लास में खराब हुई पढ़ाई.. बढ़ रहीं परेशानियां
आनलाइन क्लास में खराब हुई पढ़ाई.. बढ़ रहीं परेशानियां

मेरठ, जेएनएन। मार्च 2020 से अब तक करीब दो साल कोविड के कारण स्कूल बंद रहे। 2021 में 40-50 प्रतिशत समय में स्कूल जरूर खुले लेकिन प्री-प्राइमरी व प्राइमरी शिक्षा स्कूलों में बंद ही रही। स्कूलों ने आनलाइन क्लास चलाई। एक सर्वे के अनुसार देश में स्कूलों में पंजीकृत बच्चों में से 40 से 70 प्रतिशत बच्चों के पास आनलाइन क्लास के लिए कोई उपकरण ही नहीं है। 80 प्रतिशत शिक्षकों ने आनलाइन क्लास में बच्चों से भावनात्मक जुड़ाव न होने की बात कही। वहीं 90 प्रतिशत शिक्षकों के अनुसार छात्रों का आनलाइन मूल्यांकन चुनौतीपूर्ण है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 90 प्रतिशत बच्चों की किसी एक भाषा पर पकड़ कमजोर हुई है। देश-दुनिया के 35 से अधिक शिक्षण व अन्य संगठनों की मदद से बोल्टन कंसल्टिंग ग्रुप द्वारा किए गए इस सर्वे में विश्व बैंक का भी हवाला दिया गया है जिसमें बताया है कि एक साल स्कूल बंद रहने से एक छात्र की भविष्य की कमाई नौ प्रतिशत कम हो जाती है।

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अभिभावक चाहें स्कूल खुलें

आनलाइन क्लास में तरह-तरह की चुनौतियों के कारण 80 प्रतिशत अभिभावक चाहते हैं कि स्कूल खुलें जिससे बच्चे कक्षा में पढ़ाई कर सकें। 37 प्रतिशत अभिभावकों का कहना है कि बच्चे घर में बिलकुल पढ़ाई नहीं करते। वहीं 71 प्रतिशत ने कहा कि तीन महीने के दौरान बच्चों ने कोई टेस्ट नहीं दिया। 49 प्रतिशत अभिभावकों ने बताया कि बच्चों की दिनचर्या बिगड़ गई है जिसमें पढ़ाई, खान-पान और सोना आदि शामिल है। 47 प्रतिशत बच्चे दोस्तों से मिलकर बातें करना मिस करते हैं। 42 प्रतिशत बच्चों में आंख, सिरदर्द आदि की शिकायत है। सर्वे के अनुसार हर 10 लाख की जनसंख्या पर भारत की तुलना में कहीं ज्यादा सक्रिय कोविड मामले रहने के बाद भी तमाम बड़े देशों में स्कूल सबसे अंत में बंद हुए और सबसे पहले खोले गए।

स्कूल खुलने पर भी बच्चों में कम फैला कोविड

रिपोर्ट में दिए गए स्वास्थ्य सेवाओं के तर्क के अनुसार स्कूल खुलने पर भी 20 साल से कम आयु के बच्चों में तीन से छह गुना कम संक्रमण और वयस्कों की तुलना में 17 गुना कम मृत्यु देखने को मिली। मध्य 2021 में स्कूल खुलने पर भी पंजाब, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में प्रति एक हजार संक्रमण में स्कूली बच्चों में कम संक्रमण देखने को मिला। इसका एक कारण टीकाकरण की रफ्तार भी है। 45 प्रतिशत जनसंख्या को पूर्ण टीका लगने से अस्पताल जाने और मृत्यु दर में कमी का कारण हैं। वहीं डेल्टा की तुलना में ओमिक्रोन में 40 प्रतिशत कम लोग संक्रमित होने की उम्मीद जताई गई है। 70 प्रतिशत जिलों में 25 से कम संक्रमण रहने के बावजूद देश में स्कूल बंद करने का निर्णय केंद्रीय स्तर पर ही लिया गया। विभिन्न देशों में स्कूल खोलने को हुए इंतजाम

-हांगकांग में शारीरिक दूरी के लिए 'फेस-टू-बैक' सीटिंग में बिठाया।

-डेनमार्क में आउटडोर कक्षाएं संचालित हुई।

-स्पेन में मास्क या फेस शील्ड की अनिवार्यता।

-सिंगापुर में छोटे बच्चों के लिए फेस शील्ड अनिवार्य।

-यूके व जर्मनी में सप्ताह में दो दिन रैपिड एंटीजन टेस्ट अनिवार्य।

-हांगकांग में दो शिफ्ट व अलग-अलग स्कूलों का समय।

-नार्वे में स्टूडेंट पाड या बबल बनाकर हुई पढ़ाई।

-कनाडा व अमेरिका में शिक्षकों को बूस्टर डोज अनिवार्य।

-यूके में छात्रों को स्कूल में टीकाकरण, भारत में भी अब जारी है। केवल स्कूल खोलना ही काफी नहीं

सरकार : तीन से पांच साल का मिड टर्म ब्रिज लर्निग गैप बनाएं और पर्याप्त संसाधन मुहैया कराएं।

स्थानीय प्रशासन व स्कूल : शिक्षण को प्राथमिकता में रखते हुए कोविड प्रोटोकाल के तहत कक्षा में तैयारी का मूल्यांकन करें।

अभिभावक : व्यवस्था पर विश्वास कर बच्चों को स्कूल भेजें और बच्चों को कोविड नियमावली का अनुसरण करने को प्रोत्साहित करें। 2021 में स्कूल खुलने की स्थिति

प्रदेश सेकेंड्री प्राइमरी तक

गुजरात 60-65 प्रतिशत 5-10 प्रतिशत

महाराष्ट्र 60-65 प्रतिशत 25-30 प्रतिशत

हरियाणा 60-65 प्रतिशत 35-40 प्रतिशत

बिहार 60-65 प्रतिशत 45-50 प्रतिशत

उत्तर प्रदेश 45-50 प्रतिशत 40-45 प्रतिशत

नोट : एक करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले प्रदेश का 25 अप्रैल से नौ दिसंबर 2021 तक का डाटा।

सर्वेक्षण

-37 प्रतिशत बच्चे घर पर नहीं कर रहे पढ़ाई

-49 प्रतिशत बच्चों की बिगड़ी दिनचर्या

यह भी जानें

490 प्रतिशत बढ़े बच्चों के शोषण से जुड़े मामले

90 लाख अतिरिक्त बच्चों पर वैश्विक स्तर पर बाल श्रम का खतरा

37 प्रतिशत बच्चों को नहीं मिला मिड-डे मील

50 प्रतिशत माध्यमिक बच्चों में दिखा खराब मानसिक स्वास्थ्य

33 प्रतिशत प्राइमरी स्तर के बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य कमजोर


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