शहरी आजीविका मिशन, आटा गूंथने वाले हाथ बुन रहे पॉलीथिन का विकल्प Meerut News
पॉलीथिन के प्रदूषण के खात्मे को शहर की महिलाएं आगे आई हैं। ये महिलाएं कपड़े के थैले और कागज के दोने तैयार कर रही हैं।
मेरठ, [दिलीप पटेल]। पॉलीथिन के प्रदूषण के खात्मे को शहर की महिलाएं आगे आई हैं। ये महिलाएं कपड़े के थैले और कागज के दोने तैयार कर रही हैं। बड़ी कंपनी तो नहीं है, लेकिन उनका सामूहिक प्रयास किसी कंपनी से कम नहीं है। उनके बनाए थैले और कागज के दोने पॉलीथिन का विकल्प बन रहे हैं।
10 महिलाओं ने काम किया शुरू
टीम लीडर बीना मित्तल और पुष्पा ने बताया कि छह माह पहले कपड़े के थैले, फोम के थैले, कैरीबैग बनाने का काम शुरू हुआ। सुमन शर्मा, संजना शर्मा और रेनू गुप्ता के सहयोग से 10 महिलाओं ने यह काम शुरू किया था। वर्तमान में 11 स्वयं सहायता समूह बन गए हैं। इनसे कुल 100 महिलाएं जुड़ी हैं। ये महिलाएं अपने घर में रहती हैं। घर के सारे काम निपटाती हैं। खाली समय में बाजार से मिले आर्डर के अनुसार थैले बनाती हैं।
जिन्हें है काम की जरूरत
इसी तरह सौम्या शर्मा के निर्देशन में 10 महिलाओं के समूह ने डेढ़ माह पहले कागज के दोने, प्लेट बनाने का काम शुरू किया है। इंदिरा नगर, ब्रह्रमपुरी की महिलाएं समूहों में हैं। वे महिलाएं जुड़ी हैं, जो कम पढ़ी-लिखी हैं और जिन्हें काम की जरूरत है। ये सभी समूह महिला विकास क्लब समिति के निर्देशन में काम करते हैं। बीना मित्तल ने कहा कि पॉलीथिन पर प्रतिबंध के बाद इस दिशा में काम शुरू किया गया है।
चार हजार रुपये तक कमा लेती है एक महिला
प्रत्येक समूह में 10 महिलाएं हैं। हर समूह का अलग-अलग एकाउंट है। प्रति माह एक महिला 100 रुपये जमा करती है और इतनी ही राशि शहरी आजीविका मिशन से मिलती है। प्रतिमाह एक महिला 3000 से 4000 रुपये तक कमा लेती है। कपड़े, फोम के थैले, कागज के दोने और प्लेट की बिक्री के लिए इन्हीं महिलाओं में कुछ मार्केटिंग करती हैं। टीम लीडर बीना मित्तल बताती हैं कि फेरी वालों, दुकानदारों और साड़ी सेंटरों से आर्डर मिलते हैं। कागज के दोने, प्लेट फास्ट फूड वाले खरीदते हैं। वैवाहिक कार्यक्रमों के लिए थोक में भी डिमांड आती है।